खोया बचपन
*छत पे सोये बरसों बीते*
*तारों से मुलाक़ात किये*
*और चाँद से किये गुफ़्तगू*
*सबा से कोई बात किये।*
*न कोई सप्तऋिषी की बातें*
*न कोई ध्रुव तारे की*
*न ही श्रवण की काँवर और*
*न चन्दा के उजियारे की।*
*देखी न आकाश गंगा ही*
*न वो चलते तारे*
*न वो आपस की बातें*
*न हँसते खेलते सारे।*
*न कोई टूटा तारा देखा*
*न कोई मन्नत माँगी*
*न कोई देखी उड़न तश्तरी*
*न कोई जन्नत माँगी।*
*अब न बारिश आने से भी*
*बिस्तर सिमटा कोई*
*न ही बादल की गर्जन से*
*माँ से लिपटा कोई।*
*अब न गर्मी से बचने को*
*बिस्तर कभी भिगोया है*
*हल्की बारिश में न कोई*
*चादर तान के सोया है।*
*अब तो तपती जून में भी न*
*पुर की हवा चलाई है*
*न ही नानी माँ ने कथा*
*कहानी कोई सुनाई है।*
*अब न सुबह परिन्दों ने*
*गा गा कर हमें जगाया है*
*न ही कोयल ने पंचम में*
*अपना राग सुनाया है।*
*बिजली की इस चकाचौंध ने*
*सबका मन भरमाया है*
*बन्द कमरों में सोकर सबने*
*अपना काम चलाया है।*
*तरस रही है रात बेचारी*
*आँचल में सौग़ात लिये*
*कभी अकेले आओ छत पे*
*पहले से जज़्बात लिये!!!*
Regards,
Gaurav kothari
Udaipur
9413093674.