डूंगरपुर का जूना महल एक साथ मंजिला इमारत है जिसकी बनावट किसी किले के समान लगती है | इसकी दीवारों पर कांच का खूबसूरत काम किया हुआ है | रावल वीर सिंह देव ने विक्रम संवत 1939 में कार्तिक शुक्ल एकादशी को इसका निर्माण कार्य प्रारम्भ किया था | इस जगह के महत्व को समझते हुए उनके पुत्र रावल भूचंद ने डूंगरपुर की राजधानी को यहाँ स्थानांतरित कर दिया | इस महल का निर्माण कार्य अठ्ठारवीं शताब्दी में ख़त्म हुआ |
इस महल में बनी हुई सीढ़ियों की एक कतार है जो महल के सभी हिस्सों को जोड़ती है | इसका प्रवेश द्वार रामपोल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है | मारवाड़ी कला से सजी पेंटिंग और कांच से बनी हुई पेंटिंग भी बेहद सुंदर हैं | महल की राजपूती शिल्पकला भी आकर्षण का केंद्र है |
अनेकों गलियारे और बालकनी एवं तंग प्रवेश द्वार लिए हुए ये महल धनमाता पहाड़ी की तलहटी में स्थित है और 700 वर्ष पुराना होने के कारण इसे ‘पुराना महल’ और ‘बड़ा महल’ भी कहते हैं | इस महल को एक ऊंचे चबूतरे नुमा जगह पर दावड़ा पत्थर से बनाया गया था |