पगड़ी से जुड़े रोचक तथ्य
एक लम्बा कपड़ा जिसमें सिलाई नहीं होती जो प्रांत और समुदाय को पृथक करता है..पगड़ी | इसे बाँधने के कई तरीके हैं | इसकी पहचान करने में पारंगत लोग दूर से ही देखकर बता देते हैं कि कौन किस समुदाय अथवा प्रांत से सम्बन्ध रखता है | किसी समय में यह माना जाता था कि पगड़ी पहनकर बुरी आत्माओं के प्रकोप से बचा जा सकता है |
राजस्थान में कई प्रकार की रंग बिरंगी और अलग अलग स्टाइल वाली पगड़ियां देखी जा सकती हैं | हर एक स्टाइल के साथ कोई न कोई तथ्य जुड़ा हुआ है | हर 15-20 किलोमीटर पर पगड़ी की स्टाइल बदली हुई मिलती है | पगड़ी का इतिहास ख़ास तौर पर राजपूत समुदाय से जुड़ा हुआ है | “पाग”, “साफा” और “पगड़ी” अलग अलग नामों से इसे जाना जाता है | राजा महाराजा अधिकतर साफा बांधते थे | साफा 9 मीटर लम्बा और 1 मीटर चौड़ा होता है जो आप शादी ब्याह के मौकों पर भी देख सकते हैं | पगड़ी की लम्बाई 82 मीटर और चौड़ाई 8 इंच की होती है | पहले दरबार द्वारा पगड़ी बाँधने में पारंगत महिलाओं को रखा जाता था |
सफ़ेद रंग की पगड़ी शोक का प्रतीक मानी जाती है | खाकी, नीली और मेरून रंग की पगड़ी सहानुभूति सभा के लिए पहनी जाती रही है | राजस्थान के बिश्नोई समुदाय की प्रतीक भी सफ़ेद पगड़ी ही है | चरवाहे की पगड़ी लाल रंग की होती है | अन्य जातियां प्रिंट वाली पगड़ियां पहनती हैं | अलग अलग त्योहारों के लिए अलग अलग पगड़ी पहनी जाती है | लाल किनारी वाली काली पगड़ी दिवाली के समय, लाल-सफ़ेद पगड़ी फागुन में, चटक केसरिया पगड़ी दशहरे में, पीली पगड़ी बसंत पंचमी के समय, हलकी गुलाबी शरद पूर्णिमा की रात को पहनी जाती है |
मज़े की बात यह है कि पगड़ी सिर्फ पहनी ही नहीं जाती, बल्कि इसके कई उपयोग भी हैं | थके हुए मुसाफिर पगड़ी का तकिया बना लेते हैं और आराम से पेड़ की छाँव में सो जाते हैं | क्योंकि इसकी लम्बाई बहुत होती है, इसे ठण्ड लगने पर शॉल की तरह लपेटा भी जा सकता है | और रस्सी का काम!! क्या कहने, कूएं से पानी खींचना हो तो पगड़ी को रस्सी की तरह बाल्टी से बांधकर पानी भी खींचा जा सकता है | ऐसी कथाएं भी हैं जिनमें पगड़ी के सहारे लटककर कई लोगों ने दीवारों के पार जाकर अपनी जान बचाई है, पानी में डूबतों को पगड़ी के सहारे बांधकर बाहर निकाला है |
राजस्थानी पगड़ी के अलावा सिक्ख समुदाय की पगड़ी भी हमारा ध्यान आकर्षित करती है | स्टाइल और रंग के माध्यम से अलग अलग गुटों को पहचाना जाता है | सिक्खों में नीले, काले, सफ़ेद और केसरिया रंगों की पगड़ी देखने को मिलती है और लाल पगड़ी अधिकतर शादी के मौके पर पहनी जाती है | आधे मीटर से लेकर 10 मीटर या ज्यादा लम्बी पगड़ी का चलन है | सिक्खों की पगड़ी के कुछ नाम हैं Domalla, Pagri or Pag, Dastar, Keski, Patka, Fifty.
सिक्खों की पगड़ी भी उनकी पृथक पहचान है | बिना पगड़ी के यदि सामने कोई आ जाए तो ये कहना मुश्किल होगा कि वो सिक्ख है या नहीं, कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है अपनी पहचान बनाये रखना बहुत महत्वपूर्ण है| राजस्थानी ग्रामीण अपनी जाति पर गर्व करते हुए अपनी पगड़ी धारण करते हैं, यही बात सिक्खों पर भी लागू होती है | पगड़ी पहचान का एक हिस्सा है | इसी कारण से विभिन्न रंगों, बाँधने के तरीकों को सभी समुदाय बचपन से सीखना शुरू कर देते हैं | हर एक व्यक्ति अपनी पगड़ी स्वयं बांधता है और इसमें शान महसूस करता है | पगड़ी सम्मान की प्रतीक है |
मुसलामानों में भी पगड़ी पहनी जाती है | मुस्लिम पुरुष प्रोफेट मोहम्मद की याद में काले या सफ़ेद रंग की पगड़ी धारण करते हैं, हालांकि सभी मुस्लिम पुरुष ऐसा नहीं करते | हरी पगड़ी प्रकृति को समर्पित है | सहारा के रेगिस्थान में मुसलमान लोग पगड़ी सिर्फ इसलिए पहनते हैं कि गर्मी और धूल-मिट्टी से अपना बचाव कर सकें | मुस्लिम विद्वान सफ़ेद पगड़ी धारण करते हैं |
महिलाओं के लिए पगड़ी का कोई नियम या कायदा नहीं है | उनके लिए सिर पर पल्लू या दुपट्टा लेना सम्मान की नज़र से देखा जाता है |