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340x220_patwonkihavelijaisalmer_51859जैसलमेर का नाम आते ही रेत के धोरों के बाद सबसे पहला ख़याल आता है पटवों की हवेली का जो कि पत्थर पर करी हुई कशीदानुमा बारीक कारीगरी का बेजोड़ नमूना है | यह हवेली एक अकेली बड़ी हवेली नहीं है बल्कि 5 छोटी हवेलियों का समूह है | 1805 में एक अमीर व्यापारी गुमान चंद पटवा ने इसका निर्माण करवाया था | इस अमीर व्यापारी ने अपने 5 बेटों के लिए इस हवेली में अलग अलग माले बनवाये थे जिन्हें सम्पूर्ण होने में लगभग 50 साल का समय लग गया था | इस हवेली में बेहद खूबसूरत वॉल पेंटिंग्स और पीले पत्थर पर बारीक खुदाई वाले झरोखे हैं | महज़ इसका दरवाज़ा ही भूरे रंग का है, बाकी पूरी हवेली पीले पत्थर से बनी हुई है |

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अपनी बारीक खुदाई के लिए जानी जाने वाली यह हवेली जैसलमेर के सबसे खूबसूरत उदाहरणों में अपने किस्म की अनूठी और एकमात्र हवेली है | इसकी बारीक खुदाई देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबा लेता है | यह हवेली शहर की तंग गली में अपनी भव्यता लिए खड़ी है |

कई प्रकार से भीतर से खंडित होने के बाद भी आज भी आप इस हवेली में कुछ पेंटिंग्स और कांच का काम देख सकते हैं | आज इस हवेली को सरकार के पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन ले रखा है और उनका दफ़्तर भी इसी हवेली के अन्दर है | हवेली के अन्दर मेहराबनुमा दरवाज़े हैं और हर एक मेहराब(arch) पर अलग अलग व्यक्तिगत चित्रण किया हुआ है |

ज्ञात हुआ है कि एक साल बहुत तेज़ बारिश में हवेली का एक हिस्सा ढह गया था जिसका जीर्णोद्धार करने में बहुत समय लगा | डर इस बात का था कि यदि हवेली की नींव कमज़ोर पड़ी और यह संपूर्ण रूप से ढह गई तो आसपास का इलाका भी ख़त्म हो जाएगा क्योंकि तंग गली में आमजन के भी मकान हैं |

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1970 के दशक में (असली तारीख और समय ज्ञात नहीं हो पाया है ) इस हवेली की जब देखरेख नहीं हो पा रही थी तो फ्रांस से आये कुछ अधिकारियों ने इसे अपने साथ ले जाने की बात करी थी और हवेली का सौदा करने के लिए मालिक को मना लिया था | तभी कुछ गणमान्य लोगों के कानों में यह बात पड़ी थी और उन्हें खतरे का आभास हुआ था कि फ्रांसीसी हवेली की एक एक दीवार को अपने साथ अपने देश ले जाना चाहते हैं | यह बात जैसलमेर के इतिहास के लिए शर्मनाक और बेहद दर्दनाक घटना होती यदि वे गणमान्य व्यक्ति सौदा होने के पहले इस बात को हवेली के मालिक तक ना पहुंचाते | हवेली की दीवारें उखाड़ कर ले जाने का अर्थ था आसपास की समस्त संपत्तियों को हानि पहुँचाना और जैसलमेर की खूबसूरती में दाग लगाना | सौदा किसी प्रकार निरस्त कर राजस्थान की इस धरोहर को बचा लिया गया |

अब इस हवेली को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है और इसे देखने वालों की नज़रें इस पर से हटती ही नहीं हैं | किन्तु इस हवेली के अन्दर छोटे चमगादड़ों ने अपना घर बना रखा है जो कि डर पैदा करता है | हालांकि गाइड पर्यटकों को आगाह करते रहते हैं, परन्तु यह चर्चा का विषय है |

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उत्तरप्रदेश के फ़िरोज़ाबाद को “चूड़ियों का शहर” कहा जाता है | अकबर ने फ़िरोज़ शाह नामक व्यक्ति के नेतृत्व में एक सेना यहाँ भेजी थी ताकि लुटेरों का सफाया किया जा सके | फ़िरोज़ शाह का मकबरा आज भी यहाँ मौजूद है | इन्हीं फ़िरोज़ शाह के नाम से शहर का नाम फ़िरोज़ाबाद रखा गया था |

 

 

 

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शुरू से ही यह शहर कांच की चूड़ियों और कांच की ही अन्य कलात्मक वस्तुओं के लिए प्रसिद्द है | पुराने जमाने में कुछ आक्रमणकारी यहाँ कांच की वस्तुएं लेकर आये थे जिन्हें नकार दिया गया था | इन वस्तुओं को फिर एक भट्टी में गलाया गया | ये पारंपरिक भट्टियाँ आज भी अलीगढ़ में छोटी छोटी बोतलें और कांच की चूड़ियाँ बनाने के काम में आती हैं | आधुनिक कांच उद्योग हाजी रुस्तम उस्ताद द्वारा शुरू किया गया था | सोफीपुरा में यमुना किनारे उनका मकबरा स्थित है जहाँ हर साल एक भव्य मेला लगता है | इस मेले में हर तबके के लोग शामिल होते हैं और हाजी रुस्तम उस्ताद को याद करते हैं | भट्टी में बनने वाली चूड़ी में एक भी जोड़ नहीं होता था | धीरे धीरे ये चूड़ियाँ आम जनता को पसंद आने लगी | इस तरह कांच उद्योग की शुरुआत हुई थी | तभी से फ़िरोज़ाबाद को कांच की चूड़ियों का गढ़ माना जाने लगा | शहर में घुसते से ही हर तरफ रंग बिरंगी चूड़ियों से सजी दुकानें देख कर आप समझ जाएंगे कि आप कौन से शहर में हैं |

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समय के साथ रंग बिरंगे कांच के टुकड़े तैयार किए जाने लगे जिनसे झाड़फ़ानूस(chandelier)बनाया जाता था | इन झाड़फानूस की राज दरबारों में और अमीरों के घरों में बहुत मांग रहती थी | फिर इसी तरह इत्र रखने के लिए शीशियाँ और अन्य कॉस्मेटिक चीज़ों के लिए डब्बे और बर्तन बनने लगे | फिर बढ़ती मांग के हिसाब से शादी ब्याह के मौकों के लिए बड़ी तादाद में चूड़ियों का उत्पादन आम जनता के लिए मांग के हिसाब से किया जाने लगा |

 

फ़िरोज़ाबाद में लगभग 400 कांच उद्योग स्थापित हो चुके हैं जो कि विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुएं और चूड़ियाँ बनाते हैं | बहुत सारा सामान विदेशों में भी भेजा जाता है | कांच के गिलास(सभी प्रकार के) भी फिरोजाबाद में बनते हैं और सभी चीज़ों पर खूबसूरत कटवर्क देखकर वास्तव में हैरत होती है |

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ganesha-with-chattra-250x250कांच के मर्तबान, मोमबत्ती स्टैंड, फूलदान, रंगबिरंगी लाइट,शंख जैसे अन्य कई उत्पाद कांच उद्योग द्वारा तैयार किए जाते हैं | डिज़ाइनर बोतल, डिज़ाइनर टेबल, डिज़ाइनर गिफ्ट आइटम्स…ना जाने कितने ऐसे उत्पाद हैं जो फ़िरोज़ाबाद की फैक्ट्री से निकलते हैं जिन्हें देखकर सभी को खरीद लेने का मानस बन जाता है |

 

 

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राजस्थान का सबसे बड़ा जिला और समूचे देश में तीसरा सबसे बड़ा हिस्सा है जैसलमेर | इस जिले से लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा 464 किलोमीटर लम्बी है |

the_entrance_gate_from_nh-15_jaisalmer_war_museumथार रेगिस्तान-जहाँ के रेत के धोरे मन मोह लेते हैं और कई हिंदी फिल्मों की शूटिंग यहाँ हुई है |

wm4इसी जैसलमेर जिले में “जैसलमेर वॉर म्यूज़ियम” (JAISALMER WAR MUSEUM) है जिसके जनक हैं लेफ्टिनेंट जनरल बॉबी मैथ्यूज़ और इसका निर्माण इंडियन आर्मी की डेज़र्ट कोर ने किया | इस म्यूज़ियम को जैसलमेर में 24 August, 2015 में लेफ्टिनेंट जनरल अशोक सिंह (PVSM, AVSM, SM, VSM, ADC, General Officer Commanding-in-Chief, Southern Command, Indian Army) ने देश को समर्पित किया था | अपने किस्म के एकमात्र इस म्यूज़ियम में भारतीय फ़ौज के गौरवशाली इतिहास को जनता के सामने लाया गया है | यहाँ पर 1965 और 1971 के युद्ध के समय जब्त किए गए दुशमन के हथियार और युद्ध सम्बंधित अन्य सामान को रखा गया है | एक दीवार पर HONOUR WALL के माध्यम से परमवीर चक्र और महावीर चक्र प्राप्त बहादुरों के नाम तराशे गए हैं | दो बड़े हॉल हैं – INDIAN ARMY HALL और LAUNGEWALA HALL , एक AUDIO-VISUAL ROOM और एक कैफेटेरिया भी है | हंटर जैसा लड़ाकू विमान, जिसने लोंगेवाला के युद्ध के समय पाकिस्तानी टैंक ध्वस्त कर दिए थे, भी यहाँ रखा हुआ है | पाकिस्तानी टैंक, जीप, कुछ अन्य मशीनें, बड़े ट्रक जिनमें दुशमनों का सामान ढोया जाता था और पाकिस्तानी सैनिक आते जाते थे, कई प्रकार की पुरानी मशीन गन, स्टेनगन, हथगोले, वायरलेस सेट, मोर्स कोड से सन्देश भेजने वाले यंत्र, रेडियो, खंजर, युद्ध  के समय काम में ली जाने वाली साइकिल, स्विस नाइफ जैसी कई चीज़ें यहाँ पर हैं | नक्शों द्वारा ये भी बताया गया है कि युद्ध के समय भारतीय सेना ने कौन कौन से मार्ग अपना कर दुश्मन को नाकों चने चबवा दिए थे | बहादुर शहीदों की तसवीरें देखकर रोम-रोम पुलकित हो उठता है |

commander-jaisalmer-southern-museum-command-inaugurated-general_b494e4ff-4bd0-11e5-a8da-005056b4648e“COUNTRY BEFORE SELF” का नारा ही हमारे भारतीय सैनिकों का एकमात्र उद्देश्य भी था | आपातकाल के समय और राष्ट्र निर्माण में फ़ौज के किरदार को दर्शाता इंडियन आर्मी हॉल बहादुरी की अनेकों दासतानें कहता है |

war-museumम्यूज़ियम देखने वालों के अनुभव को जानने के उद्देश्य से एक बोर्ड भी लगाया गया है जिसमें दर्शक अपने अनुभव पोस्ट-इट स्लिप्स द्वारा या फिर बोर्ड पर लिखकर बता सकते हैं |

जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर जैसलमेर शहर से लगभग 10 किलोमीटर पहले बने इस म्यूज़ियम के द्वारा उन सभी बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई है जिनके बिना भारत माता की बेड़ियाँ तोड़ना असंभव था |

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किशोर सागर और जगमंदिर पैलेस(Kishore Sagar and Jagmandir Palace)

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किशोर सागर झील 1346 में बूंदी के राजकुमार द्वारा बनवाई गई थी | इस झील की खूबसूरती सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है | इस झील के बीचों बीच एक द्वीप पर जगमंदिर पैलेस बना हुआ है | 1740 में बने जगमंदिर की शिल्प कला देखने लायक है | यह लाल रंग के सैंड स्टोन से बना हुआ है | रात के समय जब सब तरफ रौशनी ही रौशनी होती है तो इस जगह की खूबसूरती की पानी में दिखती झलक का जवाब नहीं होता | यहाँ पर नाव में सैर करने का आनंद भी उठाया जा सकता है |

गढ़ पैलेस (Garh Palace)

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राजस्थानी और मुग़ल कालीन शिल्प कला का संगम कोटा के सिटी पैलेस में स्पष्ट नज़र आता है | हर साल यहाँ हज़ारों पर्यटक आते हैं | महल की दीवारों पर पेंटिंग्स, शीशे का काम, शीशे की छतें, लटकती हुई लाइट्स,कुल मिलाकर सभी का समावेश इस जगह को आकर्षण प्रदान करता है | मार्बल की फ्लोरिंग, पैलेस के चारों तरफ सुन्दर बाग सुन्दरता को और भी बढ़ाते हैं | महल के अन्दर म्यूजियम में पुराने ज़माने के हथियार, पोशाकें, और हेंडीक्राफ्ट आइटम्स राजा महाराजाओं की सम्पन्नता और संस्कृति का उदाहरण हैं |

कोटा बैराज (Kota barrage)

Displaying kota barrage.jpgकोटा बैराज कोटा की सिंचाई नहर का हिस्सा है जो कि चम्बल नदी पर है | यह 1960 में बना था | तेज़ बारिश के समय जब इसके 19 दरवाज़े खोले जाते है तो पुल पर कंपन का एहसास होता है और इसे देखने आम जन उमड़ पड़ते हैं |

चम्बल गार्डन (Chambal Garden)

चम्बल की पृष्ठभूमि में बने सुन्दर बाग जो कि जनता के लिए सबसे पसंदीदा पिकनिक स्थल हैं | यह अमर निवास में है और यहाँ बने तालाब में घड़ियालों का निवास है | बच्चों के लिए इस पार्क में खलेने के लिए बहुत जगह है, इस कारण से सप्ताहांत में अक्सर परिवार यहाँ देखे जा सकते हैं |

खड़े गणेश जी का मंदिर (Khade Ganesh Ji temple)

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कोटा का अत्यंत धार्मिक माने जाने वाला स्थान है खड़े गणेश जी का मंदिर जिसमें भगवन श्री गणेश की मूर्ती लगभग 600 साल पुरानी है | चम्बल नदी के पास बने इस मंदिर से लगी हुई एक झील है जिसमें बहुत बड़ी संख्या में मोर में देखे जा सकते हैं | यहाँ की खासियत यह है कि गणेश जी की मूर्ती खड़ी अवस्था में है जो अपने किस्म की भारत में एक ही मूर्ती है |

 

सेवेन वंडर्स पार्क (Seven Wonders Park)

Displaying 925793881s.jpgयह पार्क 2011 में बनाया गया था | यहाँ ताज महल(Taj Mahal), ग्रेट पिरामिड ऑफ़ गिज़ा(Great Pyramid of Giza), ब्राज़ील का क्राइस्ट द रिडीमर (Brazil’s Christ the Redeemer), स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी(Statue of Liberty), आइफ़िल टावर(Eiffel Tower), लीनिंग टावर ऑफ पीसा(Leaning Tower of Pisa) और Rome’s Colosseum के प्रतिकृति(replica) हैं | राजस्थान और आगरा के 150 शिल्पकारों ने 8 महीने की कड़ी मेहनत करके इन प्रतिकृतियों को बनाया था |

 

 

 

 

 

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शिल्पग्राम उदयपुर से लगभग 3 किमी पश्चिम में स्थित है। इसे हस्तशिल्प गांव के रूप में भी जाना जाता है। इस ग्रामीण कला और शिल्प केंद्र का परिसर लगभग 70 एकड़ जमीन के एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है।
शिल्पग्राम एक तरह का नृवंशविज्ञान संग्रहालय (ethnographic museum) है, जो पश्चिमी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी जनसंख्या की जीवन शैली दर्शाता है। यहाँ परंपरागत शैली में बनाई गई 26 झोपड़ियां है। ये झोपड़ियां हर रोज इस्तेमाल के घरेलू सामान के साथ सुसज्जित हैं। सब के बीच, पांच झोपड़ियां मेवाड़ के बुनकर समुदाय का प्रतीक हैं।
यहाँ पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा हर वर्ष दिसम्बर माह के अन्त में दस दिन (21st dec-31st dec) का कार्यक्रम, “शिल्पग्राम उत्सव” आयोजित किया जाता है। शिल्पग्राम उत्सव में देश के विभिन्न प्रान्तों से आये शिल्पकार भाग लेते है जिन्हें अपनी शिल्प कला हेतु पारम्परिक तरीके से बाज़ार उपलब्ध कराया जाता है। इस उत्सव में देश के लगभग 400 से अधिक शिल्पकार एवं कलाकार भाग लेते है। उत्सव में प्रत्येक दिन को अलग प्रकार से आयोजित किया जाता है जिसमें देश के विभिन्न प्रान्तों से आये कलाकार अपनी प्रस्तुती देते है।
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— at Shilpgram

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Peepliya Ji: This small hamlet is situated around 31 Km away from the main Udaipur city and is a heaven especially during monsoons.
The lush green mountains, small rivulets and curved roads give a sense of adventure for the ones who love to explore new places.
Peepliyaji is ahead on the way of Ubeshwarji and is also accessible from backside of Badi road.

— at Peepliya.

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MARWAR FESTIVAL JODHPUR… one day to go!!
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The most popular festival in Jodhpur is the Marwar Festival. The two-day festival is held every year in the month of Ashwin (between September and October) in memory of the heroes of Rajasthan. It was originally known as the Maand Festival. The main attraction of this festival is the folk music centering around the romantic lifestyle of Rajasthan’s rulers. The music and dance of the Marwar region is the main theme of this festival. The folk dancers and singers assemble at the festival and provide lively entertainment. These folk artists give you a peek into the days of yore, of battles and of heroes who live on through their songs. Among other attractions at the festival is the Camel Tattoo Show and various competitions like Moustache, Turban Tying, Tug of War, Matka Race, Traditional Dress Competition and many more. The venues of this festival include the famous Clock Tower & Osian’s sand dunes.

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Bagore Ki Haveli is an ancient building that stands near Gangaur Ghat in the environs of Pichola Lake. The grandeur of the architecture of the mansion speaks for its delicate carved work and excellent glass work. Bagore Ki Haveli was built by Amir Chand Badwa, in the 18th century, who was the Chief Minister at the Mewar Royal Court at that time. When Amar Chand died, the building came under the possession of Mewar State.

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The mansion of Bagore (Bagore ki Haveli) acquired its name in 1878 when it made the abode to Maharana Shakti Singh of Bagore, who further built three stories to the main structure. The mansion that was left vacant for around 50 years, during this long period of desertion, the building deteriorated. And in 1986, the building was handed over to the West Zone Cultural Centre (WZCC).

The West Zone Cultural Centre planned to renovate the haveli into a museum. Seeing that the Haveli was an architectural museum by itself, the WZCC restored its typical and charming architectural style, henceforth depicting Mewar’s patrician culture. The intricate carvings and the beautiful glassworks are the major highlights of this 18th-century haveli. The museum also showcases the belongings of the royal kings and modern art.

Along with this,visitors can also watch dice-games, hand fans, jewelry boxes and pan boxes, nutcrackers, rose water sprinklers, copper vessels etc. The Queen’s Chamber showcases alluring paintings of Mewar dynasty. Beautiful peacocks created with small pieces of colored glass are one of the key places of interest. This splendid building has 138 rooms with well-arranged balconies, terraces, courtyards, and corridors.

Intricate and fine mirror work is a jaw-dropping sight; while meandering through the beautiful balconies and rooms you can also see the private quarters of the royal ladies, their bathrooms, dressing rooms, bedrooms, living rooms, worship rooms and recreation rooms.

The Haveli is opened for tourists all days of the week from 10:00 AM – 5:30 PM. The courtyards of Bagore ki Haveli are decked in the traditional fineries of Rajasthan in the evenings. Women with stacks of earthen pots dance to local beats and there is a puppet show as well. The haveli looks marvelous with glowing lights in the night.

Bagore Ki Haveli is a perfect place to explore the ancient architecture and aristocratic lifestyle of the Mewar royal family.

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Haldighati Heritage Run is a part of the Run to Breathe series of Runs. If historic battles and heroic deeds of the courageous soldiers get you interested, then Haldighati Heritage Run is definitely what you should try. Haldighati is a heritage site that witnessed the battle of 1576 between Rana Pratap Singh of Mewar and Raja Man Singh I of Amber, who was representing the Mughal forces.

For More Details and Registration Contact Saurabh – 9999509547

The Run will consists of 2.5K Dream Run, 5K and 10K Heritage Runs and 21K half Marathon through the historic and scenic landscape of Haldighati.

Haldighati is a destination that represents courage, heroism and loyalty of the Soldiers who fought in the ferocious battle that lasted 4 hours in the demanding landscape. This battle was so ferocious that it caused such large quantities of bloodshed of the courageous soldiers that even today the folktales talk about the soil that turned red due to the spilt blood. 

The Chetak memorial is also located in Haldighati which signifies the loyalty and courage shown by Chetak, Rana Pratap Singh’s battle horse. The place gives a nostalgic feeling as this was the same place where Chetak, breathed his last after leaving his master to a safe and secure location. 

A cenotaph (chattri) is built in pure white marble around 4 kms from the site of the battlefield. This cenotaph is dedicated to the gallant horse Chetak as a sign of respect and admiration. The battle of Haldighati has been captured an inescapable place in the India’s history.
Royon has brought to you a chance to enjoy this historic heritage site in the unique way of a Run. Haldighati Heritage Run is one of the Runs from the Run to Breathe series presented by Vedaan. It aims to bring to focus and popularise heritage sites like Haldighati which remain unexplored.
Haldighati is situated at a comfortable 40kms from Udaipur. The Haldighati mountain pass connects the districts of Rajsamand and Pali in Rajasthan. Haldighati also is famous for Rose Farming and specifically for Chaitri Gulab (Pink Rose grown in Chaitra month). You can also find all products made from Rose such as Rose water, Gulkand, Rose Squash, Rose fragrance and other medicinal products are produced here. On way to Haldighati you would see many stalls selling these products.

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1o Places of Udaipur and their Hidden Facts

Venice of the east or The City of Lakes and Palaces- Udaipur is one of the most beautiful cities and has found its place on the world map due to its art, history, culture and natural beauty. This lake city has innumerable locations that have their own significance. The following article attempts to highlight some noteworthy and hidden facts of some of the most momentous sites in and around Udaipur.

  1. Lake Palace

Lake Palace, also known as Jagniwas in its heydays, is located on an island in Lake Pichola. It’s a beautiful Palace and is about 1.5 hectares long almost covering the whole island. Built by Maharana Jagat Singh II in 1754 AD, the palace was considered to be the Royal Summer Palace of Rajputana. It was later converted into luxury hotel in 1960 AD by Maharana Bhagwant Singh.

The Lake Palace is a complete luxury hotel with courtyard, restaurant, fountain and a swimming pool. The sparkling Lake Palace is largely responsible for highlighting Udaipur on the International Tourist Map and has earned good name across the world. It is considered one of the most glamorous hotels in the world because of its location.

  1. Jaisamand Lake

The Jaisamand Lake is renowned for being the second largest artificial freshwater lake in Asia. Located at a distance of 48 Km from the city of Udaipur, Jaisamand Lake is also known as Dhebar. In 1685, Maharana Jai Singh built this lake while making a dam on the Gomti River. This lake covers an area of 36sq km, stretches to the length of 14 km and width of 9 km. The depth of this lake approximately 102 feet and has a circumference of 30 miles. 9 rivers and 99 Nuhllas contribute to fill this lake.

The dam on this lake is worth mentioning due to its massive size. It is 1202 feet in length, 116 feet in height and has width of 70 feet at the bottom. In total, this lake comprises seven islands and one of the islands is still inhabited by the tribe of Bhil Minas. The largest of these islands is known asBaba ka Bhagra’ and the second one is known as Piari‘.

  1. Alsigarh

Alsigarh is a small village inhabited mostly by the Bheel Community of Mewar, located in the southern west part of Udaipur district about 30 Km from the District Head Quarters.

The best fact about this part of Udaipur is that the rain water which falls on western part flows to the Arabian Sea, and the water falling on the eastern part of this place finds its way to the Bay of Bengal.

  1. Baneshwar Fair

The Beneshwar Fair holds great importance for the culture of Udaipur. The word Beneshwar is derived from Linga (Lord Shiva). In the month of January-February every year on the full moon night, two rivers Som and Mahi converge in Rajasthan, which is considered sacred as per Indian mythology. Thousands of tribal devotees gather to worship this phenomenon. These devotees submerge the ashes of their relatives, as a memorial service. After that, they take bath in the river and then take the blessings of Lord Shiva at Dungarpur in Rajasthan.

  1. Zinc & Copper Mines

The Zinc and Copper Mines of Udaipur region have been known to be excavated for metals even in the medieval times.

  1. Udaipur Solar Observatory

Udaipur Solar Observatory (USO), situated on an island in the Fateh Sagar Lake, is considered as the best solar observing site in Asia. It is also among the few in the world that are situated on an island.

Established in the year 1975 by Dr. Arvind Bhatnagar under the Vedhashala Trust of Ahmedabad, USO is designed as per the model of Solar Observatory at Big Bear Lake in Southern California. Since 1981, the observatory has been under the control of the Physical Research Laboratory (Ahmedabad) for the Department of Space, Government of India.

Being placed on an island, this observatory has become the perfect centre to develop solar physics. Being surrounded by water, the island provides a favourable atmosphere for solar observations. As air turbulence is lesser on island then ground, sharp images of the sun can be acquired. Also, other advantage of this observatory is that it is located in Rajasthan, which observes maximum number of cloudless days. All these factors add to quality of extracted images of the Sun.

The huge longitudinal gap between Australia and Spain is plugged by USO. USO also provides a connection for regular solar coverage in numerous International Collaborative Programs including Global Oscillations Network Group (GONG).

Under GONG project, USO was numbered among the six observatories of the world that watch the sun for 24 hours. National Science Foundation of the United States that intends to study oscillations in the solar atmosphere has sponsored this project of GONG.

Hence, USO is a site of national and international importance. One needs to take a boat rife to visit this observatory.

  1. Kumbhalgarh

Kumbhalgarh is located 84 km North of Aravalli hills in Udaipur and houses the colossal Kumbhalgarh Fort – an important landmark of Mewar rulers. The fort was built in 15th century by Maharana Khumbha and was used to protect the Rajput warriors at the time of danger.

The Kumbhalgarh Fort is more known in the modern times for its wall which is the second longest wall after the “Great Wall of China”. Encircled by thirteen elevated mountain peaks, the fort is constructed on the top most ridges around 1,914 meters above sea level. The fortifications of the fort extend to the length of 36 kilometres and this fact has made this fort grab a position in the international records. The huge complex of the Fort has numerous palaces, temples and gardens making it even more magnificent.

  1. Jag Mandir

This beautiful three-storied Palace, located on the southern island of Lake Pichola and made in yellow sandstone and marble, has significant historical relevance. Built in early 17th century, Jag Mandir Palace was raised by Maharana Karan Singh to serve as a refuge for Prince Khurram, who later became popular as Emperor Shah Jahan.

The interesting part of history is that it was during Maharana Karan Singh’s reign, that Prince Khurram revolted against his father and left the kingdom. The Maharana offered help and that is when the Prince stayed at Jag Mandir Palace.

It is a matter of pride to know that although Jag Mandir was under construction during his stay in 1623-24, Emperor Shah Jahan imbibed several ideas, especially of pieta dura work, for the world-renowned Taj Mahal from Jag Mandir Palace. The present form of the Palace is the result of further additions that were made to it by Maharana Jagat Singh.

Coming to the structure, Gul Mahal within Jag Mandir Palace grabs maximum attention as this is where the Emperor stayed with his family. Made in Islamic style of architecture, the hall has amazing interiors and is decorated with the Muslim crescent. Apart from the designing, the Maharana also got a mosque constructed for the esteemed guests.

Other pavilions that are worth mentioning are Bara Patharon Ka Mahal, made out of twelve solid marble slabs, Kunwar Pada ka Mahal, meant for the crowned Prince and the Zenana Mahal, for the Royal Women.

Jag Mandir Palace has beautiful gardens adorned with roses, palm trees, jasmine flowers, frangipanni trees and bougainvillea.

  1. Nagda

Nagda is a small town located besides Bagela Lake at a distance of 23 km north-west of Udaipur on the way to Nathdwara. In the 6th century, Nagda was founded by Nagaditya, the fourth Mewar King. Initially it was known as Nagahrida and served as the capital of Mewar. The place then came under the province of Sisodias. Nagda comprises many small and big temples, but the main attraction is its ‘Sas-Bahu’ temple.

This unusual temple dates back to the 10th century. The term ‘Sas-Bahu’ suggests ‘Mother-in-law and Daughter-in-law’ respectively. The temple is dedicated to Lord Vishnu and it is made in two structures, one by a mother-in-law and another, by a daughter-in-law. The main entrance to the temple is made through a door that has carved lintels and a multi-lobed arch in the centre. Both the structures are laid out on the same plan having an altar, a mandapa (columned prayer hall) with projections and a porch.

Another temple that captures attention is the Jain temple. Dedicated to the Jain Saint Shanti Nath, the temple is said to have been built during the rule of Rana Kumbha. The temple has a strange idol and that is how the temple got its name – ‘Adbhut’ which means strange. This strange idol is 9 feet in height. These temples were destroyed by the foreign invaders to a large extent, still they boast of their exceptional artistic architecture.

  1. Tree House

The tree house in Udaipur was recently included in the Limca book of records. This tree-house, built around a 65-year-old mango tree, was built in 2000.

It has been built with all the genius knowledge by a businessman of Udaipur Mr. K. P. Singh. Mr. Singh being a very passionate and a conceptual person and is very much in love with nature, he had nurtured this idea for long. And through his sheer genius he put his dream to become a reality. This tree house is a mile stone in the beauty and heritage of Udaipur.