आपणों राजस्थान… राजस्थान की उत्कृष्ट संस्कृति – “घूमर” नृत्य
आपणों राजस्थान… राजस्थान की उत्कृष्ट संस्कृति हम सभी के मन में बसी हुई है, और क्यों ना हो!!! हमारे यहाँ की कलाओं की बात ही कुछ और है | इसी कला को नृत्य की परंपरा के साथ निभाने के लिए इसमें चार चाँद लगाता है हमारा “घूमर” नृत्य | यह नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है और इस कला को लुप्त होने से बचाना अब हमारा कर्तव्य है | इस नृत्य को भीलों द्वारा भी किया जाता है मगर राजपूत समुदाय इसे पारंपरिक नृत्य के रूप में आज भी निभा रहा है | सुन्दर एवं शालीन पोशाकों में महिलायें इस नृत्य को करती हैं तो देखने वाले भी टकटकी बांधे खुद को नृत्य की भावना में भिगो देते हैं |
एक अलग अंदाज़ में घूमते हुए इस नृत्य को करने के कारण ही इसका नाम घूमर पड़ा | ओढ़नी से अपने चहरे को घूंघट की तरह ढक कर महिलायें बेहद खूबसूरत अदा के साथ धीमे धीमे घूमते हुए दोनों हाथों से ताली बजाते हुए और बीच बीच में चुटकी जिस अनोखे अंदाज़ से बजाती हैं, उससे इस नृत्य को अलग ही ध्वनी मिलती है और समां बंध जाता है | देवी सरस्वती की अराधना करते हुए इस नृत्य में महिलाएं घूमती ही चली जाती हैं |
कुछ ख़ास घूमर नृत्य जिनके बारे में हम सभी जानते हैं, वे हैं “गोरबंद”,”पुदीना”, “रूमाल” “हिचकी” | और भी कई ऐसे गीत हैं जिन्हें सुनकर ही मन प्रसन्न हो जाता है, तो नृत्य के तो क्या कहने | कुछ ख़ास अवसरों पर किये गए घूमर नृत्य में महिलाएं सारी रात नृत्य करती रहती हैं | कुछ गीत तो राजस्थान के वीर सपूतों के बारे में भी वर्णन करते हैं | इस नृत्य की ख़ास बात यह है कि यह धीमी गति से शुरू होता है और उसी प्रकार चलता जाता है | नृत्य करने वाली महिलाएं पूरी तरह इसमें डूबकर समर्पण की भावना से बिना रुके तालमेल बना कर भाव विभोर होकर घूमती जाती हैं |