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बचपन की कुछ अनोखी यादें

बचपन वाली नारंगी गोलिया

ये खट्टी मीठी सी नारंगी गोलिया जो आज भी हमारे बचपन की यादे ताज़ा कर देती है।
ये गोलिया मार्केट मे कही ना कही दिख ही जाती है लेकिन अब वो बचपन कही गुम है जो इन्हे बड़े शौक से खाता था …
वो बचपन जो अब कही खो गया हैं मोबाइल मे, महंगे खिलोनो मे,वीडिओ गेम्स मे, फ़ास्ट फ़ूड मे और बड़ी बड़ी स्कूल की किताबों मे और भारी स्कूल बैग्स मे।

बचपन जीने का भी वक़्त नहीं आज के बच्चों को।
क्या बचपन हुआ करता था 80 90 के बच्चों का …ना कोई फिक्र ना कोई परवाह बस अपनी ही बेफिक्री और मस्ती भरी दुनिया थी…नादान सा अल्हड़ बचपन जिसमे मदमस्ती मे जीते , बड़े बड़े सयुंक्त परिवार, नानी दादी का लाड, चंदा मामा की कहानियाँ,कोमिक्स,सितौलिया, मोहल्ले के बच्चों के साथ छुपनी,किराये की साईकिले,पुरे परिवार के साथ टीवी देखना,टीचर्स का सम्मान, तीज त्योहारों पर रसोई मे पकवानो की खुशबु जो घर की सभी महिलाये मिल कर बनाती और हम मज़े लेते…

बड़ो का डर और प्यार दोनों साथ साथ.. सिमित सी चीज़े उनमे भी खुश।

तब माँ पिज़्ज़ा नहीं शक्कर का पराठा बनाती उसमे जो ख़ुशी होती वो आज फाइव स्टार के पकवानो मे भी नहीं मिलती।
खुशनसीब है वो बच्चे जो आज भी ये बचपन जी पा रहे है…
कितना याद आता है बचपन.. इन गोलियों को देखते देखते ना जाने कब मन मीठी यादो मे खो गया और फिर से मचल उठा उन्ही पलों को जीने के लिए जो आज की भागती दौड़ती ज़िन्दगी मे बहुत पीछे छुट गए है…
लेकिन अब ना वो बचपन आएगा ना वो वक़्त

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