किस्सा टाली का
किस्सा टाली का
“ऐ ऐ देख यो कई पड़्ग्यो “
“अरे केरी कोई नी या तो टाली मरगी “
“गज्या थारा हाथ ऊं टाली मरी अबे गणो पाप चड़ेला “
भैया क्या हुआ है,टाली क्या होता है? , मैंने पूछा
“थू चुप रे मुन्नी अबार टेंशन वेई गी है” गजू भैया डाटते हुए बोले। पर हुआ क्या है मैने दिनू भाई और तल्लू भाई की तरफ देखते हुए पूछा ।
“अरे यार मुन्नी,थारे अणी गज्जु भैया ने केरी तोड़ने के लिए जो पत्थर नाका था तो वो टाली के माते पड़ गया ।
और वा नीसे पड़ीने मर गई। ” दिनू भैया और तल्लू भैया जो मेरे मामा के बेटे गज्जु भैया के दोस्त थे मुझे अपनी सो काल्ड हिन्दी में समझाते हुए बोले।
ओह ! फिर तो हमसे बड़ा पाप हो गया , हां वाईस वात है अबे कितर उरण होंगे पाप से।
“भैया सबसे पहले इस गिलहरी का कुछ करें।”
वो तीनों ना समझने के भाव से मुझे देखने लगे । अरे भैया टाली को हिन्दी में गिलहरी बोलते हैं। उन तीनों के चेहरे पर आश्चर्य की रेखा और बड़ी हो गई।
इतने सालों में वो टाली को टाली ही बोलते थे गिलहरी जैसा भद्र शब्द बहुत नया था ।
खैर दीनू भैया ने टूटे फूटे मंत्रो का उच्चारण किया ,तल्लु और गज्जु भैया ने अन्तिम संस्कार और मैंने ईश्वर से माफी मांगी लेकिन हम चारों का पाप बहुत बड़ा था एक जीव हत्या का पाप ।
अतः हमारे दल ने बच्चों की पंचायत बुलाई सभी बच्चों में हिन्दी एवं अंग्रेजी की ज्ञाता मैं ही थी क्योंकि शहर के स्कूल में पढ़ती तो मुझे सबमें बहुत सम्मान दिया जाता ।
नानी के घर गर्मी की छुट्टीयों में एक अलग ही आनन्द था। खैर बच्चों की पंचायत ने सर्वसम्मति से निर्णय किया कि हम चारों के कारण टाली की हत्या हुई है इसलिए हमें पाप मुक्ति के लिए 2 दिन बाद पड़ने वाली निर्जला एकादशी का निर्जल उपवास करना होगा । और उस दिन गांव से 3 किमी दूर स्थित महादेव के मन्दिर में माफी मांगनी होगी।
ग्यारस के पहले कि रात्रि 12 बजे तक हम लोगों ने खूब खाया और खूब पानी पिया ताकि उपवास के दिन कोई कष्ट न हो ।
हम 11-12 साल के बच्चों को ये क्या पता कि पेट एक अन्धा कुआं है जिसे रोज भरना पड़ता है।
मनुष्य स्वभाव है जिस दिन व्रत करता है उसी दिन भूख ज्यादा लगती है। खैर रात्रि को दो दिवस का भोजन पेट में ठूसने के बाद हम निश्चित होकर सो गये ।
सुबह आंख तब खुली जब दीनू भैया अपनी छत से हमें आवाज देते मिले । मैं उठी तो देखा गज्जु भैया अभी घोड़े बैंच कर सोये थे।
“का मुन्नी थारे अबी तक परबात नी वी क्या घड़ी हात बजरी है।”
“तवड़ा भी आ गया है।”
आपण को मादेवजी के जाणा है जल्दी हापड़ो ।”
“हां भैया हम आते हैं।”
मैंने जल्दी से गज्जु भाई को उठाया । नहा धोकर जब मैं घर के बाहर निकली ।
गेट पर गज्जु भाई, दीनू और तल्लू भाई के साथ लगभग बेहोशी की अवस्था में मिले।
“क्या हुआ।”
“क्या हुआ करीरी अबे , केरी खाणी केरी खाणी रे चक्कर में वा टाली मरगी ने अबे मा तीनी हांज हुदी परा मरांला देखजे।” गज्जु भैया चिल्लाते हुए बोले। ऐ मुन्नी मेरी हां नी आरी है राते अतरा पाणी पिया तो भी तर लग गई अबार। बहुत ही विकट परिस्थिति प्यास मुझे भी लगी थी लेकिन इन सबकी हालत देखते हुए आकस्मिक बच्चों की पंचायत बुलाई गई और निर्णय हुआ कि केवल उपवास रखा जाये क्योंकि हत्या अनजाने में हुई,पानी पी सकते हैं। बस फिर क्या पानी का मटका और हम चार ,खैर पानी आज तक कभी इतना स्वादिष्ट न लगा था । इतने में मामी जी ने आवाज दी लो आज उपवास है तो आमरस बनाया है सब पीलो । हे ईश्वर ये कैसी परिक्षा खैर आमरस भी तो तरल ही है। सो हम सबने बिना कुछ सोचे फटाफट गटक लिया। पेट का कुआ एक बार भर चुका था और हम चारों तैयार थे महादेव के दर्शन यात्रा पर जाने के लिए।
क्रमश: रास्ते में पानी पीते प्रभु गुण गाते नाचते कूदते हम आखिर मन्दिर के लगभग करीब पहुंच चुके थे । मन्दिर के 100 मीटर परिधि में मेले जैसा माहौल था ,कितनी दूकाने सुसज्जित थीं। प्रसाद-फूल माला की , खिलौनों की और और ओह यह क्या ये कैसी खुशबू हवाओं में फैली थी गरम गरम तेल में कूद कूद कर हमें अपनी ओर बुलाते आलू के पकोड़े, अपनी रसभरी घुमावदार आकृति से रस टपकाती जलेबियां , छम आवाज के साथ देशी घी में तैरते मालपूए, मोतियों जैसे चमकती साबूदाना खिचड़ी। अहा मुंह में इतनी लार का जमावड़ा आज से पहले कभी ना हुआ था । खैर हमने मन को कठोर किया और मन्दिर में प्रवेश कर दर्शन करने पहुंचे महादेव के अद्भुत दर्शन करने के बाद हमने पास ही स्थित ठाकुर जी के मन्दिर में भी दर्शन किये। लेकिन पेट की अन्तड़ियां अब सूखने लगी थी ,लगता था जैसे भोजन को खाये जाने कितने दिन हो चुके,बाहर से आती स्वादिष्ट व्यंजनों की गंध ने हमें ओर कमजोर कर दिया था ।
अत: मन्दिर परिसर में हमारी एक और आकस्मिक वार्ता हुई जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय किया गया की हम सभी गिलहरी के नाम से गाय को चारा खिलायेंगे और आधे दिवस का व्रत भी हम उसको समर्पित करते हैं लेकिन अब भूखे रहे तो किसी भी क्षण मृत्यु हमारा वरण कर लेगी। अहा ! हम सबने पकवानों कि दुकानों के बाहर ऐसे दौड़ लगाई जैसे इससे ज्यादा बड़ा सुख क्या। कोई साबुदाना खिचड़ी ,तो कोई पकौड़े तो कोई मालपूए पर टूट पड़ा। पेट की आग को मिटा हम सब एक स्वर्णिम आन्नद को प्राप्त कर चुके थे । खैर शाम ढलने को थी और हम सब खुश थे कि हमने आधा दिन उपवास , महादेव दर्शन और गाय को चारा खिलाकर उस टाली को एक सद्गति दे दी थी । जाते हुए सूरज ने हमें सिखाया था श्रद्धा, अनुराग और जीवों के प्रति अगाध प्रेम क्योंकि हम भारतीय सनातनी हैं जो कण कण में ईश्वर को देखते हैं|
जय श्री राम ।
राधा