कहीं धूप तो कहीं छाँव
अपनी मिट्टी से जुड़े रहने का फायदा हम सभी जानते हैं | अपनी यादें, अपनी ज़मीं, सब कुछ अपना सा, वही अपनी मिट्टी | मिट्टी से लिपी हुई जगह और उसपर केलू की छत पड़ी हो तो उसकी ठंडक का आनंद कुछ और ही है | एसी में वो मजा नहीं, जो खुली हवा खुले आसमान के नीचे ऐसी किसी जगह में है जिसे हम नेचुरल एसी कह सकते हैं |
केलू की छत बहुत ठंडक देती है गर्मी में | गांवों में आज भी केलू वाले घर दिख जायेंगे, शहर में तो लोग स्टाइल के तौर पर लगाने लगे हैं | ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी पुरानी यादों को ताज़ा रखने के लिए घर की छत को केलू से ढकते हैं | पहली बारिश में भीगे केलू जो सोंधी सोंधी महक देते हैं, उसके लिए हम शहर वाले तरसते हैं |
कभी किसी ऐसी जगह में जाकर बैठिएगा इन गर्मियों में जहाँ केलू लगे हों, हवा चल रही हो, पत्ते भी उड़ रहे हों, सूखे पत्तों की सरसराहट भी बहुत कुछ कहती है | एक तरफ सूखी घास से ढकी हुई जगह, एक तरफ से खुली हुई, ऊपर केलू और आप वहां बैठे हों और छाछ का मजा ले रहे हों, कुछ दोस्त साथ हों और स्कूल कॉलेज के दिनों की यादें ताजा करी जा रही हों, घास से ढकी जगह में से छनती हुई धूप आ रही हो और अगर उसी समय बूंदाबांदी शुरू हो जाए तो पिकनिक वाला समा बंध जाए …ऐसा चाहेंगे न आप ? इससे बढ़िया ब्रेक क्या मिलेगा तनाव भरी ज़िंदगी से !!