दांतली [ मेवाड़ी राजस्थान बहु उपयोगी कृषि उपक़रण ]
Does Hand sickle Really Live up to the Hype?
दांतली [ मेवाड़ी राजस्थान बहु उपयोगी कृषि उपक़रण ]
आज के समय से दूर थोड़ा दूर एक समय रहता है|
जिसमें रहती है कई कहानियां किस्से जो दिलों को जोड़ देते हैं।गांव और शहरों के मोबाइल नामक वायरस के चपेट में आने के बस कुछ पहले ,हां कुछ ही पहले की ही तो बात है।
हरे भरे खेतों के बीच से निकलती गांव की गोरियां ।
कहीं दूर से आती आवाज – ऐ दारियां जट जट चालो ,घरे जाईन रोटा पोणा है।
हरा पीला लूगडा़ ओढ़े छोरियां
“ऐ धापूड़ी थारी दांतेड़ी मैं चारा में देखी
वटेइस भूल गी बापू कुटेला दारी ने” धूलकी अपनी छोटी बहन पर नाराज होती बोली।
“थू परी लाती अटे आईन भजन हुनाईरी मने” धापूड़ी पलट वार करती हुई।
वहां थी हंसी ठिठोली और थी दांतेड़ी ।
खेत में जाने से पहले किसान का मुख्य हथियार फसल की जब हाथों से कटाई की जाती तो किसानों की सहभागी सिर्फ ये दांतली होती ।
दांतली से रजका काटना भी एक कला की बात थी केवल सधा हुआ हाथ ही ऐसे कमाल कर पाता था।
गांवों में बस्ती से दूर खेतों में ,कई बार जंगलों में लकड़ी लेने जाते हुए औरतों का स्वाभिमान बचाती थी ये दांतेड़ी ।
कई पुराने किस्सों और हादसों में महिलाओं ने इसी दांतली का इस्तेमाल करके मां रण चंडी का रूप धारण कर मानव रूप में भटकते कई शुंभ और निशुंभों का वध किया था ।
रसोई में सब्जी काटने का एकमात्र औजार थी ये दांतली चाकू का प्रयोग तब ना के बराबर था।
लेकिन समय किसी का नहीं रहता ,घर का सबसे जरूरी औजार ,मार्ग का सहचर , किसानों की साथी ये दांतली आज कहीं खो गई है।
इतिहास में गुम हुई दातंली का आज के बच्चे तो शायद नाम भी नहीं जानते ।
खेर दातंली आज भी हमारे दिल के करीब है बहुत करीब और जब तक हमारी पीढ़ी जिन्दा है बचपन की यादों से हम इसे लेकर आते रहेंगे।