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कोटा की कोटा डोरिया साड़ी

कोटा में बनने वाली सिल्क और कॉटन की साड़ियाँ जिनकी खासियत है चौकड़ीनुमा डिज़ाईन, वजन में बेहद हलकी और जिनकी बनावट बेहद बारीक होती है, समूचे भारत में कोटा डोरिया के नाम से प्रसिद्द हैं | शुरूआती दौर में इन साड़ियों को मसूरिया कहा जाता था क्योंकि ये मैसूर में बनती थीं | फिर मुग़ल सेना के सेनापति राव किशोर सिंह इन बुनकरों को कोटा के एक नगर में लेकर आ गए | सत्रहवीं शताब्दी के अंत और 18वीं शताब्दी की शुरुआत में सभी बुनकरों को कोटा में ही स्थापित कर दिया गया | तभी से इनके द्वारा बनाई हुई साड़ियाँ “कोटा-मसूरिया” के नाम से मशहूर होने लगीं |
पारम्परिक करघे पर ये साड़ियाँ ऐसे बनाई जाती हैं कि उनमें चौकड़ी(square) बनने लगती है जिनका आकार खाट के जैसा होता है | इन साड़ियों को बनाने वाले धागे पर प्याज का रस और चावल का पेस्ट लगाया जाता है जो कि धागे को बहुत मजबूत बना देता है |

ये साड़ियाँ कोटा में मसूरिया के नाम से और कोटा के बाहर कोटा डोरिया के नाम से ही जानी जाती हैं | डोरिया का अर्थ धागा होता है | अब इस कोटा डोरिया के कपड़े से कई चीज़ें बनने लगी हैं जैसे सलवार कमीज़, लैंप शेड्स, कुर्तियाँ,परदे आदि |

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