प्रेम की व्याख्या – Rishi Khatri की कलम से
प्रेम के कई मतलब हैं किन्तु प्रेम की व्याख्या क्या है ??
वैसे तो हिंदुत्व मैं प्रेम का कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है क्योंकि प्रेम अलौकिक है, प्रेम अनंत है, प्रेम तुच्छ भी है, प्रेम पीड़ादायक भी है और प्रेम सुखद भी है.. लकिन छोड़िये आजकल हिंदुत्व की बात तो कोई करता ही नहीं। जो करे उसे लोग मोदी भक्त कहने लगते हैं.
मनुष्य ने अपने चारो तरफ नियमों का एक वातावरण रच रखा है. सूर्य का उगना नियम है हालांकि सूर्य को इस नियम से कोई फर्क नहीं पड़ता, पृथ्वी को घूमना है यही नियम है लकिन पृथ्वी को इस नियम से कोई फर्क नहीं पड़ता।
इसी प्रकार “प्रेम” एक नियम है आज के समयानुसार
नियम क्यों ??
नियम इसलिए क्योंकि यह एक तरह का सौदा है “तू दे तो मैं दूँ ” लकिन जो लोग इस सौदे के परे हैं उन पर यह नियम लागू नहीं होता श्री कृष्णा ने कभी राधा से यह नहीं कहा की वे उनसे कितना प्रेम करते हैं लकिन आज के समय मैं अगर आप “I Love you ” ना कहें तो प्रेम का नियम टूट जाता है अब नियम के मध्य सौदा है तो प्रतिउत्तर मिलना भी जरूरी है अन्यथा फिर प्रेम रद्द।
हमरा दुर्भाग्य यह है की हम प्रेम को “इश्क” और “लव” मैं ढूंढते हैं किन्तु प्रेम अलग है
आज के प्रेम के नियम हर 30-35 वर्ष मैं बदल दिए जाते हैं जैसे की
1 प्रथम पीढ़ी जो थी उसमें पति पत्नी साथ रहते थे किन्तु प्रेम का मोलभाव नहीं किया जाता था, यह जताया नहीं जाता था की कोण किस से कितना प्रेम करता है
2 फिर ३० साल बाद अगली पीढ़ी ने पति पत्नी को बाध्य कर दिया की वे एक दूसरे को यह कह कर बताएं की वे एक दूसरे से कितना प्रेम करते हैं
3 इसके बाद एक और पीढ़ी आई जिसमें कुँवारे युवा एक दूसरे को कहने लगे की वे एक दूसरे से प्रेम करते हैं लकिन सिर्फ एक व्यक्ति को जीवनसाथी चुनने तक
4 उसके बाद आया वह समय जब कई लोग कई लोगो से प्रेम का इज़हार करने लग गए
अंत मैं अब समय यह है की जब पुरुष पुरुष से एवं स्त्रियां स्त्रियों से भी प्रेम का इज़हार करने लग गई हैं
प्रेम को प्रेम ही रहने दें. यह नियमों मैं नहीं बदल सकता हाँ आप इश्क या लव की बात करते हैं तो बात और है