‘दो कौड़ी की हैसियत हो जाना’ (बरबाद हो जाना)
‘कौड़ियों के भाव’ (बहुत सस्ता)
‘दूर की कौड़ी लाना’ (कोई अच्छा सुझाव देना)
‘कौड़ी’ हमारे जीवन के प्रत्येक कार्य-कलाप से जुड़ी हुई है। मनुष्य इसकी पूजा करता है तो इससे श्रृंगार भी करता है। इससे जुआ खेलता है तो इससे औषधि भी बनाता है। इस बात के प्रमाण हैं कि आदिकाल में भी कौड़ी बेहद मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण थी और लोग इसे सहेज कर रखते थे। विश्व भर में जहाँ-जहाँ भी ऐतिहासिक खुदाइयाँ हुई हैं, वहाँ कौड़ी अवश्य मिली हैं।
कौड़ी जल में पाये जाने वाले जीव का खोल (अस्थि कोश) मात्र है।
कौड़ियाँ मुख्यत: हिन्द और प्रशान्त महासागर के तटीय जल में मिलती हैं।
कौड़ियों का इस्तेमाल मुद्रा के रूप में भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व के देशों में किया जाता था ईस्ट इंडिया कंपनी ने तो अपने जहां भी उपनिवेश बनाएं वहां कौडियों के दम पर ही राज किया।
तटीय क्षेत्रों में कौडियों का इस्तेमाल मुद्रा के रूप में सबसे ज्यादा होता था।
अफ्रीका में आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में कौडियों का इस्तेमाल मुद्रा के रूप में किया जाता है।
वाराणसी में तो कोड़ी माता का मंदिर भी है।
वाराणसी जाए तो यहां दर्शन जरूर करें जहां प्रसाद के रूप में कौडियों ही चढ़ाई जाती है और कौडियों का ही प्रसाद मिलता है।
पुराने समय में कौड़ी का उपयोग आभूषण के रूप में भी बहुत किया जाता था तटीय क्षेत्र के इलाकों में तो कौड़ी के आभूषण पहनना बहुत ही बड़े वर्चस्व की बात होती थी।
आज भी हमारे यहां विवाह के समय वर वधु के कांकण कोड़ी हाथ पर बांधी जाती है।
आज भी लक्ष्मी पूजन में दीपावली पर हम मां लक्ष्मी के सामने कौड़ी जरूर रखते हैं
सजावटी सामान में आज भी कौड़ियों का उपयोग किया जाता है।
कई सारे पूराने खेलों में पासे के स्थान पर कौड़ियों का इस्तेमाल होता था ।
मुझे बचपन से ही इन कौडियों ने बहुत आकर्षित किया आज भी मेरे घर में कौडियों से बने कई सारे सजावटी सामान है।
आज कौड़ी का उपयोग
भले ही कौड़ी का ना रहा हो
लेकिन कौड़ी का अस्तित्व
कौड़ी का नहीं है।