बेटियों की हकीकत बयाँ करती कविता
मेरी कोख से आये यहाँ और,मुझे ही कोख में मार दिया
बेटा पाने की ख़्वाहिश में,सारी हद को पार किया
अपने घर में भी मुझको,कभी ना किया रक्षित है
बताओ मेरे देश की बेटी,आज कहाँ सुरक्षित है
देखा जिसने जहाँ मुझे और,इतना यूँ लाचार किया
अपने भीतर रखी जो तुमने,इंसानियत को मार दिया
नाज़ुक बदन ये रहता मेरा,दर्द से सदा ग्रसित है
बताओ मेरे देश की बेटी,आज कहाँ सुरक्षित है
मेरा कोई वज़ूद नहीं है,ऐसा सबने सोच लिया
मामूली पैसों के खातिर,मुझको यूँ दबोच लिया
सारे ज़माने में अब तो,यही एक बस रीत है
बताओ मेरे देश की बेटी,आज कहाँ सुरक्षित है
देखा जिसने तन्हा मुझे और,इतना अत्याचार किया
सारे ज़माने के समक्ष,मुझको यूँ शर्मसार किया
पलकें मेरी भर आयी और,खुशियां मुझसे वंचित है
बताओ मेरे देश की बेटी,आज कहाँ सुरक्षित है
तन की खूबसूरती के खातिर,इज़्ज़त को तार तार किया
मर्दानगी दिखाकर तुमनें,मुझ पर इतना प्रहार किया
ज़ख्म दिये है ज़माने ने,अब कुछ ना अपेक्षित है
बताओ मेरे देश की बेटी,आज कहाँ सुरक्षित है
– शायर हिमांशु सुथार
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