“करवा चौथ” क्यों “करवा चौथ” कहलाता है ?
करवा चौथ भारतीय महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक दिवसीय पर्व है | इस दिन विवाहित महिलायें सुबह से लेकर रात को चाँद के दर्शन होने तक व्रत रखती हैं जिसमें वे अपने पति की लम्बी एवं सुरक्षित ज़िन्दगी की कामना करती हैं | अविवाहित लड़कियां जिनकी सगाई हो गई हो, वे भी इस व्रत को करने में सुख का अनुभव करती हैं |
मिट्टी से बना घड़े नुमा अत्यंत छोटा सा पात्र जिसमें एक ओर नली बनी होती है “करवा” कहलाता है | कार्तिक माह के चौथे दिन इस तिथि के आने से इसे करवा चौथ कहा गया है | इस व्रत के पीछे देवी सावित्री की कथा है जिन्होंने यमराज से अपने पति के प्राण वापस लिए थे |
इस व्रत की तय्यारी में महिलाएं श्रृंगार सामग्री, करवा, पूजन सामग्री आदि खरीदती हैं | भोर होते ही व्रत की शुरुआत हो जाती है | रिवाज के अनुसार इस दिन महिलाओं को घर का कोई भी काम नहीं करना होता है और वे एक दूसरे की हथेलियों में मेहँदी लगाती हैं | अधिकतर महिलाएं लाल या केसरी रंग के पारंपरिक परिधान पहनकर पूजा करती हैं, रात के समय चलनी से चाँद के दर्शन करती हैं और फिर अपने पति के हाथ से पानी का पहला घूँट लेने के बाद ही व्रत खोलती हैं | महिलायें एक दूसरे को पतिव्रता स्त्रियों की कहानी भी सुनाती हैं और सभी मन ही मन अपने पति के दीर्घायु होने की कामना करती हैं | इस पर्व को कई तरीकों से मनाया जाता है |