जयपुर की आकर्षित मीनाकारी
जयपुर की मीनाकारी बहुत प्रसिद्द है | मीनाकारी हमेशा से सभी को अपनी ओर आकर्षित करती रही है |
मीनाकारी की खूबसूरती ने हर किसी के मन में सवाल भी उठाएं है कि आखिर ये है क्या ? हमने जब इसके
बारे में पढ़ना शुरू किया तो बहुत ही मजेदार तथ्य पता चले जो हम यहाँ आपको बता रहे हैं |
फ़ारसी भाषा में मीना यानि आकाश का नीला रंग |
इरानी कारीगरों ने इस कला की खोज करी और मंगोलों ने इसे भारत और दूसरे देशों तक पहुँचाया | एक फ्रेंचपर्यटक, जो कि ईरान घूमने गए थे, ने नीले,हरे,लाल औरपीले रंगों में बने पक्षियों और जानवरों का ज़िक्र किया है जो कि तामचीनी के बने हुए थे | मीनाकारी के काममें स्वर्ण का भी इस्तेमाल पारंपरिक तौर पर किया जाता है क्योंकि इसकी तामचीनी यानि enamel work परअच्छी पकड़ होती है और इससे enamel की चमक उभर कर आती है |
कुछ समय के बाद चांदी का भी प्रयोगकिया जाने लगा जो डब्बे, चम्मच और दूसरी कलात्मक वस्तुएं बनाने के काम में आने लगा | इन सबके बादजब स्वर्ण पर रोक लगने लगी तो ताम्बे का प्रयोग किया जाने लगा | शुरू में मीनाकारी के काम को ज्यादातवज्जो नहीं मिली क्योंकि इसका प्रयोग सिर्फ कुंदन या बेशकीमती रत्नों के गहने बनाने के लिए होता था |इतिहास के हिसाब से मीनाकार सुनार जाति से सम्बंधित हैं और इन्होंने मीनाकार या वर्मा नाम से पहचानबनाई |
मीनाकारी का कार्य वंश के हिसाब से चलता रहता है और ऐसा बहुत कम होता है कि मीनाकार लोगअपने हुनर की जानकारी किसी और को दें | मीनाकारी की वस्तुएं बनाने का क्रम बहुत लम्बा और गहन होताहै और इसे कई कुशल हाथों से गुजरना होता है | मीनाकारी सिर्फ गहने तक सीमित नहीं है, इससे कई सजावटकी वस्तुएं भी बनाई जाती हैं |