Life Style

कैसे सोया होगा अपनी कब्र में ,वो शख्स जिसे भूख ने हमेशा जगाये रखा,

कुछ कर गुज़रना चाहता था, लो कर भी गया, गुज़र भी गया  l

“मौत ज़िन्दगी को टाइम नहीं देती” ऐसा उसने भी सुन रखा था |

घड़ी के काँटों को पीछे किया जा सकता है, मगर क्या वक़्त कभी किसी के लिए रुका है? वक़्त कभी नहीं रुकता, किसी के लिए भी नहीं, चाहे राजा हो या रंक, वक़्त कभी किसी के लिए नहीं रुकता | इस बात की गाँठ उसने बाँध रखी थी | उसे बहुत कुछ करना था | उसे अपने परिवार के लिए ही नहीं बल्कि अपने समाज के लिए भी करना था | अभावों में पला इंसान अगर इस बात के लिए मन को साध ले तो उसे कोई नहीं डिगा सकता |

स्वयं के बारे में उसने कभी नहीं सोचा, ऐसा नहीं था | मगर किसी का भी दर्द उससे देखा नहीं जाता | दौड़ जाता था बस समस्या सुलझाने | दूसरों के चेहरे पर हंसी देख ली तो बस … उसे उसकी मंज़िल करीब नज़र आने लगती थी |

लोगों को लैंप या लालटेन की रोशनी में पढ़कर बड़ा आदमी बनने की तो कई कहानियाँ हम सबने सुनी हैं, पर वो तो अलग किस्म का इन्सान था | गाँव में रहकर पेड़ों के पीछे छुपकर या क्लास की खिड़की के बाहर खड़े होकर उसने जितने पाठ सीखे , उन्हीं से वह ‘सभ्य’ बन गया था | किताब या अखबार उठा कर पढ़ना उसके लिए कोई मुश्किल काम नहीं था, कमी तो बस एक ही थी, वो लिख नहीं सकता था |

उसके हाथों की उंगलियाँ इतनी छोटी थी कि कभी कलम नहीं पकड़ पाया | कभी किसी ने हाथ पकड़ कर कोशिश भी नहीं कराई कलम पकड़ने की | कैसे कराते, कोई नहीं जानता था कि वो पढ़ने का शौक़ीन था क्योंकि पैसे के अभाव में कभी किसी स्कूल में दाखिला नहीं हुआ उसका |

पहली बार जब ‘अ’ से अनार सीखा था तो मिट्टी में उंगलियाँ रगड़ कर लिखने की कोशिश में उंगलियों के नाजुक पोर छिल गए थे, मगर हिम्मत ना हारते हुए उसने अनार की तस्वीर बना डाली | छिली हुई उंगलियों से जब घर पहुंचा था, तो किसी का ध्यान नहीं पड़ा | नन्ही नन्ही लगभग नज़र ना आने वाली उंगलियाँ चोटिल हैं, ये किसे पता चलता ? दोपहर के खाने के वक़्त जब मां ने आवाज़ दी थी, तो वो खाना खाने बैठा और सब्जी का मसाला जब उंगलियों को जलाने लगा तो कराह उठा था और तब उसके दर्द ने मां का ध्यान खींचा था |

उसके दर्द ने मां को बेहाल कर दिया था | किन्तु फिर भी गालियाँ सुननी पड़ी थीं उसे अपनी काकी की | काकी तो जैसे शुरू से ही उसे नापसंद करती थी, क्यों न करती, वो तो या मान बैठी थी कि इस अधूरे हाथ वाले को जमीन जायदाद से अलग करवा कर अपने बेटे को ही सब कुछ दिलवाएगी | अब इलाज करवाने में  पैसे खर्च करना काकी को मंज़ूर नहीं था |

पिता बहुत पहले ही गुज़र गए थे | काका काकी को वह फूटी आँख नहीं सुहाता था | घर का बड़ा बेटा था वो मगर पैसों के लालच ने काका और काकी के मन स्वार्थ से भर दिए थे | एक कौड़ी भी उसके लिए खर्च करना उन्हें गवारा नहीं था |

मां को हर रोज़ सूखते देखता था | वह घर का सारा काम करती और चोरी छुपे उसपर अपना प्यार उंडेलती | मां-बेटे को साथ देखना काका काकी को बिलकुल नहीं भाता था | उन दोनों में दूरी बनाने की भरसक कोशिश करते | काकी सोचती थी कि यह लड़का मरे तो पिंड छूटे | मानसिक यातनाएं दे देकर दोनों को तंग करती रहती थी | उसका मानना था कि मां बेटा एक दूसरे से दूर रहेंगे तो उन्हें तोड़ना आसान होगा |

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जब तक छोटा था वो ये सब नहीं समझता था | मगर रोज़ स्कूल की क्लास के बाहर से मास्टरजी के सिखाये पाठ पढ़कर बड़ा होता रहा और धीरे धीरे सब समझने लगा | अब मां को तड़पते देख उसका खून खौलता था | अब उसे समझ में आने लगा था कि काकी बहुत ही बुरी प्रवृत्ति की औरत है | फिर भी उसने अपने चचेरे भाई से कभी घृणा नहीं करी | भाई से बहुत लगाव था उसको |

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यह प्रेम भाव की शिक्षा उसे अपनी दादी और अपनी मां से मिली थी | दादी तो बहुत पहले गुज़र गयी थी, मगर उसकी धुंधली सी छवि उसके मन में बसी हुई थी, दादी की आवाज़ आज भी याद थी उसे | उसकी मां भी उसे हमेशा प्रेम से रहने का ही पाठ पढ़ाती थी | सारे गाँव में उसकी दादी की दरियादिली के चर्चे मशहूर थे | पिता भी उसके होश सँभालने के पहले ही चले गए, मगर पिता का चेहरा उसे याद था | पिता भी दादी की तरह ही थे, सब्जी भाजी के खेत का काम ख़त्म करके दादी का हाथ बंटाते | जब सब्जी तैयार होती, तो तोड़ के कुछ गांव में और कुछ शहर में सब्जी का धंधा करने वालों को पहुँचा देते, यानी कुल मिलाकर सीधी सादी ज़िन्दगी भी संतोश से जी रहे थे |

दादी ने हमेशा सबकी मदद करी थी, कभी किसी को भूखा देखती तो उसके लिए खाना बनवाती और इस काम में बड़ी बहू यानी उसकी मां सदा हाथ बंटाती | किसी के पास पहनने को कपड़े ना हो तो मां और दादी मिलकर पुराने कपड़ों को तरीके से सिलकर उसका तन ढंकते | काका और काकी ने कभी भी भलाई के कामों में साथ नहीं दिया | दादी के जाने के बाद मां चुप-चुप रहने लगी थी क्योंकि दुःख बांटने को और कोई रहा ही नहीं | मगर दादी के किस्से उसने बचपन से ही गांव वालों से सुने और उन्हें सुनकर ही उसके मन में भी वही भाव हमेशा रहे |

काकी की करतूतों पर जब वो खुलकर गुस्सा जताने लगा तो मां ने उसे समझाना शुरू कर दिया था | “ गुस्सा बुरा होता है, ऐसे गुस्से से हम अपना ही नुकसान करते हैं , ठन्डे दिमाग से सोचो और कुछ ऐसा करो कि कल को मुसीबतों का अंत हमेशा के लिए सही तरीके से हो जाए | भगवान् ने हमें इस धरती पर अच्छे कार्यों के लिए भेजा है, बेटा, अपनी शक्ति को गुस्से से मत कमज़ोर करो |” मां के ये शब्द उसे कुछ पल के लिए शांत कर देते थे |

मगर उसके अन्दर क्रोध की ज्वाला इतनी तेज़ हो जाती कि कई बार उसका मन करता कि काकी को सबक सिखाये | एक दिन ऐसे ही गुस्से में भरकर बिना दोपहर का खाना खाए वो घर से निकल पड़ा | मां आवाज़ देती रही, मगर उसने पलटकर सिर्फ इतना कहा “ मां, चिंता ना कर, गुस्सा ठंडा करके बिना किसी का नुकसान किये मैं जल्दी वापस आऊंगा ” इतना सुनकर मां को ना जाने कौनसी तसल्ली मिली कि वो दूर से ही उसे आशीर्वाद देकर मुड़कर घर में चली गई | दुबारा आवाज़ नहीं लगाई उसने | शायद किसी शक्ति ने उसमें एक विशवास भर दिया था कि बेटा कोई भी गलत काम नहीं करेगा | मां के चेहरे पर शिकन नहीं थी, एक विशवास भरा तेज़ था | इसी तेज ने उसे हिम्मत दे दी थी, वो चल पड़ा था मगर दिमाग में शायद कोई लक्ष्य का पौधा पनप चुका था | अब वो अठ्ठारह साल का हो चुका था | इतने सालों में उसका दिमाग परिपक्व हो चुका था |

img_3303कुछ दूर आगे बढ़ा ही था कि सोचा एक बार उस स्कूल को देख लिया जाए, बहुत समय से जा नहीं पाया था, शायद आज कोई नई बात सुनने को मिले | हमेशा की तरह वो क्लास की खिड़की के बाहर खड़ा हो गया | गाँव तो ठहरा गाँव, अब भी वही इमारत, वही खिड़की, बस इमारत में दरारें पड़ने लगी थी, खिड़की के पलड़े कुछ टूट गए थे, कोई ठीक करने वाला था नहीं, सरकार से उम्मीद करना किसी मतलब का नहीं था | कई सालों से सरकार के झूठे वादे झेले उसके गाँव ने, अब तक कोई बदलाव नहीं | बस पीने के पानी के लिए हैंडपंप ठीक ठाक लग गए थे, किराने की दुकानें लगने से राशन लेने शहर नहीं जाना पड़ता था और कपड़ों की छोटी मोटी दुकानें ज़रूरत पूरी कर देती थी | मां भी तो किराने का सामान लोगों के घरों में पहुंचा कर पैसा जुटाती रही, बेटे के भविष्य के लिए ताकि किसी के आगे हाथ ना फ़ैलाने पड़ें | वो ये सब कुछ भली-भाँती समझता था |
स्कूल की हालत उससे देखी नहीं गई, सालों पहले इतनी गर्मी नहीं होती थी इसलिए पंखों के बिना भी काम चल जाता था, मगर अब…ये बच्चे इतनी गर्मी में पढ़ते हैं यह देखकर उसका मन दुखी हुआ | पंखे नहीं लगे थे, ऐसा नहीं है, पंखे चलते नहीं थे, क्योंकि ख़राब पंखों को ठीक करने वाला कोई नहीं था, सब बिजली का काम जानने वाले कमाई करने शहर चले गए थे, और कभी कोई अपनी तिकड़म लगा कर ठीक कर भी देता तो छत से टपकता पानी हमेशा गड़बड़ कर देता, करंट का डर भी था, इसी वजह से कोई भी बार बार इस काम को अपने हाथ में नहीं लेता था, फिर बिजली भी तो सरकारी मुलाज़िम की तरह नहीं के बराबर आती थी |

उसे खिड़की की ओट में खड़े हुए ख्यालों में कुछ ही पल बीते थे कि मास्टरजी ने देख लिया |

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“कब से यहाँ खड़े हो?” मास्टरजी ने पूछा |

“ कई सालों यहाँ खड़ा रहा हूँ, पहले तो आपका कभी ध्यान नहीं पड़ा!!” उसने लगभग ताना मारते हुए कहा |

“ मैं तुम्हें अच्छी से पहचानता हूँ” मास्टरजी बोले |

वो चुपचाप उन्हें देखता रहा | मास्टरजी भी उसे देखते रहे और फिर उसका खानदान गिना दिया | उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि मास्टरजी उसे इतनी अच्छी तरह जानते हैं, मगर कभी उससे बात नहीं करी, गाँव में भी कभी उसके विषय में कोई विशेष चर्चा नहीं होती, फिर कैसे पहचानते हैं?

वो कुछ कहता इसके पहले मास्टरजी बोले “ तुम यहाँ सालों से आते रहे हो, यह बात मैं बखूबी जानता हूँ, मेरी क्लास के बाहर खड़े होकर तुमने हर रोज़ क्लास के अन्दर की पढ़ाई सम्बन्धी गतिविधि पर ध्यान दिया है, मैं यह भी जानता हूँ |”

उसका मुंह खुला का खुला रह गया | उसके चहरे पर आश्चर्य के ऐसे भाव देखकर मास्टरजी को हंसी आ गयी | स्कूल का समय लगभग समाप्त हो चुका था | क्लास के बच्चों को घर जाने का कहकर मास्टरजी उसके पास आ गए और उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे अपने पास खींच लिया | ऐसा तो कोई अपना ही कर सकता है, यह विचार उसके मन को लगभग भिगो गया | आज तक सिर्फ मां ने इतने प्यार से अपने करीब खींचा था उसको, इसलिए उसे यह अपनापन बेहद अच्छा लगा |

“आओ, उस पेड़ की छाँव में बैठते हैं, जिसके पीछे तुम कभी छुपकर मेरी क्लास में पढ़ाये जाने वाले कुदरत से सम्बन्धित पाठों को सुनते थे |”

मास्टरजी के ये शब्द सुनकर वो एक पल को घबरा गया, कि कहीं अब तक की शिक्षा का पैसा न वसूल कर लें | वह मास्टरजी के पैरों में गिर गया “ मास्टरजी, मेरे पास अभी इतने पैसे नहीं हैं कि मैं आपकी फीस दे सकूं, तब भी नहीं थे ना, और मैं तो लिख भी नहीं सकता, मेरे हाथ देखिये, मैं स्कूल में कैसे आता?”

मास्टरजी ने उसको उठाया, उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लिया और बोले,

“ मैं सब कुछ जानता हूँ, तुम्हारी दादी मेरी मां के सामान थी | मैं उन्हीं की वजह से सबको पढ़ाने लायक बन पाया हूँ | हाँ , मेरी भी मजबूरी थी इसलिए मैं तुम्हें कभी भी कक्षा में बैठने के लिए नहीं कह पाया |”

मास्टरजी की ये बातें उसकी समझ में नहीं आईं, सिर्फ इतना समझ पाया कि उसकी दादी ने ज़रूर कभी मास्टरजी की सहायता करी होगी, वो थीं ही ऐसी | मगर मजबूरी कैसी? यह सवाल उसके दिमाग में आया ही था कि मास्टरजी बोले “ तुम शायद सोच रहे हो कि ऐसी क्या मजबूरी थी कि तुमको अन्दर बैठकर पढ़ने के लिए मैंने कभी नहीं कहा, कभी तुमसे कोई बात क्यों नहीं करी, तुम्हें कभी टोका भी नहीं, है ना?”

उसे इन सवालों के जवाब मिले तो वो बुरी तरह छटपटा गया | मास्टरजी ने उसको बताया कि उसके काका और काकी ने मास्टरजी को ऐसा करने से मना कर रखा था क्योंकि उनका बेटा भी इसी स्कूल में पढ़ता था | मास्टरजी ने इस स्कूल में बोर्ड और पंखे लगवाने के लिए जब चन्दा इकठ्ठा करना शुरू किया था तब काका काकी ने अपनी ओर से पैसा देकर मदद कर तो दी थी मगर शर्त यही थी कि उसे इस स्कूल में किसी भी हाल में दाखिला ना मिले अन्यथा स्कूल बंद कर देंगे | ये एकमात्र स्कूल था और इसके बंद होने से गाँव के बाकी बच्चे भी शिक्षा से वंचित रह जाते |

“बस इसी कारण से मैंने सदा तुम्हें बाहर ही रहने दिया, किन्तु तुम शिक्षा का कुछ लाभ उठा पाओ , यह भी मैं चाहता था, इसलिए तुम्हें कभी भी नहीं टोका | तुम्हें पूरी तरह वंचित रखकर मैं तुम्हारी दादी के प्रति अपनी वफादारी कैसे निभाता?” यह कहते हुए मास्टरजी का गला भर आया था |

“आप धन्य हो मास्टरजी” वह उनके चरण छूने झुक गया | उसे तो जैसे साक्षात देवता के दर्शन हो गए | मास्टरजी ने गद्गद होकर उसे ह्रदय से लगा लिया |

coverमास्टरजी ने बताया कि उसके पढ़ने से काका काकी को ख़तरा महसूस हो रहा था, कि पढ़ लिख कर दुनियादारी जान गया तो जमीन जायदाद के हिस्से करने पड़ेंगे , इसलिए ये जाल बुना | ये बातें सुनकर उसके तन-बदन में आग लग गई | चेहरा तमतमा उठा था, नथुने फड़क गए थे, मगर मां की बातें याद आई कि गुस्सा हमें ही जला डालता है | मास्टरजी ने भी उसको यही समझाया | उसके दिमाग को ठंडा होने में वक़्त लग गया परन्तु दिमाग इस तेज़ी से दौड़ने लगा था कि उसने बहुत कुछ ठान लिया था | उसके अंतर्द्वंद को मास्टरजी भांप गए थे | बस यहीं से उसकी लड़ाई शुरू हुई, वक़्त के और अपने उन “अपनों” के साथ | वह कुछ ऐसा करना चाहता था कि जो कुछ उसपर बीती , वो किसी और के साथ ना हो, वो अपनी मां के लिए अलग दुनिया बसाना चाहता था | उसके पिता और दादी के पदचिन्हों पर चलकर उसे बहुत कुछ परिवर्तन लाने थे, अपने गाँव के लिए एक नया जहां बसाना था |

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मास्टरजी से विदा लेकर वह अपने घर को लौटने लगा | शाम के चार बजे थे, इस समय मां उसको चाय पीने के लिए अक्सर आवाज़ देती है | घर से कुछ दूरी पर एक कुआं था | उस कूंए की मुंडेर उसको हमेशा लुभाती रही है, जब भी वो मां के साथ यहाँ आया है उसने हमेशा मां की हथेलियों को रस्सी खींचकर लाल होते देखा है | मगर मुंडेर पर बैठकर हमेशा उसका दिमाग नए नए तरीके अपनाने के बारे में सोचता  रहा है | “काश!! मां को रस्सी न खींचनी पड़े, क्यों उसके हाथों को रोज़ रोज़ यह दर्द झेलना पड़ता है” इस विचार से जब वह मुंडेर पर जाकर बैठा तो उसके हाथ उसके सामने ऐसे उठे हुए थे मानो भगवान से प्रार्थना कर रहे हों | वह अपने उन ‘अधूरे’ हाथों को देखने लगा, शायद इसी वजह से गाँव वालों ने नाम दे दिया “अधूरा”, सभी इसी नाम से पुकारने लगे थे, मां ने हमेशा सिर्फ ‘बेटा’ कह कर पुकारा | कभी भी “अधूरा” कह कर नहीं पुकारा मां ने, शायद बेटा ही नाम बन गया मां के लिए |

घर लौटा तो पांच बज रहे थे | मां हमेशा की तरह आँगन साफ़ करके खाना बनाने की तैयारी में लगी थी | गाँवों में खाना जल्दी ही बनाया जाता है, उसे भी सूरज डूबते ही खाना खा लेना ठीक लगता था, कीड़े मकोड़ों का डर नहीं रहता था, नहीं तो खाने में कोई कीड़ा गिर जाए तो फिर सारा खाना खराब… ‘अगर बिजली होती तो यह मुसीबत नहीं होती | कम से कम रोशनी तो पूरे घर में बराबर मिलती, एक जगह लालटेन रखने से कीट पतंगे चले आते हैं रोशनी से आकर्षित होकर”…हर चीज़ से सम्बंधित विचार उसके मन में रहते, कैसे क्या ठीक करना है , क्या हो सकता है, कैसे सभी के लिए संसाधन उपलब्ध कराये जाएँ, ये सभी बातें उसके उपजाऊ दिमाग में एकत्रित हो रहीं थी |

उसे देख मां खुश हो गई, उसके चेहरे पर ऐसी मुस्कान देखकर वो भी खिल उठा | मां उसे देखती रही फिर अपने पास बैठने का इशारा दिया | इस तरह के इशारे का मतलब था कि बिना आवाज़ किये बैठ और खाना खा | मगर आज उसने ठान लिया था कि अब वो कभी भी अकेले खाना नहीं खायेगा, अपनी मां के साथ बैठकर खायेगा क्योंकि वो जानता था कि मां सबसे आखिर में जब खाती है तो बहुत कम खाना बचता है | काका काकी कभी भी मां के हिस्से के खाने की तरफ ध्यान नहीं देते थे, उसके लिए कितना खाना बचा ये कभी भी उन दोनों ने नहीं सोचा | कई बार मां के लिए सब्जी रोटी कम पड़ जाती थी, वो पानी पीकर पेट भर लेती थी और वो इस बात को अब समझ पाया कि मां के भूख ना होने की बात के पीछे क्या राज़ था |

“मां, आज से हम दोनों एक साथ खाना खायेंगे, और सबसे पहले खायेंगे | बाद में जिस किसी के लिए कम पड़े, वो अपना इंतज़ाम खुद करे या उतने में ही संतोष करे, और अब किसी ने तुम्हारे साथ ज़रा भी गलत किया , तो मैं सहन नहीं करूँगा |” उसकी मां भौंचक्की सी उसे देखती रही कि अचानक बेटे को क्या हो गया ?  उसने मां से फिर से कहा , “यदि किसी ने तुम्हारा अपमान किया या मेरे साथ भी      ना-इंसाफी करी तो अब मुझ से बुरा कोई नहीं होगा |”

मां समझ गई कि बेटे को काका काकी की करतूतें भली प्रकार मालूम हो गई हैं | उसने बस बेटे से अपने क्रोध को वश में रखने को कहा | वो तो निश्चय करके आया था कि अब पासा पलटना ज़रूरी है, फिर भी उसने मां को इतना समझा दिया कि जो होगा सही होगा | मां जान गई कि अब बाप और दादी की हिम्मत बेटे में आ गई है, इसलिए प्रभु की इच्छा को सर्वोपरि मान कर चुप बैठी रही | वो तो बस भगवान से इतना मांग रही थी कि किसी का कोई नुकसान न हो, रिश्तों की डोर सही प्रकार बंधी रहे | उसे तो दोनों भाइयों के बीच प्यार चाहिए था, वो नहीं चाहती थी कि देवर का बेटा देवर जैसा निकले | दोनों भाइयों को दादी के सद्गुण मिलें, ऐसा भगवान से मांगा उसने |

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“अधूरा, ए अधूरा” इस आवाज़ से अगली सुबह उसकी नींद खुली | काकी चिल्ला रही थी | “क्या है काकी? सुबह सुबह क्यों चिल्ला रही हो?” काकी हमेशा की तरह कर्कश आवाज़ में उसे पुकारती हुई आई और उसे हलवाई की दूकान से दूध लाने को कहा |

 “आज क्या मां बेटा सोते रहेंगे? चाय के लिए घर में दूध नहीं है, जा जाकर दूध लेकर आ |”

“काकी तुम्हारे पैरों में क्या मेहँदी लगी है? खुद ले आओ न, मुझे और मेरी मां को आराम से सोने दो |”

इतना सुनना था कि काकी बोली, “तेरी इतनी हिम्मत” और उसे थप्पड़ मारने को हाथ उठाया तो उसने लपक के अपना हाथ भी ऊंचा कर दिया |

“काकी, मैं तुम्हारा हाथ पकड़ नहीं सकता, मगर अच्छा है कि तुम्हारे गंदे हाथ मेरी पकड़ से बाहर हैं, मगर फिर भी तुम्हें रोकने की शक्ति मुझमें है | हिम्मत है तो हाथ लगाकर बता दो अब |” उसकी आवाज़ के दंभ से काकी बुत बन कर खड़ी रह गई | उसके काका की भी हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की क्योंकि आखिर वो एक दबंग आदमी का बेटा जो था |
“ आज के बाद मुझे या मेरी मां को किसी ने भी अपने इशारों पर नचाने की कोशिश करी तो ….” इस धमकी की उम्मीद पहले कभी किसी ने नहीं करी थी, काका काकी पहली बार डरे थे आज, दोनों वहां से खिसक लिए, दूध भी आ गया और घर में चाय भी बन गई | उसने अपनी मां को भविष्य में जल्दी उठकर काम न करने की हिदायत दे डाली, और दादी की तरह कड़क बनने के लिए कहा |

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“ मां, तुम दादी वाला काम संभालो, बाकी मैं हर जगह तुम्हारे साथ चलूँगा | अब चौका-चूल्हा वो लोग करें जिन्होंने कभी नहीं किया, सीखेंगे और करेंगे”, उसकी इस दमदार बात के आगे मां ने चुप रहकर बात मानने में ही समझदारी मानी, आखिर वो भी तो इस दिन के इंतज़ार में ना जाने कब से बैठी थी | वो खुश थी कि उसकी सास की दुआएं अब फल दे रही हैं |

रोज़ थोड़ी बहुत खिट-पिट होती थी, मगर काका काकी की लगाम उसके हाथ में आ गई थी | चूंकि उसे काफी ज्ञान प्राप्त हो चुका था जो जमीन जायदाद के मामले के लिए ज़रूरी था, उसने मास्टरजी की मदद से वकील कर बंटवारा करवा ही दिया | इतना पैसा था उसके घर में और उसे पता ही नहीं था | मां ने घर की नौकरानी की तरह काम किया जबकि उसके नीचे काम करने वाले नौकर रखे जा सकते थे | काका काकी अपनी हिस्से की जमीन लेकर चुप ही रहे क्योंकि उनकी समझ में आ गया था कि जिस लड़के को वो अधूरा समझते थे, वो तो बड़ा ‘शातिर’ निकला | पढ़ना लिखना भी सीख लिया और किसी को कानों-कान खबर भी न होने दी | वो तो उसे एकदम बेकार और नाकारा बनते देखना चाहते थे ताकि सारी जमीन वो किसी तरह धोखे से अपने नाम करवा लेते | अब तो वो खैर मना रहे थे कि उन्हें कुछ मिला तो सही, वर्ना उनकी हरकतों के बदले में तो उन्हें फूटी कौड़ी भी न मिलती | काका के बेटे को भी दादी के गुण मिले थे, उसे ऊट-पटांग बातें और हरकतें पसंद नहीं थी | उसका भी यही मानना था कि प्यार मोहब्बत से रहना और सबके साथ सुख-दुःख बांटना ही जीवन जीने का सही तरीका होता है | वह अपने बड़े भाई के हर काम में उसका हाथ बंटाना चाहता था, ताकि दादी का सपना पूरा हो सके |

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हर कोई अब भी गाँव में उसे ‘अधूरा’ नाम से ही पुकारता | वो चाहता ही नहीं था कि अब कोई और नाम हो उसका | इस ‘अधूरेपन’ ने ही तो उसे हिम्मत दी थी, कुछ कर गुज़रने की, एक भूख जगाई थी बदलाव की | कभी कोई उससे कहता भी कि अब कोई अच्छा नाम रख लो, तो वो मना कर देता, कहता यही नाम उसकी पहचान बनकर उसे लक्ष्य को पूरा करने में बल देगा |

गाँव के स्कूल से शुरुआत करनी थी उसे, वहीँ तो उसकी समझदारी की नींव पड़ी थी, कैसे भूल सकता था वो अपने उन पुराने दिनों को | स्कूल के लिए इमारत को सबसे पहले ठीक करना ज़रूरी था | चूंकि अब उसके घर में बहुत पैसा था, मां ने हमेशा से थोड़े पैसे में काम चलाया और वो पैसे को संभालना भी जानती है, फालतू खर्चा करना भी मां-बेटे को पसंद नहीं, उसने सोचा कि इस बारे में मां से सलाह ली जाए | उसे मास्टरजी ने बैंक से कर्जा लेने की प्रणाली समझा दी थी जब वह उनके पास अपनी मंशा लेकर गया था |

“मास्टरजी, आपसे कुछ सलाह लेनी है”

“ हाँ मेरे प्यारे शिष्य, बोलो” ये मीठे बोल उसके कानों में मिश्री से प्रतीत हुए |

 “ ‘शिष्य’ अब तो यही नाम काम में लेना है अगर कभी कोई कागज़ी कार्यवाही में ज़रूरत हुई , तो …“ ऐसा मास्टरजी एक बार में बोल गए |  मास्टरजी ने ऐसा क्यों कहा , यह बात वो सोचता रहा, मगर उनसे पूछा नहीं क्योंकि वो मास्टरजी थे, वो अपने अनुभव से किसी के भी चेहरे को पढ़ कर काफी हद तक सही बात जान लेते थे|

उसने मास्टरजी के आगे हाथ जोड़े और उनसे स्कूल की इमारत को ठीक करके बच्चों के लिए सुरक्षित एवं सुचारू करने की बात कही | तब मास्टरजी ने उसके विचारों की सराहना करते हुए उसे कानूनी दांव पेंच और बैंक के कायदे समझाए थे |

सारी बातें समझने और सोच विचार करने के बाद वो अपनी मां के पास गया | मां संध्याकालीन पाठ कर रही थी | कुछ समय से मां ने फिर से पाठ करना शुरू किया था, क्योंकि पहले परिस्थितियों के चलते वो शान्ति से बैठकर पाठ भी नहीं कर पाती थी | उसके चेहरे पर सच्ची भक्ति साफ़ दिखाई पड़ती थी | उसने तो हमेशा भगवान पर विशवास रखा और वो तो यह भी मानती रही है कि कर्म करना भी बहुत ज़रूरी   है | अब बेटा समझदार हो चला है, यह भावना उसके मन को संतोष प्रदान करने लगी | मां के पाठ ख़त्म होने का वो इंतज़ार करने लगा, उसे मां को टोकना उचित नहीं लगा | टोके भी क्यों, मां कितनी लीन नज़र आ रही है प्रभु में, ये विचार लिए वो भी वहीँ बैठ गया | वह खुद कभी मां को निहारता कभी भगवान् की मूर्ती को, उसे अच्छा महसूस हो रहा था |

पाठ ख़त्म होने के बाद मां उठी | “अरे तू आ गया!! चल खाना खा ले |”

“नहीं मां, पहले कुछ बात करनी है”, उसने कहा पर मां ने रोक दिया, “थका हुआ लग रहा है, चल एक साथ खायेंगे और फिर बातें करेंगे | मुझे पता है कि तेरी बात बहुत महत्वपूर्ण होगी, किन्तु भोजन के समय भोजन का आदर करना भी महत्वपूर्ण है | चल हाथ-मुंह धो ले |”

वो इस बात पर बहस नहीं कर सकता था, मां ने हमेशा सही बात कही है , उसकी भी सुनी है अगर वो कोई तर्क देता था, मगर भोजन के आदर की बात सभी कहते आये हैं और उसने हमेशा माना भी है, और इस बात में तथ्य भी है कि यदि अपने भोजन का आदर नहीं करोगे तो एक दिन दाने-दाने को तरसोगे | वो खाना खाने बैठ गया | मां के साथ भोजन करना उसके लिए हमेशा से सुखद अनुभव रहा है | थाली में मां के हाथों से बने सादे किन्तु स्वादिष्ट भोजन से ही उसका पेट भरता, कभी भी अगर किसी शादी-ब्याह में वो खाना खाता तो सोचता कि मां के हाथ वाली बात तो कहीं है ही नहीं |

जब मां रसोई साफ़ करके उसके पास आकर बैठी तो उसने मुस्कुरा कर अपनी मां को देखा | मां के उस चेहरे पर उसने उम्र की लकीरें देखना और समझना शुरू कर दिया था, यह सब उसे कुदरत का अनोखा करिश्मा भी लगता था | चेहरा कितना कुछ कह देता है, भावनाओं का आईना बन कर | मां थकी हुई होती थी तो भी उसके पास बैठकर मुस्कुरा देती थी, यह बात उसे बेहद पसंद थी | कोई तो ऐसा था जो उसके साथ खुश होता था | फिर उसने मां के आराम से बैठने के बाद अपने इरादों के पिटारे को खोलना शुरू किया |

उसने मां से स्कूल की इमारत को सुधारने और बच्चों के लिए व्यवस्थित करने का अपना इरादा बताया | उसने बैंक के लोन के बारे में भी विस्तार से बताया जो उसे मास्टरजी ने समझाया था | उसकी मां ने उसकी हर बात को ध्यान से सुना और उसकी बच्चों के भविष्य के प्रति रूचि को सराहा | बहुत खुश हुआ वो कि मां को उसका इरादा नेक लगा | फिर मां अचानक उठ के अन्दर चली गई | थोड़ी देर बाद जब वो बाहर आई तो हाथ में कुछ था जो कि उन्होंने उसके हाथ में दे दिया था | पास बुक… बैंक की पास बुक… “मां ये किसलिए?”

मां ने उसे समझाया कि बैंक बिना ब्याज लिए तो क़र्ज़ देगा नहीं, और फिर जब घर में पैसा रखा हो तो बैंक से क्यों लेना ? वो देखता रह गया, फिर बोला कि अपने पास रखे पैसे तो भविष्य के लिए संभालना ज़रूरी है | तब मां ने ही उसे समझाया था कि सारा पैसा बैंक से ना लेकर आधा ले और आधा अपने पास से लेकर मिला दे और फिर स्कूल का काम शुरू करें तो ब्याज भी कम लगेगा | उन्हें इतने पैसों की कभी ज़रूरत ही नहीं थी, वो तो थोड़े में भी गुज़ारा करने में हमेशा खुश रहे हैं | दादी की इच्छाओं के अनुसार अगर गाँव का भला किया जाए तो इससे बड़ी श्रद्धांजलि दूसरी कोई हो ही नहीं सकती |

वो अपनी मां से लिपट गया, क्योंकि चाहता वो भी कुछ ऐसा ही था | अपने घर के पैसों और बैंक से थोड़ा सा लोन लेकर “शिष्य” ने स्कूल की इमारत का काम गाँव के लोगों की मदद से पूरा करवा दिया | काम ख़त्म होते होते छह महीने का समय लग गया | सभी बच्चों और मास्टरजी के चेहरे खिल उठे थे |

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अभी तो एक ही मंजिल तय हुई थी | स्कूल के काम के बाद उल्लसित मन से वो अपने गाँव को बिजली से रोशन करने के इरादे से जुट गया | मास्टरजी उसकी हर जगह सहायता करने में हमेशा आगे होते, मां भी अपनी तरफ से उसे हर प्रकार से संबल देती रही | उसे तो अभी और भी काम करने थे, गाँव में बिजली के उपकरण ठीक करने के बारे में भी उसने सोचा | बिजली आते ही यह काम भी हाथों हाथ करना था |

एक दिन मास्टरजी से मिलने जब वो पहुंचा तो हमेशा की तरह इस बार मास्टरजी खुश नहीं दिखे | उनके चेहरे पर चिंता की अनगिनत लकीरें थी | उसने मास्टरजी से कारण पूछा तो वे टालने लगे | यह बात उसे हजम नहीं हुई | मास्टरजी का हाथ अपने सर पर रखकर उन्हें अपनी कसम देकर उसने उनका मुंह खुलवा ही लिया |

“ बेटी की शादी तय करनी है”, मास्टरजी बोले |

“ये तो अच्छी बात है न मास्टरजी, आप दुखी क्यों हो रहे हैं ?”

“ दुःख तो होगा न ‘शिष्य’, मेरे पास दहेज के लिए इतने पैसे नहीं हैं “, मास्टरजी की ये बात सुनकर उसका दिमाग घूम गया | ‘ये तो मैंने सोचा ही नहीं, अभी तो इस दहेज के दानव का भी खात्मा करना है’, ये विचार भी उसके मन में जम गया |

उसने मास्टरजी को दिलासा देने की बजाए उनसे कहा,“ मास्टरजी, आप शादी के लिए मना कर दो |”

यह बात सुनकर मास्टरजी चौंक कर उसे देखने लगे और लगभग चीखते हुए बोले, “तू पागल तो नहीं हो गया है, शिष्य, बेटी की शादी के लिए मना कर दूं तो क्या उसे घर में बैठा कर रखूँ? उसके सपनों को भी तोड़ दूं? समाज में अपनी नाक कटा दूं, और कल को बेटी को हैरान परेशान करने वाले दरिंदों से कैसे बचाऊंगा?”

उसने मास्टरजी की बात सुन कर कुछ नहीं कहा और पेड़ के नीचे रखे मटके से पानी भरकर लाया | उसके बदलाव के इरादों को एक और बिंदु मिल गया था …दहेज का खात्मा क्योंकि उसने भी तो सुन रखा था कि ना जाने कितनी लड़कियों की बर्बादी, हत्या और उनके साथ होने वाले अन्याय के पीछे सिर्फ दहेज होता है | उसे अब इसका विनाश करना था, चाहे संपूर्ण देश से ना सही, कम से कम अपने गाँव से इसे हटाना था ही |

उसने मास्टरजी के सामने अपनी मन की यह बात रखी | फिर मास्टरजी को तो जैसे शिष्य में ही सहारा और मुसीबत से छुटकारा पाने का रास्ता दिखने लगा | वो अगले दिन आने का वादा करके मास्टरजी से विदा लेकर चल दिया | उसका दिमाग बदलाव की भूख से इतना ज्यादा भर चुका था कि अब रातों की नींद और दिन का चैन भी गायब था | कई कई दिन घर से बिना बताये निकल जाना और रात को ना सोना उसकी दिनचर्या बन चुकी थी | मां ने कई बार उसे समझाया कि खाने और सोने का ध्यान रखा करे , मगर इस भूख के आगे उसके पेट की भूख तो मर हो गई थी |  उसे तो बस अपने जीते जी सभी कार्य निपटाने थे, इतनी कम उम्र में उसकी यह सोच उस पर पूरी तरह हावी हो गई थी | हरदम यही सोचता था कि यदि पेट की भूख इंसान को मारती है तो आत्मा की भूख का क्या होता है? उसे किसी का डर नहीं था, बिलकुल अपने पिता और दादी की तरह , वो उन्हीं की तरह दूसरों के लिए जीना चाहता था |

पता नहीं क्यों उसके मन में यह बात घर कर गई थी कि पिता की तरह वो जल्दी मर गया तो कौन गाँव के हालात सुधारेगा ? उसे तो यकीन हो चला था कि उसके पिता ही उसके अन्दर आकर उससे ये सब कार्य करवा रहे हैं, क्योंकि वे अपनी परोपकार की इच्छाएं लिए इस दुनिया से चले गए थे | वो ऐसे नहीं मरना चाहता था, वो सभी कार्य निपटा कर मरना चाहता था, ‘अधूरा’ कुछ नहीं छोड़ना था उसे | वह अपने इरादों पर अटल था |
सर्दी का मौसम था और उसपर भूत सवार था कि शादी के मौसम में सबसे पहले उसे दहेज ख़त्म करना है, अन्यथा ना जाने कितनी और दुल्हनें मरेंगी, या फिर ना जाने कितने परिवार दहेज देते देते पस्त हो जायेंगे, ना जाने कितने घर उजड़ जायेंगे और ना जाने कितने सपने टूट जायेंगे | उसकी कोई बहन नहीं थी मगर बहन का प्यार उसने किताबों में पढ़ा ज़रूर था | बहन भी मां का रूप होती है, ये उसे उसकी मां ने ही समझाया था | मां को कैसे मरने दूं ? उसकी नींदें गायब थी, वो रात के अँधेरे में एक दिन उठ कर बाहर निकल गया | थोड़ा टहल कर अपने सीने में उठी घुटन को कम करना चाहता था |

                           -*-

हवा बहुत ठंडी थी | अपनी मां की ओढ़नी को लपेट कर वो कुएं की मुंडेर पर जा बैठा जहां उसे हमेशा से ही बैठना पसंद था | उसे आज अपने पिता की बहुत याद आई, अनायास ही उसने झांक कर कुएं में देखा | उसे अचानक यूं लगा जैसे कि पिता उसे अपने पास बुला रहे हैं | वो हंसा और बोला, “ आऊँगा बाबा, पर पहले काम निपटाने दो”…अजीब इत्तेफाक था , पानी में पिता का साया खांसने लगा और उसे भी अचानक खांसी आई | “ठण्ड बहुत हो गई है, तू घर जा” पिता की आवाज़ उसके कानों में गूंजी, पर अब वो घर कैसे जाता ? एक तरफ तो सालों बाद पिता को देखा उसने और घर चला जाता तो कैसे, वो तो यहाँ बैठकर अपने सपनों को साकार करने के बारे में चिंतन करने आया था | उसे फिर खांसी उठी, इस बार बहुत तेज़, मगर पिता का साया फिर नज़र नहीं आया | वो उठ कर घर चल दिया |

मां बाहर बैठी थी, उसकी खांसी की आवाज़ सुनकर उसके पास नंगे पाँव दौड़ी और उसे डांटकर कहा “क्यों रे, कहाँ गया था इतनी कड़ाके की ठण्ड में, वो भी इस भयानक सी लगने वाली रात में ?” मां की आवाज़ में बहुत चिंता और दर्द था, शायद उसके पिता को भी इसी तरह सर्द रात ने बीमार करके कुछ ही समय में निगल लिया था | अब समझा वो कि पिता के साए ने घर जाने को क्यों कहा था |

“कुछ नहीं, मां, बस यूं ही नींद नहीं आ रही थी और घुटन महसूस हो रही थी, इसलिए टहलने गया था | पर तुम क्यों नंगे पाँव दौड़ी आई, ठण्ड में भी बिना जुराबों के रहती हो और मेरी परवाह करती हो ?” पर मां की आँखों में छिपा दर्द उसे दिख गया था |

लगभग उन्नीस का हो चला था वो | उसकी खांसी रुकने का नाम नहीं लेती थी | गाँव में कोई ढंग का डॉक्टर भी नहीं था, वैद्य की दवा असर नहीं कर रही थी | उसके पिता को भी इसी तरह खांसी ने जकड़ा था | इतिहास क्यों दोहरा रहा था अपने आप को, ये बात उसकी मां के मन को दहला रही थी |

डॉक्टर नहीं होने से उसके कार्यों में एक कार्य और जुड़ गया | गाँव के लिए एक अच्छा डॉक्टर लाना | यह कार्य कुछ संभव नहीं लगता था, इसलिए उसने अपनी मां से कहा कि किसी दिन इस गाँव का कोई बच्चा डॉक्टर बन कर इसी गाँव की सेवा करे, ऐसा उसे बच्चों के मन में भाव जगाना है | उसकी मां इस बात से प्रसन्न तो हुई मगर आंसूं रोक नहीं पाई | मां के सीने से लगकर वो भी रो दिया |

मास्टरजी की समस्या जस की तस थी, दहेज जुटाने का कार्य आसान नहीं था | उसके मन में उथल पुथल मची हुई थी कि अचानक उसे कुछ सूझ गया | उसने मास्टरजी से दहेज के खिलाफ क़ानून होने की बात सुनी थी, अखबार में कोई खबर आई थी शहर के किसी दहेज विरोधी दल के बारे में | जानते तो मास्टरजी भी थे किन्तु वे ऐसी कोई भी बात से सहमत नहीं थे जिससे उनकी बेटी की शादी रुक जाए| उसने बहुत जतन करके मास्टरजी को समझाया  “दहेज मांगने वाले बहुत ही लोभी होते हैं, एक के बाद एक मांगे खड़ी करेंगे और पूरा नहीं करने पर बेटी की ज़िन्दगी नरक बना देंगे | ऐसे घर में बेटी क्यों देनी जहाँ उसका सम्मान ना हो और जान पर बनी हो ? अगर पूरा गाँव दहेज लेने और देने के खिलाफ हो जाए तो इससे बढ़िया बात क्या हो सकती है ?”

मास्टरजी समझ नहीं पा रहे थे कि पूरे गाँव को यह बात कैसे समझाई जाये ? उसने मास्टरजी से वो सभी अखबार इकठ्ठे करने को कहा जिसमें ये खबरें आई कि कानूनी तौर पर दहेज एक गुनाह है और दहेज लेने वालों को सजा भी हो सकती है | मास्टरजी सहमत नहीं दिखे, परन्तु फिर भी अखबार ढूँढने में लग गए | इस बीच वह स्कूल के बच्चों से मिलकर अलग अलग पर्चियां बनवाने में जुट गया | इन पर्चियों में उसने दानवों की शक्लें बनवा कर उनकी जुबान पर दहेज लिखने को कहा | बच्चों ने बहुत जल्दी खेल खेल में ही अनेकों ऐसी पर्चियां बना दी | फिर जब मास्टरजी अखबार ढूंढ चुके थे तो उसने मास्टरजी से दहेज के विरुद्ध दो लाइन लिखने और साथ ही कानूनी कार्यवाही के बारे में भी लिखने को कहा | ये भी लिखवा दिया कि दहेज लेने वालों के खिलाफ कदम उठाये जाते हैं और जो लोग इस बात को नहीं मानकर दहेज लेना चाहते हैं तो उन्हें डायन खा जाती है | गाँव वाले अब भी अंधविश्वास को तवज्जो देते हैं, डायन का बहाना उसे और मास्टरजी को एकदम सटीक लगा | एक ओर दानव का चेहरा और एक ओर डायन का डर गाँव वालों के दिमाग ठिकाने लगाने के लिए काफी थे, इस बात पर मास्टरजी और उसने एक साथ गहरी सांस ली |
हर घर के बाहर इस तरह की पर्चियां चिपकाने का कार्य बच्चों को सौंपने के बजाये उसने अपनी मां और मास्टरजी के साथ मिलकर एक रात में निपटा दिया | इस बात का गाँव पर अनुकूल असर हुआ | लगातार उठती खांसी के बीच उसने मास्टरजी की बेटी को शादी के मंडप में बिठा भाई की ज़िम्मेदारी निभाई | इस शादी के बाद गाँव में अनेकों शादियाँ हंसी खुशी बिना दहेज के संपन्न हुईं |

                     -*-

“अधूरा”… ये नाम आज फिर से पुकारा गया | गाँव वाले तो अब ‘छोटे बाबू’ कहने लग गए थे किन्तु “अधूरा” अचानक किसने कहा ? उसने इधर उधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया | शायद वहम था, पर यही पुकार फिर सुनाई दी | वह एक झटके से उठा, मां पास ही बैठी थी, उसके माथे पर पानी की पट्टियां रख रही थी | उसका शरीर बुखार में तप रहा था | “ओह! मैंने कोई सपना देखा था” यह सोच वो फिर लेट गया |

बुखार में भी उसे अपने अधूरे सपने ही नज़र आते थे, वो फिर उठने की कोशिश करने लगा मगर शरीर में दम नहीं था | मां ने उसे पकड़ कर हल्का धकेल कर लिटा दिया | इस समय मां से बहस करना बेकार था, यह सोचकर उसने मां से अपनी अलमारी में रखी किताब लाने का आग्रह किया | मां ने किताब लाकर दी, शीर्षक था “कचरे का सदुपयोग” | इस किताब में उसने रसोई में से निकलने वाले सब्जी भाजी के छिलकों और गाए भैंस के गोबर से गैस बनाकर उससे बिजली पैदा करने के बारे में पढ़ा था | यह किताब उसने मास्टरजी से पढ़ने के लिए ली थी, और मास्टरजी ने सप्रेम उसे भेंट कर दी थी | कितना खुश हुआ था वह इस किताब को पाकर |

लेटे लेटे उसने यह किताब बार बार पढ़ी | बिजली सबसे बड़ी ज़रूरत थी, बिजली से गाँव में छोटे मोटे उद्योग शुरू किये जा सकते थे, एक आटा चक्की भी लग जाती और इस तरह वह अपने काका के बेटे के लिए पैसा कमाने का ज़रिया बना देता | आखिर भाई भी तो बड़ा हो रहा है, खुद कमा के खायेगा और काका काकी का बुढ़ापे में सहारा भी बन जाएगा | जब दिमाग में पूरी तरह से बिजली तैयार करने का नक्शा खिंच गया था, तो उसे कौन रोक सकता था? क्या खांसी क्या बुखार…?

अगले दिन उसे फिर मास्टरजी की याद आई, मगर शरीर में दम नहीं था | खांसी और बुखार ने पूरे शरीर को तोड़ कर रख दिया था | कुछ भी करके उसे मास्टरजी की मदद लेनी ही थी | गाँव वालों को बिजली उत्पादन का रास्ता समझाने के लिए मास्टरजी से बेहतर और कौन हो सकता था ? उसने मां को आवाज़ लगाई, “मां”| मगर मां घर पर होती तो आती, वो तो खेत संभालने निकल पड़ी थी, सब्जी भाजी उगाने का काम उसे भी बहुत पसंद था | दो तीन बार उसने मां को पुकारा, मगर मां तक आवाज़ नहीं पहुंची | थोड़ी देर बाद किसी के क़दमों की आहट सुनी, उसने सोचा शायद मां आ गई | फिर से मां को पुकारा तो मां तो नहीं, भाई सामने आया |

कई दिनों बाद छोटे भाई को देख उसका दिल खुश हो गया | भाई कभी भी अपने मतलब से उसके पास नहीं आया, जब भी मिला उसके और मां के हाल जानकर और कुछ वक़्त साथ बिताकर हमेशा हंसी ख़ुशी से ही रहा |

“आजा छोटे, कैसा है तू?” उसने छोटे भाई को प्यार से अपने पास बुलाया | दोनों में चार साल का अंतर रहा होगा | बनती खूब थी, बस बचपन भी अगर शान्ति से गुज़र जाता तो यादों के इन्द्रधनुष बन जाते | खैर, जो हुआ उसे कौन टाल सकता था, कम से कम अब शान्ति तो हो ही गई थी |

“ मैं तो अच्छा हूँ, बड़े भैया, पर आपने ये क्या हाल बना रखा है अपना?” छोटे ने चिंतित स्वर में पूछा तो वो मौसमी बीमारी बता कर बात टाल गया और उसे मास्टरजी को घर तक लाने के लिए भेज दिया | उसके लिए मास्टरजी से मिलना बहुत ज़रूरी था | उनके बिना कोई बात बनती ही नहीं थी | उसके सबसे बड़े हितैषी वही थे, और उनकी वजह से ही वो अपने पिता के ‘अधूरे’ ख़्वाबों को पूरा करने में लगा था | छोटे के जाते ही वो आज फिर अपने हाथ देखने लगा | इन्हीं हाथों ने उसे ‘कुछ नहीं’ से बहुत कुछ’ बना दिया, उसके जीवन को ऐसा उद्देश्य दिया जो शायद उसे नहीं मिलता तो वो सचमुच ‘अधूरा’ रह जाता | मास्टरजी के आने से पहले वो हाथ-मुंह धोकर कपड़े बदलना चाहता था, मगर शरीर ने साथ नहीं दिया | कमज़ोर हो चुके शरीर को उसने आगे उठाने की कोशिश करी मगर सफल नहीं हुआ और जैसे ही ठंडी सांस छोड़ी खांसी का दौर फिर शुरु हो गया | उसने पास ही रखा तौलिया लेकर मुंह पर रखा , खांसी के साथ इस बार कुछ खून के छींटे निकले थे | हाथ पैर ठन्डे पड़ गए उसके | ‘ये क्या हो रहा है, खून क्यों आया, क्या हुआ है मुझे?’ इन विचारों के साथ दिल तेज़ी से धड़कने लगा | उसे कुछ कुछ एहसास होने लगा था, अपनी लगभग ख़त्म होती ज़िन्दगी का | अच्छी से मुंह पोंछ कर तौलिया तकिये के नीचे दबा वो लेट गया | उसे अपनी मंजिल तक पहुँचने में वक़्त की कमी का एहसास खंजर की तरह चुभने लगा |

बाहर आँगन में चारपाई डालने की आवाज़ आई, छोटा मास्टरजी को लेकर आ गया था | उसने छोटे को आवाज़ देकर मास्टरजी को भीतर लेकर आने को कहा | वो बाहर जाने की हालत में नहीं था | मास्टरजी के अन्दर आते ही वो उनके चरणों में झुकना चाहता था इसलिए खाट से नीचे उतरने का प्रयास करने लगा | वो गिरने ही वाला था कि मास्टरजी ने उसे लपक कर थाम लिया | उसकी हालत देख मास्टरजी का ह्रदय काँप उठा | इसी हालत में बरसों पहले उसके पिता को जो देखा था | वही दृश्य मास्टरजी की आँखों के सामने चलचित्र की भांति घूम गया | उन्हें आने वाली हकीक़त का आभास हो रहा था | वे मन ही मन भगवान् से प्रार्थना करने लगे |

‘प्रभु, कुछ और करो न करो, इस महान इंसान के सपने पूरे कर दो |’ बड़ी मुश्किल से मास्टरजी ने अपनी आँखों के आंसूओं को रोका | वे उसके करीब उसी की खाट पर बैठने लगे तो उसने मना कर दिया |

‘मास्टरजी, मुझे खांसी हो रही है, आपको भी हो जायेगी यदि आप मेरे इतने करीब बैठेंगे, इसलिए आप उस चौकी पर बैठ जाइए |” हाथ जोड़कर यह कहते हुए उसने छोटे को इशारे से चौकी लाने को कहा | मास्टरजी इस बात पर बहस नहीं करना चाहते थे, करते भी तो क्या फायदा, वो तो उसके पिता के सामने बहस नहीं कर पाए थे | उसके पिता भी इसी हाल में कई महीनों रहकर….|

“कहाँ खो गए, मास्टरजी?” उसकी आवाज़ से मास्टरजी वर्तमान में लौट आये |

“नहीं, शिष्य, मैं तो बस तुम्हें इस हाल में देखकर विचलित हो गया हूँ | वैद्य को बुलावा दूं ?”

“दवाओं का असर नहीं हो रहा मास्टरजी, शरीर में ठण्ड भरने से खांसी हुई है, कुछ दिन में ठीक हो जायेगी |”

मास्टरजी जानते थे कि दोनों ही एक दूसरे की तसल्ली के लिए इस तरह की बातें कर रहे थे | वह भी तो कुछ ऐसा ही सोच रहा था | फिर मास्टरजी ने उससे उन्हें बुलवाने का कारण पूछा | वो भी बिना मकसद उन्हें नहीं बुलवाता, ये बात दोनों की  आपसी समझ की थी | उन दोनों के बीच एक अनकहा सा समझौता तो वक़्त ने सालों पहले ही कर दिया था |

उसने मास्टरजी को उनकी भेंट की हुई किताब में कचरे के सदुपयोग वाले पाठ की तरफ ध्यान देने के लिए विनती की | उसने ज़रा से शब्दों में ही मास्टरजी को पूरी बात कह डाली | मास्टरजी कुछ देर सोचते रहे फिर अगले दिन आने की बात कह कर वहां से चल दिए | जाते जाते छोटे को साथ आने का इशारा कर गए | उनके निकलते ही छोटा भी भाई से जल्दी लौटने की बात कह कर मास्टरजी के पीछे हो लिया | वह समझ गया कि मास्टरजी जल्द से जल्द काम पर लगना चाहते थे, आखिर इसमें पूरे गाँव का ही फायदा था |

                           -*-

थोड़ी देर बाद छोटा लौटा | उसके हाथ में एक थैला था जिसमें कुछ फल थे | साथ ही मास्टरजी ने बुखार ठीक करने की दवा भी भिजवाई थी, जो वो कुछ दिन पहले ही दवा की दुकान से लाये थे | वो इस समय बस ठीक होकर काम में लगना चाहता था इसलिए छोटे के हाथ से फल लेकर माथे से लगाये और फिर उन्हें खाकर दवा भी  खा ली | सब कुछ कसैला लग रहा था, परन्तु इस समय सब कुछ मंज़ूर था, बस वो अपने शरीर में काम करने की ताक़त चाहता था | बुखार ठीक होते ही उसने बाहर निकलने का फैसला कर लिया था | बस उसे छोटे के वहां से जाने का इंतज़ार था, उसे वो तौलिया वहां से गायब करना था | उसे रसोई में से अंगारों की हलकी गर्मी का एहसास हो रहा था, बस किसी तरह छोटे के जाते ही उसे वो तौलिया अंगारों पर जलाकर राख करना था | किसी को भी उसके खांसी में से आने वाले खून का पता नहीं लगने देना चाहता था |

थोड़ी देर छोटे को अपने गाँव में बिजली पैदा करने के इरादों के बारे में बताकर वो सोने का प्रयास करने लगा | छोटा भी थोड़ी देर भाई के पास बैठकर उसे सोता देख वहां से चला गया | किवाड़ बंद होने की आवाज़ आते ही उसने राम राम करके खुद को खाट के नीचे धकेला | उफ़, कितना टूटा सा हो रखा है शरीर!! किसी तरह घिसटते हुए वो रसोई में पहुंचा और तौलिया अंगारों में रख कर फूंक मार मार कर उसे जला दिया | अभी तौलिया राख होने ही वाला था कि मां आ गई | उसका ह्रदय धक् से रह गया किन्तु वो संभल गया |

पास ही पानी से भरा भगोना रखा था | मां उसे इस तरह देख घबराई तो उसने मां के आने पर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए उससे कहा, “अच्छा हुआ तू आ गई, मां !! ज़रा हाथ मुंह धोने को पानी गर्म करदे, फिर कपड़े बदल कर कुछ देर सो जाऊंगा | मास्टरजी ने दवा दी है, इसलिए नींद भी आ रही है | और हाँ, जल्दीबाजी में वो तौलिया अंगारों में गिर गया, मां, दूसरा दे देना न, और माफ़ कर दे ” एक सांस में वो सब कुछ बोल गया , मां उसका झूठ भांप ना पाई, मुस्कुरा कर उसे सहारा देकर उठाया और कमरे में पलंग पर लिटा कर रसोई में चली गई |

उसे सचमुच नींद आ गई थी, बिना हाथ मुंह धोये और बिना कपड़े बदले वो सो गया, शायद सच छुपाने की तसल्ली से | नींद में भी वो अपने सपनों की सीढ़ी चढ़ता रहता, खुली आँखों का क्या कहें | सुबह जब वो उठा जो उसे बुखार हल्का महसूस हुआ, शरीर में कुछ ताक़त का एहसास हुआ, खांसी मगर अब भी थी, पर पहले से थोड़ी सी कम | बुखार उतरने से उसे राहत मिली थी, कम से कम बाहर निकलना तो होगा, ये सोच वह खाट से उतरा, खड़े होकर इधर उधर देखा, मां नहीं दिखी तो उठ कर बाहर की ओर चलने लगा | सर थोड़ा चकराया था कमजोरी से, मगर हिम्मत ने साथ नहीं छोड़ा और इसीलिए वह बाहर की ओर चल दिया | बाहर मां बैठी थी आँगन में, उदासी से भरा चेहरा, आँखों में सूनापन लिए पता नहीं कहाँ देख रही थी, हाथ मशीन की तरह गुदड़ी सिले जा रहे थे मगर नज़र कहीं दूर खाली जगह में अटकी हुई थी | आहट पाकर मां मुड़ी और उसे देख खिल गई, सारा सूनापन और उदासी गायब हो गई उसकी |

“दो दिन बाद उठा है आज तू, अब कैसा लग रहा है तुझे “ कहते कहते उसकी मां रो दी थी |

 “दो दिन बाद !!!!” उसका मुंह खुला का खुला रह गया | उसे यकीन नहीं हुआ कि वो दो दिन सोता रहा है, पूरे दो दिन | फिर मां ने उसे हाथ मुंह धोकर आने को कहा और उसके लिए चाय बनाने चली गई | बाहर हवा ठंडी थी, जाड़े का मौसम जो था , मगर उसे अच्छी लगी…ताज़ी हवा | हाथ मुंह धोकर चाय पीकर वो बाहर ही बैठा रहा और उसके दिमाग में फिर से उथल पुथल मच गई | खांसी अब भी थी मगर पहले से कुछ कम | उसके थोड़ा हलका महसूस हो रहा था, उसने मां से गरम पानी के लिए पूछा | “मैं नहाना चाहता हूँ,मां, गरम पानी है क्या ?” “हाँ, है बेटा, चूल्हे पर रखा है, तू कपड़े तैयार रख, मैं पानी लाकर देती हूँ |” बचपन से यही होता आया है, मां उसे कपड़े तैयार रखने कहती है, और खुद जाकर गरम पानी नहाने के लिए गुसलखाने में रखती है |

वह नहा के निकला, बेहद तरोताज़ा महसूस कर रहा था, और अब भी मां की आदत के बारे में सोच कर मुस्कुरा रहा था | अचानक जैसे दिमाग में कोई झटका लगा उसे, “मां, जा रहा हूँ, ज़रूरी काम है “ बोलते हुए निकल गया | मां ने उसे पुकारा भी कि वो कुछ खा ले मगर वो अनसुना करके जाने लगा | कुछ कदम आगे जाकर लौट कर आया और मां से कहा कि खाने के लिए वो कुछ साथ में बाँध कर दे दे | उसके इस नखरे से मां अतीत में जाते जाते रुक गई और फटाफट उसे एक झोले में फल और रोटी सब्जी रख कर दे दी | उसके पिता अक्सर काम पर जाते जाते खाना साथ में ले जाते थे, कभी कभार जल्दी घर आकर सबके साथ में खाते थे |

अभी दौड़ने जितनी ताक़त नहीं थी इसलिए वह जल्दी जल्दी कदम उठाने की कोशिश करता हुआ चल दिया | क़दमों को एक ही जगह जाने की आदत थी | मास्टरजी क्लास में बच्चों को कुछ समझा रहे थे, इसलिए वह हमेशा की तरह पेड़ के नीचे बैठ गया | ‘काश कि कभी मुझे भी सबके साथ कक्षा में बैठकर पढ़ने का मौका मिला होता’ ये विचार उसके मन में आज एक बार फिर आ गए | बचपन के कुछ हक और कुछ मजे उसे मिले ही नहीं | ईश्वर ने किस्मत में कुछ और जो लिख रखा था |

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उसे मास्टरजी का इंतज़ार करना आज ज़रा भी अच्छा नहीं लग रहा था, उसे ऐसा लग रहा था जैसे वक़्त हाथ से निकला जा रहा हो | बहुत बेचैन हो रहा था वो, समय कट ही नहीं रहा था | आखिरकार मास्टरजी बच्चों को पढ़ा कर बाहर आये | हाथ मलते हुए उनकी ठण्ड निकालने के प्रयास में वो अब भी पेड़ के नीचे बैठा था | मास्टरजी के पास आते ही उसने तुरंत उनके पैर छूए |

“आप कैसे हैं, मास्टरजी?”

“लो, यह सवाल तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए |”

वह हंसने लगा, “क्या मास्टरजी, अच्छा मजाक करते हैं आप!! एक तो मुझे नींद वाली दवा देकर सो दिन तक सुलाए रखा और अब मेरे मजे ले रहे हैं |”

उसे हँसता मुस्कुराता देख मास्टरजी को चैन मिला | वो लगभग ठीक जो हो गया था, बस उसकी खांसी ….. पर वो आगे कुछ पूछते उसके पहले ही वो बोल पड़ा, “समय बहुत बर्बाद हो रहा है मास्टरजी, आप बताइये न अब आगे का कदम कैसे उठाएं हम? बहुत बड़ा और मेहनत वाला काम करना है हमको |” मास्टरजी ने उसे तसल्ली रखने को कहा मगर अब उसे तसल्ली कहाँ थी | वो तो सारे काम जल्द से जल्द निपटाना चाहता था | “नहीं, मास्टरजी, अब और सब्र नहीं होता | अब तो काम शुरू हो जाए फिर ही शान्ति से बैठूँगा |” मास्टरजी जानते थे कइ वो ऐसा क्यों कह रहा है मगर उन्होंने अपने ख्यालों पर काबू रखते हुए उसे बैठने को कहा , “अभी थोड़ा शान्ति से काम करो, दवा का असर उतरते से ही इतना दौड़ोगे तो फिर बीमार पड़ोगे और फिर काम करना मुश्किल हो जाएगा |” मास्टरजी की बात में दम तो था |

मास्टरजी उसके पास बैठ गए | उनके हाथ में उस किताब के साथ साथ कुछ और पर्चे भी थे जिनमें हर घर में रसोई से निकलने वाले कचरे से गैस पैदा करके बिजली बनाने के आसान तरीके चित्रों द्वारा दर्शाए गए थे | जब वो दो दिन बीमार था तो मास्टरजी शहर जाकर कुछ जानकारी इकठ्ठी करके लाये थे | सबसे आसान और सस्ते तरीके से उनके गाँव में बिजली पैदा करी जा सकती थी | उसने ख़ुशी के मारे मास्टरजी को गले से लगा लिया | थोड़ी देर तक अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करने के बाद उसने मास्टरजी के साथ इस विषय पर विचार विमर्श शुरू किया | काफी गहन चिंतन के बाद दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि इस बात के लिए गांव वालों को एकत्रित करके उन्हें ये आसान तरीका बहुत ही सरल माध्यम से समझाया जा सकता है क्योंकि इसमें कोई ख़ास खर्चा नहीं लगने वाला था | सभी मिल कर एक बार होने वाले खर्चे का समाधान कर सकते थे | दोनों का विश्वास था कि दादी के नाम पर यह काम शुरू करने से गाँव वाले मान भी जायेंगे और पूरा काम फुर्ती से चालू होकर फुर्ती से निपट भी जाएगा |

पूरा गाँव इस तरह पैदा होने वाली बिजली का फायदा पा सकेगा, यह बात दोनों के मन को संतोष देने लगी | थोड़ी देर दोनों खुली आँखों से संपन्न गाँव के सपने देखने लगे थे | जैसे इतनी रूपरेखाएँ बनी थी, ठीक वैसे ही गाँव वालो को स्कूल में एकत्रित कर उन्हें सारी बातें समझाकर काम शुरू कर दिया गया | बिजली बनाने के लिए सिर्फ जगह की समस्या आ रही थी और चूंकि बहुत ज्यादा जगह नहीं चाहिए थी, गाँव के ही एक आदमी ने अपने परिवार से सलाह करके अपनी खुद की खाली पड़ी जमीन इस ख़ास कार्य के लिये दादी के नाम पर दान कर दी |

जब इस बात की सलाह मशविरा का दौर चल रहा था, तब किसी ने कह ही दिया कि जिसे वे अधूरा कहते थे, उसने गाँव के असली अधूरेपन को ख़त्म करने का बीड़ा उठा कर सबके मन में भगवन का दर्जा पा लिया | बात सच ही थी, गाँव की इन ज़रूरतों को कोई समझ कर भी नहीं समझा था और “अधूरा” ने तो हल भी निकालने शुरू कर दिए थे | इस पर वह बोला था, “भगवान का स्थान वहां ऊपर है(उसने आसमान की तरफ इशारा करके कहा), मेरा यहाँ(ज़मीन की तरफ इशारा करके) सबके बीच, इसलिए भगवान को ऊपर रहने दो और मुझे इंसान की तरह इंसानों के बीच |”

धन्य हो गए थे सब उसकी बातों से | अब गाँव में उसके चर्चे होने लग गए थे , मगर प्रेम भाव और भक्ति से | सभी को वह ईश्वर का भेजा हुआ दूत प्रतीत होने लगा था |

इसी बिजली के माध्यम से उसने मास्टरजी की दी हुई किताब में से कुएं से पानी खींचने का समाधान भी ढूंढ लिया | उसके कहने पर मास्टरजी पास के गाँव में से कुछ बिजली का काम करने वालों को बुलाकर लाये और कूएं पर बटन दबाकर चलने वाली मोटर लगवा दी | अब पैसों की दिक्कत नहीं आती थी, सभी गाँव वाले मिलकर चन्दा इकठ्ठा करते और नेक कामों में अपना सहयोग देते |

खांसी के दौर फिर चलने लगे थे | कुएं की मुंडेर पर बैठना अब भी उसकी आदत थी जो रिवाज की तरह वो निभाता था | वो अब रोज़ गाँव के चक्कर लगाता था, मगर अब अकेले नहीं | अब छोटा साथ होता था | जब भी कहीं कोई समस्या नज़र आती तो दोनों भाई मास्टरजी के साथ मिलकर विचार विमर्श करते और मां हमेशा इन सबका पूरे खुले दिमाग से साथ देती |

अब वो रातों को सोता ज़रूर था, मगर एक काम और बाकी था | गाँव के लिए डॉक्टर का इंतज़ाम, जिसमें ना जाने कितना पैसा और वक़्त लगना था | आखिर किसी भी डॉक्टर को शहर से गाँव लाकर बसाना आसान काम नहीं था | न जाने कितने लोग बीमार होकर परेशान होते आये हैं, वैद्य की दवाओं में अब वो दम नहीं रहा क्योंकि जब हवा पानी ही शहर के बाहर बने उद्योगों की वजह से इतना बदल गया हो, तो वैद्य की हलकी दवाएं कैसे काम करती | भाई से इस विषय में अक्सर चर्चा होती | मौसम बदलने पर गर्मी की रातों में खुले आसमान के नीचे दोनों भाई तारे देखते हुए इस गंभीर विषय पर चर्चा करते रहते थे | छोटे की तो आँख लग जाती मगर वो नहीं सो पाता | उसे इस समस्या का हल चाहिये ही था, किसी भी कीमत पर |

हर रात वो खांसने लगा था, फिर दिन में भी भयंकर दौर चलने लगे | वैद्य ने भी उसकी खांसी के आगे हार मान ली | वैद्य को भी शायद अंदाजा था कि ये खांसी ऐसे नहीं जायेगी | मास्टरजी शहर चलकर इलाज कराने की जिद करने लगे, मां ने भी समझाया मगर वो गाँव से बाहर जाना ही नहीं चाहता था | इस गाँव में जान बसती थी उसकी | गाँव की तरक्की ही उसकी जान थी | इसे छोड़कर वो नहीं जा सकता था क्योंकि इलाज में अगर वक़्त लगता तो गाँव की समस्याओं को कौन सुलझाता ? उसे अपने सामने ही गांव में आटा चक्की लगानी थी, और हर रोज़ कुछ नया पनप रहा था उसके दिमाग में |

                           -*-

छोटी से छोटी समस्या भी उसे नई खोज की ओर ले जा रही थी, यह बात उसे प्रफुल्लित करती थी, हर बार वो कुछ नया सीखता था | कौन कहता है कि सिर्फ स्कूल जाकर ही कुछ सीखा जाता है ? ज़िन्दगी हर कदम पर नया अनुभव देती है, इस बात को वो बहुत अच्छी तरह से समझ चुका था |

“ये खांसी तो अब पीछा ही नहीं छोड़ रही, तू शहर क्यों नहीं जाता, बेटा? काम तो होते रहते हैं, अब तक कुछ भी नहीं रुका | इलाज करवाने से तुझे कितना आराम मिलेगा, ये भी तो सोच | आगे कोई दिक्कत नहीं होगी | मास्टरजी हैं न, वो सब संभाल लेंगे | जा न, मैं कहती हूँ, जा |” मां की ये बातें इस वक़्त वो सुनकर भी नहीं सुन रहा था | गहरे विचारों में डूबा वो बस दीवार को देखे जा रहा था | उसे रह-रह कर अपने पिता का साया हर जगह दिख रहा था |

“जाने क्या कहना चाहते हैं मुझसे, हैं मां?”

“कौन कहना चाहता है, क्या कहना चाहता है? कैसी बातें कर रहा है तू, लाड़ले, क्या हुआ है तुझे?” मां ने बिना उसकी ओर देखे सारे सवाल कर दिए |

“ठहरो न, बाद में आता हूँ, ज़रा मां से बात कर लूं |” वो अचानक बोल पड़ा और जोर जोर से खांसने लगा | खांसते समय भी दीवार को देख रहा था |

उसकी ऐसी बातें सुन मां पलटी और समझ ना पाई कि वो किससे बात कर रहा था | “बहुत खांसी हो रही है तुझे, और ये तू किससे बात कर रहा था, कौन है वहां, क्यों दीवार को देखे जा रहा है ?” मां घबरा कर बोली |

उसे जैसे एकदम होश आया कि वो मां से नहीं कह सकता कि वो अपने पिता को देख पा रहा है, मां सुनेगी तो घबरा जायेगी | बात को मजाक में उड़ाने के लिए उसने मां से कहा, “मां, मुझे लगा कि छोटे ने आवाज़ दी है | देखो न बाहर आया है क्या वो ?” मां ने उसके तपते चेहरे को देखकर उसके माथे को छूआ और बोली, “ तुझे  तो तेज़ बुखार हो गया है, तभी बड़बड़ा रहा है | सो जा अब |”

मां उसे थपकी देने लगी, मन डर से काँप रहा था, पहले बाप अब बेटा… हे भगवान्!! उसके आंसूं लुढ़क कर उसके आँचल पर गिरे, आँखें पोंछने के लिए उसने आँचल पकड़ा तो बेटे के चेहरे पर अजीब सा भाव नज़र आया, वो एकटक मां को देख रहा था | “ऐसे क्यों देख रहा है मुझे?” मां ने पुछा तो वो बस मुस्कुराया और मां की गोद में सर रखकर सोने की जिद करने लगा | बिलकुल छोटे बच्चे की तरह मचलने लगा था जब मां ने “चल हट” कहा था | फिर जब गोद में सर रख ही लिया तो बस आँचल पकड़ कर कुछ देर बाद सो गया |

सुबह कई लोगों ने दरवाज़ा खटखटाया, तब उसकी मां ने दरवाजा खोला | बिलकुल बुत की तरह चलते हुए दरवाजा खोल के पलट गई | मास्टरजी सबको पीछे धकेलते हुए आगे आये |

“नहीं मेरे शिष्य, ये नहीं हो सकता | तेरे बगैर मैं कैसे इस गाँव को बदल पाऊँगा ?”

बाहर गाँव वाले इस बात को सुनकर भौंचक्के रह गए, शायद समझ गए कि अब कुछ नहीं हो सकता | कोई छोटे को बुलाकर लाया, वो सब कुछ जानकार भाग के पहले ताई के पास गया | वो अब भी बुत बनी बैठी थी, उसका संसार सचमुच “अधूरा” रह गया था, वो अकेली हो गई थी, अब हमेशा के लिए | छोटे ने ताई की इस हालत को देखकर मास्टरजी से इन्तजाम करने को कहा | मास्टरजी उठ कर चल दिए | गाँव वाले भी एकजुट होकर लग गए, काका काकी भी आ गए थे |

छोटे ने ताई को अपने पास भींच लिया था, और उसने उनसे वादा किया कि भाई के अधूरे काम वो पूरे करेगा | ये सुन वो रोई, इतना रोई इतना रोई कि सारा गाँव हिल गया | वो भूखा ही सोया था, बस इतना ही कह पाई थी | पहले ‘दादी’, फिर पति, फिर बेटा सब एक एक करके चले गए | गाँव वालों में खुसर पुसर शुर हो गई कि कहीं काका काकी फिर से सब गड़बड़ ना कर दें | छोटे ने ये बातें सुन लीं |

“मेरा भाई ज़िंदा है, उसका आधा हिस्सा मैं हूं, देखता हूँ कौन मेरी ताई मां को परेशान करता है? मैं अपने भाई के सारे सपने पूरे करूंगा | उसके बदलाव की अधूरी कहानी मैं पूरी करुँगा | सब देख लो, वो जिंदा है, मरा नहीं है, मुझमें ज़िंदा है |”

कुछ महीनों पश्चात जब मां थोड़ी संभली तो छोटे ने उसे ताई कहना छोड़ सीधे मां कहकर बात करना शुरू किया और भाई के अधूरे ख़्वाबों को पूरा करने मां और मास्टरजी के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलने लगा |

बेटे की कमी पूरी तो नहीं हो सकती थी, मगर गाँव वाले अक्सर उसके विषय में प्रेम से बात करते, उसकी प्रशंसा करते और उसके कार्यों को आगे बढ़ाने की बात करते तो मां को लगता कि वो पास ही बैठा मुस्कुरा रहा है | वो उसकी मौजूदगी अपने आस पास महसूस करने लगी थी |

कुछ सालों बाद मास्टरजी के बूढ़े होने पर उनकी बेटी ने छोटे और गाँव वालों के साथ मिलकर सरकार तक अपनी आवाज़ पहुंचाई और एक अस्पताल अपने गाँव में खुलवा ही लिया | कुछ बच्चे जो बड़े होकर डॉक्टर बनना चाहते थे, उनके लिए “अधूरा” के नाम का ट्रस्ट खोलकर उनके आगे की पढ़ाई के लिए मां ने अपनी ज़मीन का कुछ हिस्सा बेचकर पैसों का संपूर्ण इंतज़ाम कर दिया क्योंकि इतना पैसा वो अपने लिए रखकर क्या करती | उसे और उसके बेटे को तो हमेशा से गाँव की मदद करने में आनंद आता था | छोटे ने आटा चक्की लगाकर गाँव वालों की गेंहूं सड़ने की समस्या ख़त्म कर दी और आटे को बोरों में भरकर शहर पहुंचाने का काम शुरू करवा दिया | इस तरह छोटे छोटे रोज़गार गाँव के ही लोगों को दिलाकर “अधूरा” के सपनों को पूरा करके छोटे ने अपने भाई का नाम रोशन कर दिया | गाँव वाले रोज़गार पाकर गाँव छोड़ने की बात करना भूल गए थे, अच्छा ही तो था क्योंकि सभी शहर भागते तो गाँव के परिवारों को कौन संभालता ? पीढ़ियां किस्से कहानी कैसे गढ़ती और कैसे परिवारों में प्यार बढ़ता !!

 धीरे धीरे अधूरे सपने पूरे होने लगे , पर इसके लिए “अधूरा” मिट्टी में मिलकर पूरा हुआ |

 यह कहानी आपको कैसी लगी, ये जानने को उत्सुक हूँ मैं | कृपया मुझे अपने विचार मेरे Comment Box पर अवश्य भेजें |

धन्यवाद सहित

मोनिका गोयल

Life Style

A smart city is a term given to the city that is smart in all senses. Be it technology, cleanliness, security, easy availability of basic resources, transportation and communication and more with it. But the point to be pondered is how a city can be smart without smart citizens!!
Smartness doesn’t come simply with knowledge of various languages or branded clothes or being the owner of BMW or having the best of the hi-tech job. Smart citizens need to be aware of certain important aspects which enhance their personality in the form of a good and responsible citizen. A smart citizen is the one who respects the law. A smart citizen is the one who has civic sense.
As a smart citizen, we need to adopt the following points:

– Respect elders and make the senior citizens comfortable.
– Create a safe environment for ladies and children.
– Park vehicles at the right place and in the right order.
– Keep your surroundings clean. Everyone keeps their house clean, but maintaining cleanliness in the surrounding areas is also important.
– Use garbage bins even for throwing the smallest of a chocolate wrapper.
– Follow traffic rules. Maintain the right speed limit. Never ever try to speed up as a show-off.
– Talk softly on mobiles when in a public place.
– Never pass lewd remarks on anyone.
– Learn to operate Kiosks and also teach those who don’t know how to.
– Protect the environment by planting trees so as to have fresh air to breathe.
– Think more in terms of educating children.
– Take steps to convert the city into a beggar-free city.

Life Style

कभी गर्मी कभी सर्दी, कभी धूप कभी छाँव, कभी बारिश कभी पतझड़, इन मौसमों के चलते ख़याल आया कि क्या खुशियों का भी कोई मौसम होता है ? क्यों अचानक चलते चलते कदम रुक जाते हैं ? किस सोच में हाथ यूँ थम जाते हैं ? भूल जाते हैं हम कि हमारा वजूद भी हमसे कुछ कहता है | भूल जाते हैं कि एक दिन दुनिया थम जाएगी और सोचने का वक़्त भी नहीं रहेगा | अपने दिल के कोनों में झाँक कर देखो तो पता चलेगा कि कितना कुछ छूटा हुआ है, शायद यही खालीपन पैदा करता है और हम समझ नहीं पाते | आये दिन के शोर तो सहन करते हैं हम पर अपने अन्दर के उस शोर को अजनबी कर दिया है | जब यह सब हम पर हावी होने लगता है तो पता चलता है कि बहुत कुछ खो दिया हमने | सबसे पहले खुद को, फिर अपनों को…कोई नहीं आता साथ तो समझ में आता है कि किसी अपने को साथ रहने नहीं दिया हमने | मसरूफ़ियत ने सब रिश्ते नाते छीनकर तनहा कर दिया | क्या हो गया ए ज़िन्दगी, तू कल तक तो अपनी सी थी, आज अपनी होकर भी बेगानी लगती है ? किसी मौसम के आने जाने की आहट से अब फर्क ही नहीं पड़ता, मौसम पर मेरा हक़ भी कुछ नहीं | जिसपर हक़ है, वो मैं खुद हूँ, पर अब मैं खुद से भी जुदा हूँ | जब खुद से ही जुदा हो चलते हैं हम, तो फिर किसके होने से फ़र्क पड़ता है ? खुद के अंदाज़ बयां नहीं होते अब लफ़्ज़ों में, किसी और के जानने से क्या होगा ?
अकेले जब घूमने निकल पड़े कदम, तो साथी की तलाश के बारे में किसने सोचा ? अब लगता है, सोचते तो अच्छा था, न मिलता तो गम नहीं होता, मगर सोचा तो होता | अब जब अकेलेपन से दोस्ती करी तो अचानक मुड़कर क्यों देखा ? कोई किस्सा कभी था नहीं तो क्या याद आया ? शायद दिल का वही कोना कचोट रहा था जिसे तन्हाई की आदत से बाहर निकलने की एक अदद छुपी तमन्ना ने उकसाया था | चलो उकसाया तो सही, वर्ना पता नहीं चलता कि अब भी ज़िंदा हूँ मैं |
मेरे मन के मौसम में अनेकों पल ऐसे हैं जिन्हें जीया तो है मैंने किन्तु फिर भी जीवित महसूस नहीं किया | शायद यही हाल आज सबका है | बदलते मौसमों का अनुमान लग जाता है मगर अभ्यस्त होने में वक़्त लगता है | शायद दिल के मौसम में बहार का समय आने नहीं दिया हमने | दिमाग अब भी इसी उलझन में है कि क्या खुशियों का भी कोई मौसम होता है ? क्या इसके आने का अनुमान नहीं लगा सकते हम ? अगर होता तो कितना कुछ समेट लेते बाद में जीने के लिए | काश!!! तोहफे में मिल पाता ये खुशियों भरा मौसम तो हम देते भी और लेते भी …खुशी खुशी |

Life Style

New Year is on the cards and party places is all we are searching for…

Enlisted below are 39 places where you can have fun with your friends and family.

new-year-party-greeting-card_1017-1452

Mega Musical Fest 2016 – New Year Celebration              

Single Entry Pass 599 INR

Female Comfort Pass (Only for female) 999 INR

Royal Entry Pass 999 INR

Madness Comfort Pass 2499 INR

City of Dreams Entry Pass 3499 INR

 

Royal Carnival on Pichola – New Year Celebration

Taj Lake Palace , Udaipur, India, Taj Lake Palace P.O. Box 5, Lake Pichola, Udaipur City, India

Fri Dec 30 2016 at 04:00 pm

to Sun Jan 01 2017 at 09:00 am

Mega Musical Fest 2016              

J2sd Base Camp , Pindwara Highway, Dheekli, Udaipur, India

Sat Dec 31 2016 at 04:00 pm

to Sun Jan 01 2017 at 08:00 am

Last Night Music Festival 2016 

Occasion Garden , 100 Ft Road, Udaipur, India

Sat Dec 31 2016 at 06:00 pm

stag 1500INR

couple 2500 INR

THE HELPING JACKS      

5 STAR GARDEN THOKER CHORAHA , UDAIPUR

Sat Dec 31 2016 at 06:00 pm

to Thu Jan 01 1970 at 12:00 am

The Counting Clock        

The Counting Clock 2016 , Banera Castle, 100 Feet Road,, Udaipur City, India

Sat Dec 31 2016 at 06:00 pm

The Helping JACKS Udaipur       

The Helping JACKS , GLASS FACTORY Mob.9785854115, Udaipur, India

Sat Dec 31 2016 at 07:00 pm

Bonfire Tryst     

Udaipur , India

Sat Dec 31 2016 at 07:00 pm

Unlimited food and snacks

Mocktails,bewerages

Stag 999 INR

couple 1899 INR

3699 INR for  4 members

New Year Dhamal          

Bhairav Garh Resort Udaipur , Maharana Pratap Khel Gaon, 200 ft Road, Opposite R.T.O., Chitrakoot Nagar, Bhuwana,, Udaipur, India

Sat Dec 31 2016 at 07:00 pm

New Year’s eve Celebration at Cambay Resorts Udaipur              

Cambay Spa And Resorts , Udaipur, RAJASTHAN, Cambay Spa & Resort, Plot No:- 439-442, RIICO, Bhamashah Industrial Area, Kaladwas,, Udaipur City, India

Sat Dec 31 2016 at 07:30 pm

Pool Side Party

Cambay Spa And Resorts , Udaipur, RAJASTHAN, Cambay Spa & Resort, Plot No:- 439-442, RIICO, Bhamashah Industrial Area, Kaladwas,, Udaipur City, India

Sat Dec 31 2016 at 07:30 pm

New Year Eve Party # Araliayas Resort, Udaipur              

Araliayas Resort , Udaipur-Jhadol Road, Araliayas Resort, Near Nai Gaon, Udaipur Jhadol Road, Udaipur, India

Sat Dec 31 2016 at 08:00 pm

*For Reservations Please Contact us at 8769656666 / 9587799765

Couple 5000 INR

Age group 8 yrs to 15 years @ Rs.1500/-

Kids below 8 years complementary.

Catapult 2016   

Cafe Nirvana , sajjan ghar road, Udaipur City, India

Sat Dec 31 2016 at 08:00 pm

to Sun Jan 01 2017 at 01:00 am

Lights On The Heights : New Years Eve 

Mathara – The Heights , Rooftop, Lakecity Mall, Durga Nursery, Udaipur, India

Sat Dec 31 2016 at 08:00 pm

to Sun Jan 01 2017 at 01:00 am

New Year’s Eve Celebrations #stepup   

Spectrum Hotel & Residencies , Kavita, Udaipur, India

Sat Dec 31 2016 at 08:00 pm

to Sun Jan 01 2017 at 01:00 am

Night at the Museum – New Year Celebration   

The Royal Retreat Resort & Spa , Udaipur, Village-Hawala, Badi Hawala Road, Udaipur City, India

Sat Dec 31 2016 at 08:00 pm

to Sun Jan 01 2017 at 01:00 am

Ramada Udaipur

Saturday 31st , 8 pm onwards

7000 INR per head

Contact : 9001298896, 9001297991

Bollywood Bang Bang 3.0           

Ranaji , Opp Last Chatri Fatehsagar Paal Dewali Near Fateh Balaji Temple, Udaipur, India

Sat Dec 31 2016 at 08:30 pm

to Sun Jan 01 2017 at 01:00 am

HUNGAMA”2K16″         

Silence resort badi udaipur , Udaipur, India

MIC n MUNCH 

For Reservation Call: +91 8452000455

Stag  699 INR

couple  1199 INR

Amantra Shilpi

Near Shilpgram Udaipur

Couple 4555 INR

child 1800 INR

Kabab Mistri – Hotel Jaisingh Garh        

for resv. call – 9001097754 / 9001797728 / 9001797730

Gala dinner with Live gazal, DJ & unlimited drinks at just Rs.5999/ Couple entry.

for resv. call – 9001097754 / 9001797728

couple 5999 INR

Park Exotica    

Contact +91 (294) 2430283, (294) 2430284, M. +91 7023104578,

reservation@parkexoticaresort.com

couple 4000 INR

child policy 6-12YRS =1200INR

12-18YRS=1500 INR

above 18YRS=2000 INR

Shikarbadi Hotel            

Inclusive of gala dinner and fun-filled surprises

For reservations and enquiries contact:

+91 99109 00630 and connect@hrhhotels.com

Dinner Charges* ₹ 6,000 per couple

and Rs 3500 for person

The Lalit laxmi Villas     

Venue: Palace Garden Lawn

Timings: 8:30 pm onwards

Email Id: udaipur@thelalit.com

Contact No.: +91 9784781000

Stag INR 7000

Child – INR 3500

Radisson Green Udaipur             

Masquerade Night

Sat Dec 31 2016 at 08:00 pm to Sun Jan 01 2017 at 03:00 am

couple 12000 INR

Rockkwood Restaurant

099287 06339 / 091661 13261 / 0294-6999111

Pratap Nagar-Sukher by Pass, Udaipur, Visit -www.udaipurrockwood.com

Couple 3500 INR

Lake haveli        

Contact for Booking Passes – 8233321592

Stag  999 INR

Couple 1499 INR

Shree Villa Restaurant 2017 NYE party  

Opp, Royal hyundai Showroom, balicha udaipur

9929996111, 7690070222

stag 500-600 INR

couple 900-1100 INR

URBAN DHABA GARDEN             

BHANGRA DHOLand then looking forward to LIVE Dj CAMP FIRE, SKY LANTERNS

8852913835, 9784963616

jüSTa Rajputana, Udaipur.       

Contact our hospitality manager 9590 777 000

reservations@justahotels.com

INR 3000

Oladar Cafe      

Modern Village Party

9116114256, 0294-2428008

7 pm onwards

Stag 2550 INR

Couple 3750 INR

Vintage Lounge Restaurant       

8 pm onwards

Contact:

8890175202, 7597592155, 7568200000

Couple 2800 INR

Stag 1650 INR

Punjabi Beat Night 2016              

Shouryagarh Resort & Spa

Contact: 07727861181, 08952079111, and 07727861182

couple 6999 INR

stag 3999 INR

Child, Age 8-17 2999 INR

Aishwarya Resorts         

DJ party and Gala dinner

couple 2000 INR

Family (2+2) 3000 INR

Zenana Mahal, The City Palace, Udaipur            

Gala Dinner

11,500 INR per head

City Club Restro Bar       

Near Kalyan Jewellers

Contact for reservations : 9461783215

Chillax Café

Contact 9983886266 and 8947969666

2699 INR for 5 members

 

Information As Per Sources, Please Confirm The Details & Rates From The Organizers Before You Plan To Book Your New Year Celebration

Happy New Year In Advance !

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Life Style

कोटा में बनने वाली सिल्क और कॉटन की साड़ियाँ जिनकी खासियत है चौकड़ीनुमा डिज़ाईन, वजन में बेहद हलकी और जिनकी बनावट बेहद बारीक होती है, समूचे भारत में कोटा डोरिया के नाम से प्रसिद्द हैं | शुरूआती दौर में इन साड़ियों को मसूरिया कहा जाता था क्योंकि ये मैसूर में बनती थीं | फिर मुग़ल सेना के सेनापति राव किशोर सिंह इन बुनकरों को कोटा के एक नगर में लेकर आ गए | सत्रहवीं शताब्दी के अंत और 18वीं शताब्दी की शुरुआत में सभी बुनकरों को कोटा में ही स्थापित कर दिया गया | तभी से इनके द्वारा बनाई हुई साड़ियाँ “कोटा-मसूरिया” के नाम से मशहूर होने लगीं |
पारम्परिक करघे पर ये साड़ियाँ ऐसे बनाई जाती हैं कि उनमें चौकड़ी(square) बनने लगती है जिनका आकार खाट के जैसा होता है | इन साड़ियों को बनाने वाले धागे पर प्याज का रस और चावल का पेस्ट लगाया जाता है जो कि धागे को बहुत मजबूत बना देता है |

ये साड़ियाँ कोटा में मसूरिया के नाम से और कोटा के बाहर कोटा डोरिया के नाम से ही जानी जाती हैं | डोरिया का अर्थ धागा होता है | अब इस कोटा डोरिया के कपड़े से कई चीज़ें बनने लगी हैं जैसे सलवार कमीज़, लैंप शेड्स, कुर्तियाँ,परदे आदि |

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Life Style

tieकरीने से सिला हुआ कपड़े का एक लम्बा टुकड़ा जिसे गले में शर्ट की कालर के नीचे बाँधा जाता है, टाई के नाम से जग में मशहूर है | इसे बाँधने के लिए अलग अलग प्रकार की गांठें होती हैं | यह ज्यादातर पुरुषों के परिधान का हिस्सा है, महिलाएं भी इसे ख़ास यूनिफ़ॉर्म के हिस्से के रूप में पहनती हैं और कुछ स्कूलों में भी यूनिफ़ॉर्म के साथ टाई का चलन होता है |

Origin of टाई

टाई की शुरुआत 1618 से 1648 के मध्य हुई थी | क्रोएशिया के लोगों ने अपनी फ्रेंच सर्विस के दौरान अपने पारंपरिक रूमालों/स्कार्फ को गले में बांधना शुरू किया था | स्कार्फ बाँधने की कला ने फ्रेंच लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था | क्रोएशियन शब्द Croats, Hrvati और फ्रेंच शब्द Croates में ज्यादा अंतर नहीं होने के वजह से इस स्कार्फ का नाम Cravat पड़ा | फ्रांस के नन्हे राजा Louis XIV ने 7 साल की उम्र में लेस से बने Cravat को 1646 में पहनना शुरू कर एक फैशन की शुरुआत करी | यह फैशन यूरोप में आग की तरह फैला और हर कोई इस तरह के कपड़े अपने गले में बाँधने लगा | इन Cravats को गले में बंधा रखने के लिए cravat strings को बो(bow) की तरह बाँधा जाता था | क्रोएशिया में इंटरनेशनल टाई दिवस 18Oct. को मनाया जाता है |

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आधुनिक टाई

Displaying Teal_Paisley_Tie_Set_grande.jpgतब से लेकर अब तक टाई ने कई रूप बदले | First World War के पश्चात हाथ से पेंट करी हुई टाई का प्रचलन हुआ जिनकी चौड़ाई 4.5 इंच हुआ करती थी | इस किस्म की टाई 1950 तक चलन में रही | Second World War के समय आज के मुकाबले छोटी टाई का चलन था | मगर 1944 के आसपास टाई ना सिर्फ चौड़ी होती गई बल्कि काफी हद तक चटकीली और डिज़ाइनदार भी |

21वीं सदी के शुरुआत में टाई 3 ½ से 3 ¾ इंच चौड़ी हो गई और उसमें कई डिज़ाइन भी मिलने लगे | लम्बाई 57 इंच या उससे ज्यादा भी रखी जाने लगी | 2009 में टाई के चौड़ाई कुछ कम करी गई |

टाई को कई तरह की गांठों द्वारा बाँधा जाता है और फैशन के आगमन ने टाई-पिन का भी निर्माण किया जो सोने-चांदी के एवं रत्नों से सज्जित भी होते हैं | टाई बांधना एक कला है, यह हर कोई आसानी से नहीं बाँध पाता, ठीक वैसे ही जैसे हमारे राजस्थान में पगड़ी बांधना एक कला है | टाई को ज्यादा कस कर नहीं बांधना चाहिए क्योंकि इसकी गाँठ बिलकुल गले के बीचों बीच की हड्डी पर आती है और कसने से सांस लेने में तकलीफ हो सकती है |

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Life Style

राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है जोधपुर | इसे “सन सिटी” और “ब्लू सिटी” कहा जाता है | “सन सिटी” इसलिए क्योंकि यहाँ पूरे साल सूरज की चमक बरक़रार रहती है | “ब्लू सिटी” इसलिए क्योंकि पुराने शहर में लगभग सभी घर नीले रंग में रंगे हुए हैं | 1459 में राठौड़ वंश के राव जोधा ने जोधपुर की स्थापना करी थी | राव जोधा मूलतः मंडोर के निवासी थे | मंडोर उस समय मारवाड़ की राजधानी हुआ करता था | फिर जोधपुर शहर बसा जो कि दिल्ली और गुजरात की सड़कों से सामरिक रूप से जुड़ा हुआ था | सामरिक महत्व ये था कि जोधपुर को इन राज्यों से अफीम,ताम्बा, रेशम,चन्दन, खजूर और कॉफ़ी के व्यापार से ख़ासा मुनाफ़ा होता था |

अंग्रजों के राज के समय जोधपुर क्षेत्रफल के हिसाब से राजपुताना का सबसे बड़ा इलाका था | उस समय शांन्ति और स्थायित्व कायम रखते हुए जोधपुर फलता फूलता रहा | यहाँ के “मारवाड़ी” व्यापारी समुदाय ने व्यापार के क्षेत्र में समूचे भारत में जोधपुर डंका बजा दिया | 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तब जोधपुर को केंद्र में विलय कर इसे राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर का दर्जा दिया गया |

जोधपुर का मौसम अक्सर गर्म रहता है | यहाँ बारिश जून से सितम्बर के मध्य होती है | तापमान अधिकतर 40 डिग्री को पार कर जाता है | यहाँ हलकी सी बारिश से तापमान में बहुत मामूली गिरावट के साथ बढ़ती उमस सभी को बेचैन कर देती है |

इस शहर की ख़ास इमारतों में सबसे पहला नाम जो ज़ेहन में आता है, वो है मेहरानगढ़ का किला | इसके अलावा देखने लायक इमारतों में उम्मेद भवन पैलेस, घंटा घर और जसवंत थाडा हैं | कुछ और जगहें भी हैं जैसे मंडोर बाग़, कायलाना झील, बालसमंद झील, रातानाडा गणेश मंदिर आदि |

मारवाड़ उत्सव या मांड उत्सव भी आकर्षण का मुख्य केंद्र है | इसके अलावा बाबा रामदेव का मेला भी भक्तों के आकर्षण का केंद्र है |

जोधपुर का हेंडीक्राफ्ट व्यवसाय भी काबिल-ए-तारीफ़ है | यहाँ के धातु के बर्तन, कांच की चूड़ियाँ, कालीन और मार्बल उद्योग अपनी अलग पहचान बना चुके हैं | जोधपुरी कोट की भी अलग ही शान है |

खान पान में जोधपुर पूरे राजस्थान में प्रसिद्द है | जोधपुर की नमकीन और मिठाई तो सभी की पसंद हैं | मिर्ची बड़ा, मावे की कचोरी, बेसन गट्टे, पचकूटा, कैर और गूँदे का अचार, लहसुन की चटनी, और गुलाबजामुन की सब्जी…. जितने नाम लिए जाएँ,कम हैं |

 

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मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में बसा हुआ है साँची जहां का Great Sanchi Stupa भारत के पाशाण(stone)शिल्प का सबसे पुराना उदाहरण है | इसका निर्माण सम्राट अशोक के राज्य के दौरान हुआ था | गोलार्ध आकार में पत्थर की ईंटों से स्तूप का निर्माण बुद्ध के उच्च पद को दर्शाने एवं उनके अवशेषों को सुरक्षित रखने के विचार से किया गया था | स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक की महारानी की देखरेख में हुआ था |
दरवाजों पर लगे मूर्तिशिल्प महात्मा बुद्ध के जीवन की कथाएँ कहते हुए बनाए गए थे , ऐसी शिल्पकारी जिसे देखने भर से पूरी जीवनी समझ आ जाए | स्तूप पर ब्राह्मी लिपि में कुछ लिखावटें भी हैं | साँची में स्तूप के अलावा और कई मंदिर हैं जिन्हें 1989 से UNESCO World Heritage Sites द्वारा चिन्हित किया गया है

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MARWAR FESTIVAL JODHPUR… one day to go!!
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The most popular festival in Jodhpur is the Marwar Festival. The two-day festival is held every year in the month of Ashwin (between September and October) in memory of the heroes of Rajasthan. It was originally known as the Maand Festival. The main attraction of this festival is the folk music centering around the romantic lifestyle of Rajasthan’s rulers. The music and dance of the Marwar region is the main theme of this festival. The folk dancers and singers assemble at the festival and provide lively entertainment. These folk artists give you a peek into the days of yore, of battles and of heroes who live on through their songs. Among other attractions at the festival is the Camel Tattoo Show and various competitions like Moustache, Turban Tying, Tug of War, Matka Race, Traditional Dress Competition and many more. The venues of this festival include the famous Clock Tower & Osian’s sand dunes.

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Bagore Ki Haveli is an ancient building that stands near Gangaur Ghat in the environs of Pichola Lake. The grandeur of the architecture of the mansion speaks for its delicate carved work and excellent glass work. Bagore Ki Haveli was built by Amir Chand Badwa, in the 18th century, who was the Chief Minister at the Mewar Royal Court at that time. When Amar Chand died, the building came under the possession of Mewar State.

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The mansion of Bagore (Bagore ki Haveli) acquired its name in 1878 when it made the abode to Maharana Shakti Singh of Bagore, who further built three stories to the main structure. The mansion that was left vacant for around 50 years, during this long period of desertion, the building deteriorated. And in 1986, the building was handed over to the West Zone Cultural Centre (WZCC).

The West Zone Cultural Centre planned to renovate the haveli into a museum. Seeing that the Haveli was an architectural museum by itself, the WZCC restored its typical and charming architectural style, henceforth depicting Mewar’s patrician culture. The intricate carvings and the beautiful glassworks are the major highlights of this 18th-century haveli. The museum also showcases the belongings of the royal kings and modern art.

Along with this,visitors can also watch dice-games, hand fans, jewelry boxes and pan boxes, nutcrackers, rose water sprinklers, copper vessels etc. The Queen’s Chamber showcases alluring paintings of Mewar dynasty. Beautiful peacocks created with small pieces of colored glass are one of the key places of interest. This splendid building has 138 rooms with well-arranged balconies, terraces, courtyards, and corridors.

Intricate and fine mirror work is a jaw-dropping sight; while meandering through the beautiful balconies and rooms you can also see the private quarters of the royal ladies, their bathrooms, dressing rooms, bedrooms, living rooms, worship rooms and recreation rooms.

The Haveli is opened for tourists all days of the week from 10:00 AM – 5:30 PM. The courtyards of Bagore ki Haveli are decked in the traditional fineries of Rajasthan in the evenings. Women with stacks of earthen pots dance to local beats and there is a puppet show as well. The haveli looks marvelous with glowing lights in the night.

Bagore Ki Haveli is a perfect place to explore the ancient architecture and aristocratic lifestyle of the Mewar royal family.