बलात्कार [ एक सत्य घटना ]
बलात्कार [ एक सत्य घटना ]
मुन्नी! उठ देख बाहर क्या हो रहा है हमारी कालोनी में चोर आया है ,सब उसे पीट रहे हैं।
चोर!!!! मैने चद्दर में से मुंह निकालते हुए डर और उत्सुकता के सम्मिलित भाव से दीदी को देखते हुए बोला।
हां, चोर अब उठ मुन्नी
अपनी आँखों को मसलते हुए, क्षणिक मन में खयाल आया की छत पर देर तक सोते रहने के मजे तो बस गर्मी की छुट्टियों में ही ले सकते हैं और इस निगोड़े चोर ने सब बिगाड़ दिया
“अरे मुन्नी बिस्तर में बैठी क्या सोच रही है इधर आ ना ”
इस आवाज को सुनते ही मेरी सारी इंद्रियांं एक साथ काम करने लगी,क्योंकि ये मेरी सहेली सोनु की आवाज थी, जो अपनी छत से मेरी छत पर दौड़ती आ रही थी, तब छतों के बीच दीवार नहीं हुआ करती थी हम सब बच्चे घरों की छतों पर सरपट दौड़ते थे, रेस करने को,
अरे उठ तुझे चोर नहीं देखना क्या? दीदी छत की डोली पर खड़ी- खडी़ फिर से मेरी तरफ देख बोली।
“पर मुझे डर लगता है चोर बहुत डरावने होतें हैं। “मैं अपनी गोल- गोल आखोँ को फैलाते हुए बोली।
“अरे नी लगेगा मुन्नी ये चोर डरावना नहीं है” सोनु ने इतना कहा और मेरा हाथ खींच कर उसके घर की छत की डोली तक ले गयी।
नींद से सराबोर मैंने जब अपनी आँखों को मसलते हुए, डर और उत्सुकता के मिश्रित भाव के साथ छत से नीचे झांका
पूरी कालोनी के लोग, मेरे घर से एक घर दूर भगवती अंकल के घर के आसपास खड़े थे, मैं सोनु के घर की छत पर खड़ी थी जो भगवती अंकल के घर के बिल्कुल सटा हुआ था तो उस घर के आसपास होने वाला घटनाक्रम मुझे स्पष्ट दिख रहा था।
अचानक मैने देखा भगवती अकंल एक मोटे से डंडे को हाथ में लिये, गुस्से में लाल पिले होते हुए, अजीब सी गालियाँ दे रहे थे, (वे गालियाँ मुझ 8 साल की बच्ची के लिए अनजान थी,लेकिन आज उन अपमान जनक शब्दों का अर्थ जानती हूँ )
और उस मोटे डंडे से मेरी दीदी जितनी बड़ी लगभग 16-17 साल की लड़की को पीट रहे थे।
इनको अंकल क्यों मार रहे हैं सोनु, मेरे ये पुछने पर वो तपाक से बोली
“अरे मुन्नी यही तो चोर है ”
चोर! लेकिन मेरी कल्पनाओं का चोर तो काला सा, बड़ी-बड़ी दाढ़ी-मूछो वाला, लाल- लाल आखोँ वाला था बड़ा ही भयानक और डरावना था
पर ये तो डरावनी नहीं थी, बिखरे -उलझे बाल, रूआसी उदास आँखे, बहुत रोने से चेहरे पर मंडित आसूंओं के निशान, सूखे होठ, डर से थरथराता शरीर, कपड़ों के नाम पर बदन पर सिर्फ सफेद मेक्सी जो नीचे से खून से लाल हुए जा रही थी ,खुद के रक्तिम कपड़ों को अपने हाथों से ढकने का निष्फल प्रयास करती हुई जाने क्यों वो आदमियों की टोली से डरते हुए, बार -बार वहाँ जाने की कोशिश कर रही थी, जहाँ मम्मी और सब आन्टी खड़ी थीं।
“इसने क्या चुराया होगा ?” मेरा बाल मन सोच में खो गया………. !
लेकिन अचानक मैंने देखा वो लड़खड़ाते हुए हाथ जोड़कर सब औरतों से मदद मांग रही थी कि अचानक सामने रहने वाले आंटी बोले इसने मेरी बेटी की मैक्सी चुराई है।
कोने वाले घर में रहने वाली आंटी बोली सारी रात आटो की आवाजें आ रही थी ,हमने खिड़की से देखा आटो में बैठे 5-6 लड़के हाथ में तलवार लिए इधर-उधर आटो दौड़ा रहे थे।
इतने में मेरे बिल्कुल बगल में रहने वाली आंटी बोली हमारी गुड्डा पढ़ रही थी रात में बाहर नीम के पेड़ के पास एक लाल रंग से सनी बिना कपड़ो की खुले बाल वाली चुड़ेल देख डर गई बिचारी , कहीं वो यही तो ना थी ।
भगवती अंकल बीच में लपके मेरे खुले आंगन में पड़े बिस्तर पर सो गई सारे बिस्तर खराब कर दिये।
उसकी जिव्हा जैसे शब्दों को बोलने के प्रयास में व्यर्थ थी।उसकी आंखों से रिसते आंसू और शरीर से रिसता खून उसके दर्द को बता रहा था पर
मानवता उस दिन अवकाश पर थी ,इनसानियत घुंघट ओढ़ कर बैठी थी ।
अंत में सब लोगों ने उसे मार पीट कर हमारी गली से निकाल दिया।
और वो रोती हुई बेबस हालात में खून से भरी उस मैक्सी को पहने ,शरीर से टपकते खून के साथ जाने कहां चली गई।
भगवती अंकल ने सामने के पार्क में वो खून से सने बिस्तर फेंक दिये।
उसी दिन शाम को अचानक पुलिस वाले कुछ पूछताछ करने आये ।
उनमें से एक पुलिस अधिकारी हमारे रिश्तेदार थे सो पिता जी के आमंत्रण पर चाय पीने घर आये ।
बातों बातों में उन्होंने मां -पिताजी को बताया की एक नामचीन कालेज में पढ़ने वाले लेकिन आपराधिक प्रवृत्ति वाले कुछ लड़कों ने उसी कालेज की छात्रा जो हास्टल में रहती थी को कल दिन में कालेज के बाहर से किडनेप कर लिया ।
और उसका सामुहिक बलात्कार किया ।
रात में लड़की मौका देखकर निर्वस्त्र अवस्था में भागी ।
उन लोगों ने उसका पीछा किया ,उसे मारने के लिए और खबर है वो लड़की इसी तरफ आई थी ।
बिचारी बच्ची के माता पिता का बुरा हाल है।
उनमें से एक गुंडा पकड़ा गया आज सुबह उसी ने सारी कहानी बताई।
आगे पुलिस अंकल ने पूछा क्या आपने उस लड़की को देखा ।
मेरे मा पापा स्तब्ध थे ।
साथ ही स्तब्ध थी हमारी पूरी कालोनी।
एक अपराधबोध का भाव सबको खा रहा था ।
लेकिन क्या मेरे कालोनी वाले उन बलात्कारियों के समान अपराधी नहीं थे।
गुंडों ने अगर उसका शारीरिक शोषण किया था तो क्या हमारी कालोनी ने उसका मानसिक शोषण नहीं किया था ।
आज भी बचपन की ये घटना मेरी रूह कपां देती है।
आज भी मेरी आंखे उन दीदी को ढूंढती है जिनके साथ गलत किया था मेरे आसपास रहने वाले मेरे अपनों ने ।
काश एक बार मैं उनसे माफी मांग सकूं की माफ कर दो उन नर पिशाचों को जो सभ्य समाज में रहते हैं बड़े बड़े विषयों पर सरकार और प्रशासन को दोष देते हैं लेकिन जहां इन्सानियत की बात आती है तो इतना घृणित कार्य करने से नहीं चूकते।
✍ राधा