यूं तो देवी देवताओं के मंदिरों के बारे में कुछ ना भी कहा जाए, तो भी जनसाधारण अपने ह्रदय में भक्ति लिए वहां पहुँच ही जाते हैं और एक दूसरे के द्वारा अनायास ही मंदिर की महिमा का प्रचार होने लगता है | बहुत से मंदिर ऐसे हैं जिनके पीछे कोई न कोई कहानी है, कोई न कोई मान्यता है |
एक ऐसा ही मंदिर है जिसकी सादगी ही उसकी सुन्दरता है | यह मंदिर है जैसलमेर में जगदम्बा माता का मंदिर जो कि बॉर्डर होम गार्ड्स के कैंपस में बनाया गया था | यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि डिफेन्स फोर्सेज जगदम्बा माता की पूजा करती हैं क्योंकि ये शक्ति की देवी हैं |
जैसलमेर में सम रोड पर है बॉर्डर होम गार्ड्स का कैंपस जिसकी स्थापना के पीछे भी एक जबरदस्त कहानी है | इस समय हम माता के मंदिर की बात कर रहे हैं तो उन्हीं के बारे में बताते हैं |
2 मई 1986 में अक्षय तृतीया की पावन तिथि को इस मंदिर की नींव रखी गई | यह कार्य उस समय के कमांडेंट श्री सुभाष गोयल द्वारा किया गया| श्रद्धा भाव क्या नहीं करता! बॉर्डर होम गार्ड्स के सभी कर्मचारियों के समक्ष यह बात रखी गई थी किसी भी हाल में मंदिर बनायेंगे और सरकार से पैसा नहीं लेंगे,(चन्दा भी नहीं एकत्रित किया) जिसके लिए कमांडेंट सहित सभी कर्मचारियों ने आपसी सहमति से पैसा एकत्रित करने की योजना पर विचार किया | मंदिर बनाने के लिए काफी धन की ज़रूरत थी, इसलिए सभी ने अपनी तनख्वाह में से पैसे कटवाने की बात को सहर्ष स्वीकारा | इस प्रकार मंदिर बनाने का कार्य शुरू किया गया था | मंदिर को बनने में एक वर्ष से थोड़ा सा कम समय लगा क्योंकि ये कर्मचारियों द्वारा ही बनाया गया था, इसके लिए किसी भी प्रकार के बाहरी व्यक्ति का सहयोग नहीं लिया गया | मंदिर का सम्पूर्ण डिज़ाइन कमांडेंट श्री गोयल ने ही तैयार किया | 27 मार्च 1987 को जगदम्बा माता की मूर्ती की प्राण प्रतिष्ठा हुई जिसमें समस्त शहरवासी उमड़ पड़े थे | माता की मूर्ती जयपुर से श्री गोयल स्वयं लेकर आये थे | मंदिर के ऊपर गुम्बद बना कर उसके चारों तरफ कमल की पंखुड़ियां बनाई गईं और सोने के तीन कलश लगाये गए |
मंदिर बनने के कुछ समय पश्चात यहाँ एक मुसलमान किसान पैदल चलता हुआ पहुंचा | वह बहुत परेशान सा मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ गया | उससे जब परेशानी का कारण पूछा गया तो उसने बताया कि उसका ऊँट कहीं खो गया था और उसे विशवास था कि जगदम्बा माँ उसका ऊँट वापस लाकर देंगी | तब उससे पंडित जी ने मंदिर के अन्दर जाकर शीश झुकाने को कहा | वह किसान झिझक रहा था क्योंकि वो मुस्लमान था और उसे डर था कि लोग उसे मंदिर के अन्दर नहीं जाने देंगे | माँ के लिए क्या हिन्दू क्या मुसलमान…
कमांडेंट साहब के ऐसा कहने पर वह डरता डरता हाथ जोड़कर ज्यों ही माता का नाम जपता हुआ सीढियां चढ़ने लगा, तभी कहीं से उसका बेटा भागता हुआ आया और उसने बताया कि ऊँट वापस घर आ गया और उसके गले में चुनरी बंधी थी | ये जगदम्बा माता की महिमा का ही कमाल है कि आज भी उस मुसलमान के परिवार वाले मंदिर अवश्य आते हैं और सभी को प्रसाद बांटते हैं |
मंदिर की ख्याति का आलम यह है कि नवरात्रों में समूचा जैसलमेर ही नहीं, आसपास के गाँवों के लोग भी यहाँ शीश नवाने आते हैं | शहर से सभी लोग पैदल चलते हुए बिना जूते चप्पल पहने यहाँ आते हैं | हर रोज़ कोई न कोई यहाँ आने वाले सभी भक्तों को प्रसाद झिलाता है |
मंदिर में एक ओर सफ़ेद संगमरमर पर श्लोक भी लिखा गया है |
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते |