जिन्दगी फिसल गई
जिन्दगी फिसल गई
मुट्ठी में बंद रेत सी
जिन्दगी फिसल गई
सबको खुश करते- करते
ना जाने,कहां चली गई
जिन्दगी हमें, हम जिन्दगी को
तलाशते रह गए
खुद को भूल, बाकी सबको
तराशते रह गए
वजूद अपना ,अपनों मे यूँ खो गया
खुद को ढूंढ रहे हैं अब
पता खो गया
जीना है अब अपने साथ
अपने भी लिए
सोना नहीं है आगोश मे
अधूरे सपनों को लिए
अपने हिस्से का आकाश
अब मुझको भी पाना है
रोक सकेगा ना अब कोई
कुछ करने का मन ने ठाना है
खुली हवा की महकी सांसें
छू रही हैं तन मन को
जीवन से परिचय हो रहा
पा रही हूँ अब खुद को
समझ आ रहा है कुछ-कुछ
धुंधला सा था जो पहले सबकुछ
अपनों के लिए जीना है बेहतर
पर खुद को कभी ना खोना है
रिश्तों की माला मे, मोती बन
खुद को भी संग पिरोना है
–शशि बोलिया