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Information source:  http://www.kalaahut.com

Peppy colors, sharp facial features, dexterous moves, squeaking voices in a typical traditional avatar performing in front of the excited audience and amusing them is what we call “KATHPUTLI” in India. It is basically a puppet which moves on the nimble fingers of the puppeteer.

It is derived from the two different words of Hindi- “Kath” meaning wood and “Putli” meaning doll which has no life or a toy. It is one of the ancient and the most prominent arts of Rajasthan which is believed to exist in India since more than thousand years.It may surprise many that it was Rajasthan’s amazing Kathputli only, which made India listed in one of the first countries who invented its traditional puppetry. Kathputli is a significant dance form of Rajasthan till date that no festival or fair is complete without this dance.

“Putli Bhats” were the very first people who discovered this art. They were the tribes of Rajasthan who traveled to different villages carrying their self- made puppets and entertaining the huge population in exchange of cash. It was the medium through which they earned their bread and butter. And soon this art gained popularity among the royal kingdoms of Rajasthan. And the “Bhat” community settled in different kingdoms and started entertaining the royal courts of Rajasthan. They received great honor and appreciation for their work from the Kings and Queens of these royal courts.

The Maharajas of Rajasthan were fond of art and entertainment as a result of which Kathputli dance flourished in those times. The specialty of this Kathputli dance was that they were just not the source of entertainment but also they taught society the social and moral education. These acts of puppetry portrayed major social issues like dowry system, women empowerment, unemployment, poverty, and hygiene. The best part was they just not portrayed the problems but also provided the solution to tackle these problems.

Going back in the history of Kathputlis, the legendary which was produced by the first Bhat was based on the life and achievements of the Great King of Ujjain, Vikramaditya. This show involved the act of 32 puppets and it became so remarkable and glorious that it was carried by his descendants for hundreds of years. Much later a play based on Prithviraj Chauhan’s life and achievements was enacted; he himself expressed this wish and even gave money to do so.

The puppets are made of mango wood and stuffed with cotton. They are highly embellished then with colorful clothes and a good make-up. A very important feature of these puppets is their elongated and stylized eyes. Female puppets don’t have legs while the male puppets have legs or footwears and the movement of the body is free, thus a slight vibration of the puppeteer causes their hands, neck and shoulders to move. These puppets are generally one and half feet in height and are made in Sawai-Madhopur, Bari, and Udaipur. Bhats can make their own puppets.

String puppet making starts from cutting an 8-9 inch wooden stick which is then given a desired shape. The wood is oil painted in skin color and the delicate details of the face are done. A thin brush is used to make the eyes, lips and nose on the face. Small pipes are used to create the hands of the puppets which are further wrapped and stitched in a traditional cloth. Then the whole body is covered with bright colored beautiful clothes to give a perfect shape to the puppet. And then it is embellished with the jewelry and other accessories to give it a ravishing look. Finally, the strings are attached to its hands, back and shoulders to make it moveable. And the puppet is then perfectly ready for the dance. Though it is a traditional method of making puppet but it could be created with different materials like plastic, paper, socks, wood, clay, cardboard etc.

Making a wooden doll dance on one’s finger is definitely not a cup of everyone’s tea. It requires a lot of practice for the puppeteers to do so. A narrative song in the Kathputli act plays a crucial role because the whole puppet show is based on this song only and the puppeteer does not execute everything on his own. During this whole process of crafting the puppets making them act on the tunes of the song a puppeteer is accompanied by a woman usually his wife who plays a dholak (musical instrument) and sings the ballad on the stage. A special stage is designed by the puppeteer for the show which does not need to have a theme. Sometimes, some special sound effects are also created to make the act more emphasizing.

Apart from the string puppetry there are other forms of puppetry too, some of which are shadow puppetry, glove puppetry and rod puppetry which are performed in the different states of India. But it was the deep love of Bhats for puppetry that it survived the test of time as an outcome of which it is still famous. For Bhats, puppetry was no less than divinity which they worshiped because that was the core source of their livelihood. Some places and museums in India where you can find the best works of puppetry are Bhartiya Lok Kala Mandal (Udaipur), Chitrakala Parishad (Bangalore), Crafts Museum (New Delhi) and Jagmohan Palace (Mysore).

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हवेली के पीले पत्थर

जैसलमेर का नाम आते ही रेत के धोरों के बाद सबसे पहला ख़याल आता है पटवों की हवेली   का जो कि पत्थर पर करी हुई कशीदानुमा बारीक कारीगरी का बेजोड़ नमूना है | यह हवेली एक अकेली बड़ी हवेली नहीं है बल्कि 5 छोटी हवेलियों का समूह है | 1805 में एक अमीर व्यापारी गुमान चंद पटवा ने इसका निर्माण करवाया था | इस अमीर व्यापारी ने अपने 5 बेटों के लिए इस हवेली में अलग अलग माले बनवाये थे जिन्हें सम्पूर्ण होने में लगभग 50 साल का समय लग गया था | इस हवेली में बेहद खूबसूरत वॉल पेंटिंग्स और पीले पत्थर पर बारीक खुदाई वाले झरोखे हैं | महज़ इसका दरवाज़ा ही भूरे रंग का है, बाकी पूरी हवेली पीले पत्थर से बनी हुई है | 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अपनी बारीक खुदाई के लिए जानी जाने वाली यह हवेली जैसलमेर के सबसे खूबसूरत उदाहरणों में अपने किस्म की अनूठी और एकमात्र हवेली है | इसकी बारीक खुदाई देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबा लेता है | यह हवेली शहर की तंग गली में अपनी भव्यता लिए खड़ी है | 

कई प्रकार से भीतर से खंडित होने के बाद भी आज भी आप इस हवेली में कुछ पेंटिंग्स और कांच का काम देख सकते हैं | आज इस हवेली को सरकार के पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन ले रखा है और उनका दफ़्तर भी इसी हवेली के अन्दर है | हवेली के अन्दर मेहराबनुमा दरवाज़े हैं और हर एक मेहराब(arch) पर अलग अलग व्यक्तिगत चित्रण किया हुआ है| 

ज्ञात हुआ है कि एक साल बहुत तेज़ बारिश में हवेली का एक हिस्सा ढह गया था जिसका जीर्णोद्धार करने में बहुत समय लगा | डर इस बात का था कि यदि हवेली की नींव कमज़ोर पड़ी और यह संपूर्ण रूप से ढह गई तो आसपास का इलाका भी ख़त्म हो जाएगा क्योंकि तंग गली में आमजन के भी मकान हैं | 

1970 के दशक में (असली तारीख और समय ज्ञात नहीं हो पाया है ) इस हवेली की जब देखरेख नहीं हो पा रही थी तो फ्रांस से आये कुछ अधिकारियों ने इसे अपने साथ ले जाने की बात करी थी और हवेली का सौदा करने के लिए मालिक को मना लिया था | तभी कुछ गणमान्य लोगों के कानों में यह बात पड़ी थी और उन्हें खतरे का आभास हुआ था कि फ्रांसीसी हवेली की एक एक दीवार को अपने साथ अपने देश ले जाना चाहते हैं |

यह बात जैसलमेर के इतिहास के लिए शर्मनाक और बेहद दर्दनाक घटना होती यदि वे गणमान्य व्यक्ति सौदा होने के पहले इस बात को हवेली के मालिक तक ना पहुंचाते | हवेली की दीवारें उखाड़ कर ले जाने का अर्थ था आसपास की समस्त संपत्तियों को हानि पहुँचाना और जैसलमेर की खूबसूरती में दाग लगाना | सौदा किसी प्रकार निरस्त कर राजस्थान की इस धरोहर को बचा लिया गया |

अब इस हवेली को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है और इसे देखने वालों की नज़रें इस पर से हटती ही नहीं हैं | किन्तु इस हवेली के अन्दर छोटे चमगादड़ों ने अपना घर बना रखा है जो कि डर पैदा करता है | हालांकि गाइड पर्यटकों को आगाह करते रहते हैं, परन्तु यह चर्चा का विषय है |

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जनता के नाम मानवता का सन्देश #one2all की तरफ से
भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न धर्म पाए जाते हैं | इन धर्मों के बारे में हम सभी जानते हैं | हमें शुरू से
भाई चारा निभाने और सभी को समान नज़र से देखना सिखाया गया है | हम यहाँ किसी पद या ओहदे की
बात नहीं करते क्योंकि जब हमारे देश में विभिन्न धर्मों की कोई बात नहीं थी जैसे कि रामायण और महाभारत
के ज़माने में, तब से एक ही पाठ पढ़ाया जाता रहा है और वो है मानवता का पाठ | मनुष्यों के साथ शिष्टाचार
को बढ़ावा देते हुए सभी ऋषि मुनियों ने एक ही बात सिखलाई कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है |

यदि आज के सभी धर्म ग्रंथों के हिसाब से भी चलें और उन्हें बारीकी से पढ़ें तो सभी का सार है “मानवता” |
जातिवाद ने पाँव पसारे जरूर, किन्तु धर्म के सबक नहीं बदले | कभी बदलेंगे भी नहीं | हमारे देश में आपसी
तालमेल से जीवन व्यतीत करने की शिक्षा बच्चों को होश संभालते ही देनी नहीं पड़ती, वे तो ये सब परिवार में
देखते हुए ही सीख जाते हैं | गीली मिट्टी के समान होते हैं बच्चे, इसलिए हम सभी का कर्तव्य है कि हम
धर्मों की एकता का पाठ अपने अन्दर उतार कर बच्चों को सिखाएं और अपने देश की तरक्की में योगदान दें
ना कि बाधा बनें |

आए दिन होने वाले फसादों और घटनाओं ने इंसान का दिल झकझोर कर रख दिया है | यदि उचित शिक्षा दी
जाए और सामंजस्य बना कर रखा जाए तो ये परेशानी हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए,ऐसा हमारा विचार है |
इसी विचार के साथ आप सबका ध्यान हर ऊंच नीच से हटाकर हम सभी से निवेदन करते हैं कि देश को सुद्रढ़
करने के लिए आगे बढ़ें |

जय हिन्द जय भारत

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उदयपुर में बोहरा गणेश जी का मंदिर लगभग 350 साल पुराना गणेश मंदिर है जो कि बोहरा गणेश रोड पर आयड़ म्यूजियम धूलकोट के निकटवर्ती इलाके में है | इसमें गणेश भगवान की खड़ी प्रतिमा लगी हुई है | सालों पहले यह मंदिर शहरी सीमा के बाहर हुआ करता था किन्तु शहर के विस्तार के बाद ये सीमा के अन्दर आ गया |


इस मंदिर के साथ कई रोचक कथाएँ जुड़ी हुई हैं | ऐसा माना जाता है कि यदि किसी भक्त को अपने किसी ख़ास उद्देश्य को पूरा करने के लिए यदि धन की आवश्यकता पड़ती है, तो उस भक्त को अपनी आवश्यकता को एक पर्ची पर लिखकर गणेश भगवान् से प्रार्थना करनी होती है कि जैसे ही उसका उद्देश्य पूर्ण होगा, वह उस रकम को ब्याज समेत चुका देगा |

ऐसा करने पर गणेश जी अपने सच्चे भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं | ऐसा भी बताया जाता है  कि गणेश मंदिर के नाम के साथ बोहरा शब्द जुड़ने का कारण है बोहरा समुदाय जो कि पैसों के लेन-देन का कार्य करते हैं | मंदिर में रोज़ भक्त लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं | परिवारों में शादी ब्याह के कार्यक्रम में गणेश जी का स्थान सर्वोपरि माना गया है | जब भी किसी के घर में शादी होती है, तो वे मंदिर में  आकर गणेश जी के सामने कार्ड रखकर उन्हें भी निमंत्रण देते हैं एवं सभी कार्य शुभ मुहूर्त में शांतिपूर्वक सफलता से निपटाने के लिए प्रार्थना करते हैं |

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जयपुर की मीनाकारी बहुत प्रसिद्द है | मीनाकारी हमेशा से सभी को अपनी ओर आकर्षित करती रही है |
मीनाकारी की खूबसूरती ने हर किसी के मन में सवाल भी उठाएं है कि आखिर ये है क्या ? हमने जब इसके
बारे में पढ़ना शुरू किया तो बहुत ही मजेदार तथ्य पता चले जो हम यहाँ आपको बता रहे हैं |
फ़ारसी भाषा में मीना यानि आकाश का नीला रंग |

इरानी कारीगरों ने इस कला की खोज करी और मंगोलों ने इसे भारत और दूसरे देशों तक पहुँचाया | एक फ्रेंचपर्यटक, जो कि ईरान घूमने गए थे, ने नीले,हरे,लाल औरपीले रंगों में बने पक्षियों और जानवरों का ज़िक्र किया है जो कि तामचीनी के बने हुए थे | मीनाकारी के काममें स्वर्ण का भी इस्तेमाल पारंपरिक तौर पर किया जाता है क्योंकि इसकी तामचीनी यानि enamel work परअच्छी पकड़ होती है और इससे enamel की चमक उभर कर आती है |

कुछ समय के बाद चांदी का भी प्रयोगकिया जाने लगा जो डब्बे, चम्मच और दूसरी कलात्मक वस्तुएं बनाने के काम में आने लगा | इन सबके बादजब स्वर्ण पर रोक लगने लगी तो ताम्बे का प्रयोग किया जाने लगा | शुरू में मीनाकारी के काम को ज्यादातवज्जो नहीं मिली क्योंकि इसका प्रयोग सिर्फ कुंदन या बेशकीमती रत्नों के गहने बनाने के लिए होता था |इतिहास के हिसाब से मीनाकार सुनार जाति से सम्बंधित हैं और इन्होंने मीनाकार या वर्मा नाम से पहचानबनाई |

मीनाकारी का कार्य वंश के हिसाब से चलता रहता है और ऐसा बहुत कम होता है कि मीनाकार लोगअपने हुनर की जानकारी किसी और को दें | मीनाकारी की वस्तुएं बनाने का क्रम बहुत लम्बा और गहन होताहै और इसे कई कुशल हाथों से गुजरना होता है | मीनाकारी सिर्फ गहने तक सीमित नहीं है, इससे कई सजावटकी वस्तुएं भी बनाई जाती हैं |

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भारतीय लोक कला मंडल

भारतीय लोक कला मंडल की स्थापना 1952 में विश्वविख्यात लोककलाविद पदमश्री(स्व.) श्री देवीलाल सामर
द्वारा की गई | लोक कला के संरक्षण, उत्थान, विकास और प्रचार  हेतु इस कला मंडल को स्थापित कर
विश्व में विशिष्ट संस्कृति की पहचान लिए हमारा शहर उदयपुर चहुँ ओर ख्याति प्राप्त कर चुका है |
लोक कला मंडल में जीवन संस्कृति को परिभाषित करने वाली अनेकों चीज़ों को देखा जा सकता है | इस कला
मंडल का मुख्य उद्देश्य कुछ इस प्रकार से है :

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  1.  लोक गीतों, लोक नृत्यों और लोक कलाओं को पहचान दिलाना और उन्हें विकसित करना
  2.  उपरोक्त दिशाओं में शोध को बढ़ावा देना
  3.  पारंपरिक लोक कलाओं को आधुनिक परिवेश के अनुसार विकसित करना
  4.  भारत और विदेशों में कठपुतली, लोक नृत्य और गीतों के कार्यक्रम आयोजित करना
  5.  लोक कथाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रशिक्षण देना
  6.  लोक कलाकारों को प्रोत्साहन देना
  7.  सम्बंधित विषयों के कार्यक्रम आयोजित करना

भारतीय लोक कला मंडल लोक कलाओं को ना सिर्फ पहचान दिलाना चाहता है बल्कि छुपी हुई कलाओं को भी
बाहर लाने का प्रयास करता है जिसके लिए अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है |
Audiovisual तरीकों के माध्यम से एवं संग्रह के माध्यम से जनता को लोक परम्पराओं की जानकारी उपलब्ध
कराई जाती रही है | विभिन्न कलाओं पर कई किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं |

यहाँ अनेकों लोक नृत्यों का मंचन भी होता है जैसी घूमर, भवाई , डाकिया, तेरह ताल, कालबेलिया आदि |
कठपुतली बनाना और संचालन करना भी एक बहुत महत्वपूर्ण लोक कला है, अतः इस बारे में भी प्रशिक्षण
दिया जाता है | नाटकों का मंचन लोक कलाओं, रिवाजों, कथाओं एवं भ्रांतियों को उजागर करने के लिए किया
जाता है | कठपुतली बनाने की कला लगभग लुप्त हो चली थी, इस कला के माध्यम से कई कथाएँ आम
जनता तक पहुंचाई गई हैं इसलिए इस कला को भी दुबारा विकसित करने के इरादे से लोक कला मंडल ने
अनेकों कदम उठाए हैं |

हर साल 22 और 23 फरवरी को दो दिवसीय मेले का आयोजन स्थापना दिवस मनाने के लिए किया जाता है |
इस मेले में राजस्थान के कलाकारों के अलावा समीप के राज्यों के कलाकार भी प्रस्तुतियां देते हैं | इस मेले का
मुख्य उद्देश्य उभरते कलाकारों को एक मंच देकर उनकी प्रतिभा को उभारना भी है |

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अबार बालाजी ऊं वात वी
मैं क्यों कई बालाजी
यो सियाला ऊं डारेक्ट चौमासो

यो भी ठीक पण अबरके
असो कई सिस्टम हेक वियो आपरो
यो राजस्थान रो कश्मीर है
भारत रो कोई नी

अटे बरफ कई कांम पाड़ी
मां सब तो डापाचूक वेग्या

बालाजी क्यो देख राधारानी
था उदेपर वाला री डीमांड घणी ही
बस बरफ री कमी है बाकी उदेपुर कश्मीर है

राम जी क्यो एक ट्रक बरफ रो
मेवाड़ उपरे नाक दो।

मैं क्यो वा ओ वा बालाजी म्हारा
कई वेण्डा किदा
बापडा़ वींद पणता टेम
कोट पेरे के रैन कोट ।

ने वरातिया री तो वात मती पूछो
जीमे तो कितर
तापड़ा में मुण्डो गाले के थाली
हमज नी आईरो

ने सबूं मोटी वात
बरफ मे पेरवा रा गाबा
तो माणे पा हे ई कोईनी

थोडो़ तो विचार करो हुकुम

बालाजी पेला तो जोर ऊं हास्या पछे क्यो

मूं जाणू भाया था मेवाड़ रा मनक
थाणी वाता ने गदेड़ा री लातां
कदी जस नी है ।

ओर केवो उदेपुर ने कश्मीर

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हिन्दू धर्म में सुपारी का महत्त्व

सुपारी कहने को एक छोटी सी चीज है लेकिन इसका महत्व छोटा नहीं है वैसे पूरी दुनिया में उत्पादित होने वाली सुपारी का 50% उत्पादन केवल भारत कर लेता है लेकिन फिर भी सुपारी मूलतः भारत की नहीं है यह भारत में फिलिपिंस या मलेशिया से आई है।

खैर पूरे भारत के हर प्रांत में सुपारी का अपना अलग-अलग महत्व है और अलग- अलग नाम है।

उत्तर – पूर्वी भारत में यदि आप किसी घर के अतिथि बनकर जाओ तो सबसे पहले सुपारी खिलाकर आपका स्वागत किया जाएगा। यहां तक की वहां कि परम्परा के अनुसार अगर शादी ब्याह में निमंत्रण पत्र के साथ सुपारी नहीं दी जाए तो सामने वाला अपना अपमान समझता है।

खैर आप तो जानते हैं सुपारी के बिना पान का कोई महत्व नहीं। पान बनाने में जो सबसे असली चीज लगती है वह सुपारी।  सुपारी की कीमत क्या है वह सुपारी खाने वाले जानते हैं मुखवास में सबसे पहला नाम सुपारी का ही आता है हमारे राजा- महाराजा जिन्होंने भी भारत पर शासन किया सभी पान और सुपारी के दास रहे । फिर सादा पान हो चाहे मीठा पान सुपारी के बिना नहीं बनता इसलिए उत्तरी भारत में भी सुपारी का अपना महत्व है।

वैसे महत्व की बात की जाए तो सुपारी का महत्व हिंदू धर्म शास्त्र में भी बहुत ज्यादा है वैदिक साहित्य में भी सुपारी का व्याख्या है। सुपारी को पूजा पाठ में अवश्य रूप से प्रयोग किया जाता है। यहां पर भी दो तरह की सुपारी है गोल और मोटी सुपारी को जिसे खाने में इस्तेमाल करते हैं वहीं पतली और लंबी सुपारी पूजा में इस्तेमाल की जाती है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हमारी कोई पूजा सुपारी के बिना पूरी नहीं हो सकती। यहां तक की दो पान के पत्ते के ऊपर सुपारी रखकर जनेऊ लगाना गणेश जी और गौरी मां का स्वरूप माना जाता है। सुपारी को मां लक्ष्मी का स्वरूप भी माना जाता है। कई विधि विधान और यज्ञ- हवन में सुपारी को नवग्रह के रूप में भी पूजा जाता है। वैसे सुपारी सिर्फ पूजन में या शौक से खाने में नहीं बल्कि आयुर्वेद में भी इस्तेमाल की जाती है बच्चे के जन्म के बाद जच्चा को सुपारी के लड्डू भी खिलाए जाते हैं। सुपारी को पेट की ,दांतो की कई सारी समस्याओं के लिए औषधि के रूप में काम में लिया जाता है।

तो है ना छोटी सी सुपारी बड़े काम की चीज
खैर! https://one2all.co.in/
अंत में एक ज्ञान देती हूं
सुपारी को पूजन में काम में लेने के बाद कभी भी इधर उधर ना फेंके या तो उसे पानी में प्रवाहित कर दें या उसे अलमारी में रखें
हिंदू मान्यताओं के अनुसार सुपारी मां लक्ष्मी का स्वरूप है और पूजन की गई सुपारी को अलमारी में रखने से धन और समृद्धि की वृद्धि होती है।

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10 Best Schools In Udaipur 2023

Every parent wants to enrol their child in a school that will provide them the greatest education possible and place a strong emphasis on their overall development. These institutions are referred to as Great Schools. We will assist you in finding the best school in Udaipur for your child in this post. You may use this list of the Top 10 Schools in Udaipur to find the best schools for your child in Udaipur that provide the CBSE, an international curriculum, or both. Best international schools and Best CBSE schools are included in the list of 10 best schools in Udaipur. Explore the list of the top 10 schools in Udaipur for the academic year 2022–2023.

1. Rockwoods High School

list of 10 best schools in udaipur

For the purpose of preparing students for the ICSE (Indian Certificate of Secondary Education) and the IGCSE (International General Certificate of Secondary Education) exams, the school is connected with CBSE and CIE (Cambridge International Examinations). We provide all the tools and chances that the top schools in Udaipur could boast of for our pupils. We are regarded as the top international school in Udaipur and are among the best institutions in the city.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Address: Shyam Nagar, Chitrakoot Nagar, Udaipur, Rajasthan 313001

Contact: 096027 71911

2. Central Public School

top schools in udaipur

Since 1989 CE, Central Public Senior Secondary School, often known as CPS, a K–12 CBSE accredited school, has been providing progressive teaching and serving the community under the shadow of the majestic Aravalli Hills. After seeing a need in the city’s educational infrastructure, Mrs. Alka Sharma established this highly regarded educational institution, which is know one of the best CBSE schools in Udaipur.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Address: New Bhupalpura, Kharakua, Udaipur, Rajasthan 313001

Contact: 0294-2415641 / 2413651

3. Seedling Modern Public School

top school in udaipur

One of the most prominent co-educational English-medium schools in Rajasthan, India, is Seedling Modern Public School, Sapetia, Udaipur. It is a private institution managed by the Seedling group. The Central Board of Secondary Education (CBSE), the largest educational board in the nation, is linked with Seedling Modern Public School. The school’s superb facilities and the direction given by a highly skilled and committed staff help to create a stimulating and competitive environment. These characteristics have elevated seedling school in the list of top 10 CBSE schools in Udaipur. The School has changed and grown, but its aim has remained constant.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Address: Bedla Road Pratappura, Sapetiya, Rajasthan 313001

Contact: 099288 51305

4. Laureate High School

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One of the top schools in Udaipur is Laureate High School, which is co-educational from classes I through VIII and is eager to join the Central Board of Secondary Education, New Delhi (CBSE). With the aim of preparing students for the All India Secondary and Senior School Certificate Examinations, the school has a fantastic team of skilled and certified personnel. English is the language of teaching.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Classes: Nursery to VII

Address: Sadhwaswani building, Kodbadiya bheruji Marg Near Nagendra bhawan, Hiran Magri, Sec.4, Udaipur, Rajasthan.

Contact: 0294-3550144 (Landline), +91 8696999905 (School no.)

5. Ryan International School

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A Senior Secondary School (XI-XII) connected with the Central Board of Secondary Education, Ryan International School is located in Hiran Magri, Udaipur (CBSE). The school offers subjects from Nursery to XII and is coed. It is a school with an English medium. The school is situated in Udaipur’s Hiran Magri neighbourhood. In 2012, Ryan International School, Hiran Magri, was founded. It is a Private School that is run by The Ryan International Group of Institutions and a member of Ryan International Schools.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Address: I Block, Goverdhan Villas, Sector 14, Hiran Magri, Udaipur, Rajasthan 313001

Contact: 0294-5138006, 0294-2482990

6. Witty International School

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In order to provide Udaipur with a world-class educational environment and chances for coeducation, Witty International School is a K–12 coeducational international day school. All of our students are given the tools, bravery, optimism, and integrity they need to follow their aspirations and improve the lives of others. We encourage all of our students to engage in continual inquiry. The school is associated with both the IGCSE and the CBSE Board. On the major Nathdwara road, which is part of the NH8 route, is where the 4-acre school complex is situated. There are about 210 employees overall in this institution.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Address:
a. Witty International School, 1 Witty Lane, Gaurav Path, Nathdwara Rd, opp. BP Petrol Pump, Sukher, 313004
b. Witty World Udaipur, Plot No-1F, Opp State bank of India, Near City Railway Station Patel Circle, Udaipur, Rajasthan 313001

Contact:
a. 092142 55667
b. 090249 74107

7. Delhi Public School

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Co-educational day and boarding school Delhi Public School (DPS), Udaipur was founded in 2007 by Mr. Govind Agarwal, Pro Vice Chairman. The Central Board of Secondary Education (CBSE), New Delhi, is connected with the institution. DPS Udaipur has established itself as a prestigious institution, thus it is an enormous honour that the Education World Agency has ranked it third in Rajasthan for finest co-education cum boarding school and ninth in India for best architecture and design.

Affiliation:
CBSE

Medium: English

Address: Pratapnagar, Bypass, Bhuwana, Udaipur, Rajasthan 313001

Contact: 099280 11961

8. Maharana Mewar Public School

10 best school in udaipur

The one of the best schools in Udaipur, Maharana Mewar Public School is an english medium school affiliated with Central Board of Secondary Education (CBSE), New Delhi. It was established in 1974 by the Vidyadan Trust under the direction of Late His Late Highness Maharana Bhagwat Singh Ji Mewar of Udaipur with the goal of offering children of all backgrounds, regardless of class or creed, high-quality education while ensuring their well-integrated physical, intellectual, moral, and social development to maximise their perfectibility.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Address: HMHM+3Q2, City Palace complex, near Jagdish Mandir, Rajasthan 313001

Contact: 0294 2419021

9. Heritage Girls School

school in udaipur

The 2014-founded Heritage Girls School rises to the challenge of fostering students’ unique gifts and abilities while fostering moral excellence, academic brilliance, leadership, social responsibility, and physical wellbeing. The Heritage Girls’ School, which enrols girls in grades 5 through 12, is perched picturesquely on a lush hill on the shores of Lake Baghela close to Eklingji, Udaipur. The Central Board of Secondary Education in New Delhi and the Cambridge Assessment International Examination in the United Kingdom are both connected with the institution.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Address: National Highway 8, Eklingji, Rajasthan 313001

Contact: +91-9414043407

10. Step By Step High School

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The institution opened its doors in 2004. Step By Step High School, co-ed is associated with the Central Board of Secondary Education (CBSE), and Step By Step Sansthan oversees its management. Committed to the holistic development of children, with a primary focus on their physical, emotional, intellectual, technical, and social growth and well-being. This gives students a wide range of options to learn things outside of their primary academic disciplines.

Affiliation: CBSE

Medium: English

Address:
1. Sector No.11, Hiran Magri, Udaipur, Rajasthan 313001
2. Jogi Ka Talab Road, opp. Vill Nehla, Sector 14, Hiran Magri, Udaipur, Rajasthan 313002

Contact: +91-9694316787, 9680520421

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акции второго эшелона это

Дело в том, что второй эшелон — это не пространство для классического трейдинга. И в любой момент цена может как взлететь процентов на 20–50, а то и на 100, так и упасть. Ниже годового пика, что даёт условные 27% роста до полного восстановления. Для сравнения, Индекс средней и малой капитализации сейчас на 630 п.

Акции 1-го, 2-го и 3-го эшелона на фондовом рынке-что это за “эшелоны” и чем они отличаются друг от друга.

По РСБУ чистая прибыль ДВМП за девять месяцев выросла в 12 раз по сравнению с аналогичным периодом прошлого года. ДВМП развивает Восточный полигон и планирует нарастить объем грузоперевозок в полтора раза к 2030 году. Также к историям роста можно отнести девелопера «Самолет».

Выводы для инвесторов

За III квартал выручка компании выросла в 2,7 раз (3,5 млрд рублей), а чистая прибыль — в 6,9 раза по сравнению с тем же периодом прошлого года. «Если компания продолжит удваивать выручку в следующие годы, у нее есть потенциал. Даже несмотря на то, что акция близка к своему историческому максимуму и в два раза дороже годовых минимумов», — говорит главный аналитик УК «Ингосстрах-Инвестиции» Виктор Тунёв. «Группа акции второго эшелона Позитив» наращивает бизнес за счет того, что занимает нишу ушедших иностранных компаний. Кроме того, среди корпоративных клиентов Positive Technologies теперь все крупнейшие российские корпорации, добавляет Сергей Суверов из «Арикапитал». В отличие от многие крупнейших компаний, игроки второго эшелона продолжают публиковать отчетность, обращает внимание инвестиционный стратег УК «Арикапитал» Сергей Суверов.

в день: стоит ли покупать акции второго и третьего эшелона

  • Также можно ориентироваться на котировальные списки Мосбиржи.
  • О подобных кейсах знает и секретарь генсовета Российско-азиатского союза промышленников и предпринимателей Максим Спасский.
  • Акции большинства известных крупных корпораций являются голубыми фишками.
  • Прежде, чем акция начинает обращаться на фондовом рынке, она проходит процедуру листинга.
  • Отсутствие каких-либо сделок с активами третьего эшелона на протяжении нескольких дней – в порядке вещей.

А это означает, что в будущем они могут и «взлететь» в цене. Но нередко оказываются переоцененными и в последующие 12 – 24 месяца стоимость их ценных бумаг падает на 75 – 80%. Как видите, самые жесткие требования для акций первого эшелона. Акции из третьего эшелона могут вообще не представлять отчётность, не раскрывать данные о компании и т.д. Раз уж так получилось, рынок второго эшелона — та поляна, которая давно уже стала моим основным местом работы.

Стать инвестором легко

Отсутствие каких-либо сделок с активами третьего эшелона на протяжении нескольких дней – в порядке вещей. А это в свою очередь ведет к высоким спредам (когда продать акции практически невозможно без убытка) и огромной волатильности, которую невозможно достоверно спрогнозировать. Однако, акции второго эшелона не теряют интереса инвесторов и объема торгов, так как именно на них можно быстро, хоть и рискованно, получить прибыль. Важно понимать, что компании-эмитенты второго эшелона – это совсем не маленькие организации. Но, зачастую, их названия не так популярны, как, например, Газпром или Сбербанк. Они выпускают в свободную торговлю гораздо меньше акций, что снижает их ликвидность, и при этом повышает вероятность значительного изменения цены.

акции второго эшелона это

Проблема стала проявляться с лета этого года, а ее главным триггером стало принятое США в декабре 2023 года решение накладывать вторичные санкции на финучреждения, финансирующие торговлю с Россией, говорит Окромчедлишвили. О подобных кейсах знает и секретарь генсовета Российско-азиатского союза промышленников и предпринимателей Максим Спасский. Такой перевод был заблокирован Bank of China, который выступал банком-корреспондентом для БЦК, поскольку у последнего нет прямых корреспондентских отношений с Chouzhou. Наоборот — радоваться, что есть возможность купить задешево — нашелся продавец, готовый по какой-то причине недорого расстаться с бумагами. 3️⃣ Глубокий анализ компании, понимание ее бизнеса и трендов.

Это дает базовую информацию для анализа потенциального роста стоимости ценных бумаг. Поэтому ещё до инвестирования следует вспомнить о правиле диверсификации инвестиционного портфеля. А это означает, что на них не следует выделять более 15 – 20% от всей инвестиционной «корзины». Термин «голубые фишки» можно воспринимать как синоним акциям первого эшелона. В традиционных казино «голубая» — это фишка крупного номинала.

Это позволяет оставаться им в поле зрения инвесторов, потому что многие из них не имеют преимуществ громкого имени, как в индексе Мосбиржи. Поэтому они привлекают инвесторов прозрачностью, регулярно сообщая о ключевых показателях своей деятельности. И те, и другие можно найти среди бумаг второго эшелона. Начинающие инвесторы наслышаны о надежности голубых фишек, а к другим эшелонам ценных бумаг относятся с осторожностью. В реальности же менее ликвидные активы не лишены собственного потенциала.

Для использования возможности получить прибыль от инвестиций во второй эшелон акций важно научиться отличать их от других бумаг и разобраться в рисках и особенностях торговли. Все это, а также понятие индекса РТС-2 и примеры российских / иностранных компаний в обзоре. Но в целом, нужно понимать, что уровень листинга не говорит об инвестиционном качестве акции, все зависит от самой компании.