इतिहास:
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में हुआ था। एक स्थानीय ग्वाले को भगवान श्रीकृष्ण ने स्वप्न में दर्शन देकर इस स्थल पर अपनी प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया था। इसके बाद यहाँ खुदाई के दौरान एक अद्भुत मूर्ति प्राप्त हुई जिसे आज मंदिर में स्थापित किया गया है। मंदिर का निर्माण एक स्थानीय व्यापारी और भक्त द्वारा किया गया था जिन्होंने अपने निजी धन से इस मंदिर को बनवाया।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से मन्नत मांगता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
यहाँ हर साल लाखों भक्त दान स्वरूप सोने और चांदी के आभूषण चढ़ाते हैं, जिससे इस मंदिर को ‘धान का भंडार’ भी कहा जाता है।
मंदिर के परिसर में स्थित एक प्राचीन कुआं, जिसे ‘कृष्ण कुंड’ के नाम से जाना जाता है, में स्नान करने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है, ऐसा विश्वास है।