पैसा….ऐसा कैसा – भुवन मेहता
रविवार था छुट्टी का दिन सोचा कुछ देर और सो लिया जाए ! पर जैसा सब जानते है रविवार को आराम कम काम ज्यादा होता है ! वैसा ही कुछ हमारे साथ भी होता है ! घर का सामान लाना , धोबी के यहाँ कपडे देना, पत्नी जी की घर की सफाई में थोड़ी मदद ! अमूमन यही हर रविवार की हमारी दिनचर्या होती है ! वैसा ही एक रविवार आज भी था, पर आज बीवी की तबियत ठीक न होने कारण हम खुद जल्दी उठ गए और चाय बना ली ! हफ्ते के एक दिन “रविवार” ही होता है जब हम दोनों साथ में चाय का लुफ्त उठा सकते हैं ! चाय के साथ बिस्कुट लाकर पत्नी जी को जगाया और चाय की चुस्की का आनंद लेने लगे ! 2 ही चुस्की ली होगी की एक बम नुमा सवाल बीवी की तरफ फेंका, जैसी उम्मीद थी वह जोर के धमाके के साथ फटा ! जी सब्र रखिये सवाल आपको भी बताया जायेगा !
सवाल था की “ सुनो एक बात बताओ कुछ समय बाद अगर हम बहुत पैसे वाले हो जायेंगे तब हम मेरे माँ और पिताजी को घर से निकाल देंगे” ! चाय अंदर न जा कर बहार को आ गए बीवी के!
वह बोली “आप जवानी में सठिया गए हो क्या? पैसा क्या माँ बाप से बढकर हे क्या ? आज आप जो भी कुछ हैं उन्ही की मेहनत , त्याग और न जाने कितने बड़े छोटे बलिदान की वजह से हैं और अमीर बनाने पर उनको ही निकाल देंगे घर से जिस घर को बनाने में उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी निकाल दी, अगर ऐसा ख्याल है तो बता दीजिये मैं ये सब देखने से पहले आपको छोड़ कर चली जाती हूँ “ ! आप सोच रहे होंगे मैं इतना पत्थर दिल सवाल अपने ज़हन में ला भी कैसे सकता हूँ ! पत्नी की बात सुनकर मैं मुस्कुराया और कहा मुझे ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी तुमने, मुझे मुस्कुराता देख बीवी का चेहरा गुस्से से लाल हुआ जा रहा था ! रविवार का सत्यानाश न हो जाये इससे पहले मैंने बात की सच्चाई सामने रखना ठीक समझा ! मैंने पत्नी से कहा मेरे सिर्फ ये प्रश्न मात्र से तुम मुझे छोड़ने की बात कर रही सोचो अगर किसी ने सच में अपने माँ बाप के साथ किया हो तो कैसा लगेगा !
बीवी का चेहरा शांत सा होता दिखाई दिया और बोली “ अगर किसी ने ऐसा किया होगा तो वह या तो इंसान नहीं होगा या उसको रिश्ते और प्यार की समझ नहीं होगी ! पर पत्नियां कहाँ इतने में रूकती हैं ! बीवी ने मेरा चेहरा वैसे ही पढ़ लिया जैसे मैं अखबार का पढ़ रहा था ! आप जानते हैं किसी ऐसे को जिसने पैसे के लिए अपने माँ बाप को घर से निकला हो? हमने सर हिला दिया, फिर क्या था बीवी की तबियत जादुई तरीके से एक दम बढ़िया हो गयी और तुरंत उठ कर मेरे पास आकर बैठ गई ! मैं समझ गया था ये कहानी सुने बिना मुझे आज खाना भी नसीब नहीं होगा ! पास आकर मेरे हाथ से अखबार छीन लिया और छोटे बच्चे जैसे कहानी सुनने बैठ गई ! सच बताऊँ जब से मैंने ये बात सुनी है मैं खुद एक तनाव से गुज़र रहा था ! आइये आपको भी इस बार का किस्सा सुनाता हूँ!
आप सब अब तक जान गए होंगे की मेरी नौकरी मुझे इधर उधर घुमती रहती है, कभी इस राज्य तो कभी उस शहर तो कभी कभी दिल्ली के आस पास भी जाना पड़ता है ! 1 हफ्ते पहले की बात है ऑफिस के काम से मुझे दिल्ली के लिए ही एक पुरे दिन की टैक्सी की ज़रूरत पढ़ गई ! टैक्सी का उपयोग ज्यादा है इसलिए टैक्सी वाले जानते हैं और में करीब करीब सभी ड्राईवर को जनता हूँ और वह मुझे ! मैंने सुरिंदर जी (हमारे टैक्सी वाले ) को फ़ोन कर अगले दिन सुबह 9 बजे टैक्सी भेज देने को कहा और ड्राईवर की सारी जानकारी मेरे फ़ोन पर भेज देने के लिए बोल दिया ! आधे घंटे बाद हमारे फ़ोन पर एक sms आया जिसमे ड्राईवर का नाम (कैलाश) और उसका नंबर था ! हमारे लिए ये नाम नया था, तो हमने सुरिंदर जी को फ़ोन करके जानकारी लेना आवयशक समझा ! सुरिंदर जी ने बताया की ये नया ड्राईवर है पहले खुद चलता था कुछ समय से मेरे साथ काम कर रहा हे और कल यही आपके साथ जायेगा ! अब जाना तो था इसलिए सोचा कैलाश को फ़ोन लगा के घर का पता समझा दिया जाये और आदमी के बात करने के तरीके से उसके व्यक्तित्व का पता में लगा लेता था ! कैलाश जी को फ़ोन लगाया पर उधर से किसी ने उठाया नहीं तो सोचा सुबह लगा लेंगे, पर 5 मिनिट बाद हमारा फ़ोन बजा और उस एक वाक्य ने हमे थोडा सा सुन्न सा कर दिया !
“yes sir, sorry I was in a bathroom so could not take your call”, अगर एक ड्राईवर फ़ोन पे आपसे ये बोले तो कुछ तो दिमाग में हिल जाता हैं ! मैंने कहा “कैलाश जी बोल रहे हैं, उधर से आवाज़ आई “yes sir” हमने उस वक़्त कुछ भी कहना सही नहीं समझा या यूँ कहिए अपने सवालों के घोड़ों को थामना सही लगा उस वक़्त ! कैलाश जी को घर का पता समझा दिया और अपने काम में लग गए ! तय समयानुसार टैक्सी सुबह घर पर आ गईं ! हम नाश्ता करके अपना बैग लिए घर से निकले और गाडी की तरफ बड़े सोच कर की “ये ड्राईवर इतना पढ़ा लिखा हे, शायद नौकरी नहीं मिलने के कारण टैक्सी चला रहा“ ! जैसे ही में कार के पास पहुंचा तो देखा एक 50-55 साल का आदमी अच्छे से तैयार होकर मेरे लिए दरवाज़ा खोल रहा था कार का ! आप मेरी बात माने तो कोई उस शख्स को देख कर ये नहीं सोच सकता की वह आज के लिए आपका ड्राईवर है ! पर सत्य यही था , अब तो मैं बेचैन सा होने लग गया था की कब कार चले और मेरे मन के अन्दर कल रात से जो सवाल उबाल भर रहे वह बहार आयें !
कार चल पड़ी और मैं अपने काम की तैयारी में लग गया! पहले पढाव पर पहुंच कर एक मीटिंग करनी थी, सोचा उसके बाद कुछ खली समय है तब खाना खाते हुए कैलाश जी से बात चित की जाएगी ! पहले गंतव्य पर पहुँच कर मैंने कैलाश जी से रुकने को कहा और पूछ लिया की उन्होंने कुछ खाया है या नहीं! बड़े प्यार से और सरल लहजे में कैलाश जी बोले “सर मैंने नाश्ता करके आया हूँ “ फिर भी मैंने उनको 50rs. का नोट देकर कुछ चाय नाश्ता करने को कह कर अन्दर अपनी मीटिंग के लिए चला गया ! जिन महाशय के साथ मीटिंग थी वह अभी तक आये नहीं थे, तो इंतज़ार ही एक मात्र चारा था ! उस खली समय में मन कुछ अजीब सा हो रहा था, बहुत सी बार आप किसी को देख कर ये अंदाज़ा लगा लेते हैं की ये जगह उस इंसान के लिए सही नहीं है ! वैसा ही मुझे कैलाश के लिए लग रहा था की ये इंसान शकल, कपडे, बात करने के तरीके से पढ़ा लिखा लग रहा ये ड्राईवर कैसे ? तभी खबर आई की आज की मीटिंग रद्द हो गई है जो अब अगले हफ्ते होगी ! अपना बैग उठाया और हम बाहर की ओर चल पढ़े, ये सोच कर खुश थे की अब अगली मीटिंग के लिए 4 घंटे हैं इसका मतलब कैलाश जी से बात चित का सिलसिला शुरू किया जा सकता है ! कैलाश जी बाहर ही मेरा इंतज़ार कर रहे थे ! मेरे आते ही उन्होंने 50 का नोट मुझे वापस देते हुए कहा “सर मेरा पेट भरा है अभी, आप मीटिंग के लिए जा रहे थे इसलिए उस वक़्त टोकना सही नहीं लगा” ! मैंने बिना कुछ कहे वह नोट अपनी जेब में रखा और कैलाश जी को कार किसी अच्छी कॉफ़ी शॉप पे लेने को कहा ! वहां पहुँच कर मैंने कैलाश जी को अन्दर आकर मेरे साथ एक कॉफ़ी पीने का आग्रह किया जिससे बहुत न नुकुर के बाद कैलाश जी ने मान लिया !
कैलाश जी मुझसे बड़े थे, सफ़ेद बाल कुछ कुछ जगह से काले बाल झांकते हुए, अच्छे कपडे, बढ़िया जूते ! सच कहूँ तो उस दिन कैलाश जी मुझसे ज्यादा अच्छे से तैयार होकर आये थे ! जैसे किसी ऑफिस के मेनेजर हों !जब कैलाश जी ने कॉफ़ी का आर्डर इंग्लिश में दिया तब में समझ गया था की कुछ तो गड़बड़ हे ! जैसे ही वेटर वहां से गया मैं अपने आप को रोक नहीं पाया !
मैंने कैलाश जी की तरफ देखा और कैलाश जी ने मेरी ! वह शायद समझ गए थे की मैं सवाल दागने वाला हूँ उनपर ! मैंने कहा “कैलाश जी क्या माजरा है “ उन्होंने गर्दन हिला के मन कर दिया जैसे कुछ बात न हो ! मैंने दोबारा पूछा “कैलाश जी आप जानते हैं मैंने किस बार में पूछ रहा हूँ, चलिए सीधा सीधा पूछ लेता हूँ” ! आप इंलिश फर्राटेदार बोलते हैं, आपके कपडे किसी कंपनी के मालिक की तरह चमकदार हैं , आपके चेहरे पर एक अजीब सी चमक है जो आपके इस ड्राईवर के काम से मेल नहीं खाती ! इसके पीछे कुछ तो बात है जो मैं जानना चाहता हूँ ! आप बताएँगे तो मुझे अच्छा लगेगा !
कैलाश जी ने मेरी तरफ देखा और पूछा “ सर आप क्या करोगे जान कर” मेरी किस्मत है जिसका लिखा भोग रहा हूँ ! पर मैं ठहरा ज़िद्दी कहाँ मानने वाला था, कैलाश जी से उस किस्मत की कहानी सुनाने को मना ही लिया पर उनकी एक शर्त थी की कहानी के अंत में मैं किसी के लिए भला बुरा नहीं कहूँगा ! अब कहानी सुनने के लिए मैं इस शर्त पे राज़ी हो गया ! कैलाश जी ने कॉफ़ी की चुस्की ली और मुझे उनके जवानी के दौर में ले गए !
सर मेरी उम्र 23 साल थी और मेरे पिताजी का होलसेल का कपडे का काम था, जो बहुत ही बढ़िया चल रहा था उस समय ! उनका काफी नाम भी था , अच्छे काम के चलते पिताजी ने कारोबार बड़ा किया और एक छोटी सी कपडे की फैक्ट्री चालू की !इतना कह कर कैलाश जी फिर मुझसे पूछा “सर आप सच में सुनना चाहते हैं या सिर्फ समय है आपके पास इसलिए ! मैंने अपना फ़ोन निकला और उस दिन की सारी मीटिंग रद्द कर दी और उनसे आग्रह किया की वह अपनी कहानी जारी रखे मुझे बिना “सर” कहे ! कैलाश जी समझ चुके थे की मैं अब उनसे उनकी कहानी सुने बिना उनको आज जाने नहीं देने वाला था !
उन्होंने आगे बताना शुरू किया ! तो मैं बता रहा था की पिताजी की छोटी सी कपडे की फैक्ट्री अच्छा कारोबार कर रही थी ! मुझे भी शुरू से इस कपडे के काम में रूचि थी तो मैंने भी इसी में इंजीनियरिंग की पढाई पूरी कर पिताजी के कारोबार में उनका हाथ बंटाना शुरू किया ! पिताजी के अनुभव और मेरे नए ख्याल कारोबार में काम आ गए और हम एक बड़ी फैक्ट्री के मालिक बन बैठे ! पैसा आया तो बड़ा घर, गाड़ियाँ , नौकर चाकर और वह सारी सुविधाएँ जो एक पैसे वालों के घर में होते हैं, वह सब हमारे जीवन का हिस्सा बन चुके थे ! काम बढता गया, हमने निर्यात करना शुरू किया ! अच्छी कमाई के चलते पिताजी ने खूब प्रॉपर्टी बना ली थी, और आप तो जानते हैं जब लड़का पिता के साथ खड़ा होने लग जाता है तो उसकी शादी कर दी जाती है ! मेरी भी शादी हो गई, मेरी पत्नी का नाम “लक्ष्मी” था ! “था” सुनकर मैं भी आपके जैसे चौंका था , उन्होंने बताया उनकी पत्नी का स्वर्गवास 1 वर्ष पहले हो गया ! पर होनी को कौन टाल सकता है, इतना कहते हुए आगे बढे !
इसी बींच खाने का समय हो गया था , मैंने कैलाश जी को बोला चलिए अच्छी जगह चलते हैं खाना खाने ! वह मुझे एक अच्छे से रेस्टोरेंट में ले गए! साथ ड्राईवर हो या नौकर खाना सबको खिलाना चाहिए, ये मुझे मेरे मामा सिखा के गए हैं और सच मानिये जितना सुकून किसी को खाना खिलने में मिलता उतना खुद खाने में भी नहीं है ! हम दोनों ने एक -एक थाली का आर्डर दिया और मेरा कैलाश जी को देखन हुआ ! वह समझ गए की मेरी भूख खाने से ज्यादा उनकी बची हुई कहानी में हैं !
कैलाश जी ने बताया की “लक्ष्मी“ उनकी पत्नी बड़ी सीधी सी, घरेलु सी अच्छा खाना बनाने वाली कुशल गृहणी थी ! घर पर सबका ध्यान रखना माँ बाप की सेवा करना , आप कह सकते की सब अच्छे संस्कार दिए थे लक्ष्मी को उनके माँ बाप ने ! पर कहते है न सर अच्छा पैसा और अच्छा समय साथ में कुछ बुरा वक़्त भी लेकर आता है ! मेरी उम्र 25 साल की थी जब मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया, उनको दिल का दौरा पड़ा था ! मैं अपनी माँ से सबसे ज्यादा प्यार करता था, इस दुनिया मैं कोई ऐसा न होगा जो न करता हो अपनी माँ से प्यार ! उस सदमे से उभरने में मेरी बीवी ने मेरी बहुत मदद की पर कौन जनता था की मेरे पिताजी मेरी माँ से मुझसे भी ज्यादा प्यार करते थे ! माँ के बाहरवें के दिन पिताजी घर की सीढ़ियों से गिर गए, सिर में चोट के कारण उनका देहांत हो गया ! मैं पूरी तरह टूट गया था उस दिन और लक्ष्मी की हिम्मत और समझ से मैं संभल पाया ! क्यूंकि पिताजी इतना सारा कारोबार और जिम्मेदारियां देकर गए थे ! सर आज भी उनकी बहुत याद आती है !
उस समय मैं थोडा डरा की कैसे होगी जिंदगी जब माँ बाप नहीं होंगे ! बिना माँ बाप आपका मार्गदर्शन कौन करेगा ! कैलाश जी थोड़े से दुखी हो गए, पर अब उनका दिल खुल गया था और उनको विश्वास हो गया था की में सच में उनकी कहानी सुनना चाहता हूँ और शायद वह भी आज अपना दिल हल्का करना चाहते थे ! इसलिए मेरे बिना कहे उन्होंने आगे बताना शुरू किया !
सब कुछ ठीक चल रहा था ! काम , घर और बाकी की जिम्मेदारियां सही से निभा रहा था ! पर किसी ने सही कहा है, पैसा सब कुछ नहीं खरीद सकता ! शादी के 2 साल हो गए थे और मेरे कोई बच्चा नहीं था ! डॉक्टर को दिखाया सब टेस्ट कराये तो पता चला लक्ष्मी की बच्चेदानी में तकलीफ थी जिसका इलाज संभव नहीं और उसको निकालनी पड़ेगी ! मैं पहले ही सब खो चूका था लक्ष्मी को खोने की हिम्मत मुझमे नहीं थी इसलिए जैसा डॉक्टर बोला वैसा किया ! पर सवाल वहीँ का वहीँ था की क्या कभी हम बच्चे की ख़ुशी से सराबोर होंगे या नहीं ! फिर मेरा एक दोस्त है “हरीश” उसका एक NGO चलता है जहाँ अनाथ, छोड़े हुए बच्चे रहते हैं ! हरीश ने सुझाव दिया की क्यूँ न हम एक बच्चा गोद लेलें ! किसी और के बच्चे को प्यार देना थोडा मुश्किल सा लगा मुझे और लक्ष्मी को पर आपसी सहमति से हमने हरीश के यहाँ से एक बचा गोद लेने का फैसला कर लिया ! एक अच्छा महुरत देख के 6 महीने का बेटा घर ले आये ! “अमित” जी यही नाम दिया उसको, उसी दिन मैंने और लक्ष्मी ने कसम खाई की जब अमित समझदार हो जायेगा उसको सच बता देंगे पर कहाँ से लाये ये कभी किसी को नहीं बताएँगे ! हरीश पे भरोसा था इसलिए खास चिंता नहीं थी !
खाना ख़त्म हो चूका था पर उठने का मन नहीं कर रहा था इसलिए कुछ मीठे का आर्डर दे दिया सोचा इसी बहाने कुछ और समय बैठने का मौका मिलेगा ! पर मन में सोच रहा था जिस इंसान के पास इतना पैसा उसके सामने इतनी मुश्किलें है तो मुझ जैसे आम इंसान की हालत तो कुछ भी नहीं ! कैलाश जी हाथ धोने गए उनका पर्स वहीँ था कार की चाबी के साथ ! अच्छी बात नहीं थी पर पर्स में उनका, लक्ष्मी और अमित का बड़ा सा प्यारा सा फोटो दिख रहा था जो मैंने निकाल के देख लिया था ! पर उनकी आज की स्थिति का कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहा था !
कैलाश जी ने आते ही आगे की कहानी सुनानी शुरू की ! सर समय निकलता गया , अमित भी बड़ा हो गया उसकी भी इच्छा इंजीनियरिंग करने की थी तो उसको भी कपडे की इंजीनियरिंग करवा दी सोचा मेरे बाद ये काम काज अच्छे से देखेगा ! अमित को मैं और लक्ष्मी उसकी अठारवीं जन्मदिन पर सब कुछ सच सच बता चुके थे और वह समझ भी चूका था ! हम दोनों की जान थी सर अमित में उससे बड़े नाज़ और प्यार से पाला हम दोनों ने ! किसी चीज़ की कमी न होने दी कभी, और जीवन का क्या भरोसा सर इसलिए मैंने सारा कारोबार, घर जायदाद सब अमित के नाम कर दी थी जिससे मुझे कभी कुछ हो जाये तो उसको किसी चीज़ की तकलीफ न हो ! हर माँ बाप सब कुछ अपने बच्चों के लिए ही करते हैं न सर ! 2 साल पहले अमित की शादी कर दी, सारा काम सँभालने लग गया था और समझदार भी हो गया था ! लक्ष्मी की इच्छा थी की उसकी शादी के तोहफे में उसको सारी ज़मीन, जायदाद और कारोबार के कागजात दें, जो मुझे भी अच्छा लगा ! “सारिका” नाम है अमित की पत्नी का ! दोनों साथ में पढ़ते थे, एक दुसरे को पसंद करते थे तो बच्चों की ख़ुशी के लिए शादी करवा दी ! बच्चे खुश तो अपन खुश सर !
शाम के 4 बज गए थे और कैलाश जी को जाने देने का मन नहीं था ! हम बाहर ही एक पार्क में बैठ गए ! चाय की चुस्की पे बात को आगे बढाया कैलाश जी ने और मुझसे एक अनुरोश भी किया की “सर ये एक्स्ट्रा टाइम का चार्ज देंगे न मुझे “ मैंने कहा जी बिलकुल पर जो आदमी करोडपति है वह 200-300 के लिए अनुरोश करता अच्छा नहीं लग रहा ! मेरी पत्नी भी मुझे कॉल कर रही थी और शायद कैलाश जी को भी किसी का कॉल आ रहा था ! तो मैंने पत्नी से एक अर्जेंट मीटिंग का बहाना बना कर 2 घंटे बाद घर आने का कह दिया और सुरिंदर जिसने टैक्सी भेजी थी उससे एक्स्ट्रा समय के लिए भी बोल दिया ! क्यूंकि अगर कैलाश जी को ऐसे ही जाने देता तो में रात भर सो नहीं पता !
कैलाश जी ने चाय की चुस्की ली और बताया की सर सब कुछ अच्छा था, सारिका भी बिलकुल लक्ष्मी जैसे हम दोनों का ख्याल रखती और आदर सामान देती ! जैसा मैंने बताया लक्ष्मी का बहुत समय पहले जो ऑपरेशन हुआ था उसका ज़ख्म अब जाकर फिर से अपना सिर उठा रहा था ! लक्ष्मी का दर्द बढता जा रहा था और डॉक्टर्स ने सारे टेस्ट के बाद बताया की लक्ष्मी को जानलेवा कैंसर हैं जो आखरी समय में हैं ! इसका इलाज़ संभव नही था अब, मुझे लक्ष्मी को खोने का डर सताने लगा था ! पर सोचा उसकी तकलीफ मेरे अकेलेपन से बड़ी है उसका चले जाना सही है ! पिछले साल लक्ष्मी ने आखरी सांस ली, उसको मालूम था मैं उसके बिना नहीं रह पाउँगा इसलिए अमित और सारिका को मेरा ध्यान रखने को बोलकर निशिन्त होकर पंचतत्व में विलीन हो गयी ! पर कौन जनता था की मेरी ज़िन्दगी के दर्द अभी ख़त्म नहीं हुए हैं, अभी तो भगवन को मुझपर सबसे बड़ा पहाड़ तोडना बाकी था ! लक्ष्मी को गए 6 महीने ही हुए थे की एक दिन अमित और सारिका मेरे पास आये और बोले “पापा हम आपको अपने पास नहीं रख सकते आप अपना इंतज़ाम कहीं और कर लीजिये” ! मैं कुछ क्षण के लिए जैसे निर्जीव हो गया था, पर मेरे कान सही सुन रहे थे अमित और सारिका मुझे घर छोड़कर जाने का कह रहे थे ! जब मैंने कारण पूछा तो मुझे बोला गया की हमारा जीवन जीने का तरीका अलग है, आपकी सोच से हमारी सोच मेल नहीं खाती ! वैसे भी आपका इस घर और कारोबार में कुछ नहीं है जो है सब मेरा है ! आपकी ज़रूरत नहीं है यहाँ ! यहाँ पैसा रिश्ते से बड़ा हो गया था ! अमित ने सारे लाड प्यार का हिसाब एक बार में बराबर कर लिया था !
कैलाश जी अपने आसूं रोक नहीं पाए, सच बोलिए तो उनकी बात सुनकर अमित पे गुस्सा आना लाज़मी था क्यंकि अमित खुद एक अनाथ है जिसको कैलाश ने नया जीवन दिया था ! उसको आज इस लायक बनाया था की बुढ़ापे में वह कैलाश जी का सहारा बने उनका ध्यान रखे और वह आज उनको घर से जाने को कह रहा ! आज कोई भी बेटा अपने पिता को घर से सिर्फ इसलिए निकाल रहा था क्यूंकि अब उसके पिता का उस घर और कारोबार में कोई हिस्सा नहीं था ! सब पैसा जो पिता ने बेटे के अच्छे भविष्य और अपने बुढ़ापे के लिए कमाया था वह सिर्फ इस दिन के लिए की उनका बेटा जो खुद गोद लिया हुआ है अपने पिता को घर से निकाल दे ! शर्म और ज़िल्लत है ऐसे बेटे पे !
मैंने कैलाश जी को संभाला पानी पिलाया ! थोडा सँभालने के बाद कैलाश जी ने बताया की उन्होंने कुछ दिन बाद वह घर छोड़ दिया था ! अपना सारा सामान लेकर वह घर से निकल गए थे ! उन्होंने सबसे बड़ी गलती की थी जीवन की वह थी “विश्वास” खुद के बेटे पर , जो खुद का न होते हुए भी उनके लिए जान से बढ़ कर था ! कैलाश जी बोले सर अच्छा हुआ लक्ष्मी के जाने के बाद ये अब हुआ नहीं तो वह कभी अपने आप को माफ़ नहीं करती की उसकी कमजोरी का नतीजा था की हमने अमित को गोद लिया और आज उसने ये दिन दिखाया ! सर वहां से निकल कर मेरे पास जो पैसा था उससे मैंने ये कार खरीदी क्यूंकि कपडे के अलावा और कोई काम आता था नहीं, नौकरी कभी की नहीं तो खुद का करने को यही काम बचा था ! सर आप बताइए मैंने कहाँ कुछ गलत किया !
में खुद कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था, पर कैलाश जी के लिए बहुत बुरा लग रहा था! एक धन संपन्न इंसान जिसने पास किसी चीज़ की कमी नहीं वह आज टैक्सी चला रहा है ! मैं खड़ा हुआ कैलाश जी को गले लगाया और उनसे कहा की कभी भी आपको परिवार की कमी महसूस हो तो आप मुझे फ़ोन कर सकते हैं या आप मेरे घर आ सकते हैं ! आप मेरे पिता सामान हैं, कैलाश जी मुस्कुराये और बोले सर दोस्ती का रिश्ता रखते हैं ये बाप बेटे वाला रिश्ते से डर सा गया हूँ इसने मेरी बची हुई ज़िन्दगी नरक बना दी ! मैं समझ सकता था उनके दिल की हालत, मैं मुस्कुराया और कहा मुझे आपकी दोस्ती काबुल है! इतना कह कर मैंने कैलाश जी को उनकी टैक्सी का किराया और एक्स्ट्रा शिफ्ट का हिसाब किया और उनसे मुझे मेरे घर छोड़ने के लिए कहा !
कैलाश जी ने मुझे मेरे घर छोड़ा, में टैक्सी से उतरा ही था की याद आया की कैलाश जी का पता तो लिया नहीं कभी मुलाक़ात करने के लिए ! जाते जाते कैलाश जी ने एक कागज़ पे मुझे पता दिया और एक अच्छी सी मुस्कान देकर चले गए ! मैंने वह कागज़ अपने पर्स में रखा और अन्दर आ गया सोचा नहा कर खाना खा कर अपनी डायरी में लिख लूँगा !
मेरी कहानी जो अपनी पत्नी को सुना रहा था, उसको विराम दिया और उठ कर पानी पिने चला गया ! वापस आया तो मेरी बीवी मेरी डायरी में कैलाश जी का पता तलाश रही थी ! मैं जनता था वह पता पढ़ कर सदमे में आने वाली थी क्यूंकि कैलाश जी का पता कोई और नहीं वही अनाथाश्रम था जहाँ से वह अमित को लेकर आये थे ! उनके दोस्त हरीश ने कैलाश जी को वहीँ एक कमरा किराये पे दे रखा था!
सोचिये एक आदमी ने अपने पैसे के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक बच्चे को जिस अनाथ आश्रम से गोद लिया था ! उसी बेटे ने उन्ही पैसे के लिए अपने पिता को उसी अनाथ आश्रम में पहुँच दिया ! वाह रे पैसा…. ऐसा कैसा !