* जीवन * रूप है एक होटल का,
यात्री है हम सब कुछ समय के,
कोई रहता है नब्बे तो कोई सत्तर, कोई पचास, तो कोई चालीस,
किसी ने, एसी, कमरा बुक कराया है ,तो किसी ने नॉन एसी ,
कोई कॉमन हाल में खड़ा है,
तो कोई बाहर यूं ही खड़ा है,
जानते हैं हम सभी के,
रह कर जाएंगे चंद दिनों में,
फिर भी तेरा मेरा करते रहते हैं,
यूं ही आपस में लड़ते झगड़ते रहते हैं,
जी जी कर भी मरते रहते हैं ,
एक दिन तो वह भी आएगा,
चेक-आउट सभी का हो जाएगा, फिर कुछ याद आएगा ,
पछताएंगे,
पर तब तक,
वक्त, हाथ से निकल जाएगा, इसलिए इस होटल रूपी जीवन में चेक इन, करते ही,
कर लें, कुछ अच्छे कर्म,
वरना जाते समय रह जाएगा यह गम,
के क्यों हमने पहले नहीं सोचा था ,
क्यों हमने पहले नहीं जाना था,
कोई बात नहीं,
अब भी, समय है, जान ले, वक्त है, अपने आप को, पहचान ले,
करेगा भला, तो होगा ही भला, शुरुआत अच्छी है, तो अंत होगा ही अच्छा,
कुछ सबर तू यदि कर ले ,
तो क्या हो जाएगा,
जीवन रूपी होटल में,
रहने जब आया ही है,
तो कुछ ऐसा कर,
कि जाने के बाद,
याद ही आएगा, याद ही आएगा,
-अनीता सुखवाल
अम्बा माता
उदयपुर