November 12, 2024
Knowledge

साहब, हर बच्चा एक सा नही होता !

अगर आप टी ब्रेक मैं कुछ पढ़ने के लिए ढूंढ रहे हैं तो माफ़ कीजिये यह वो नहीं क्योंकि इसका सम्बन्ध तो आपके बच्चों से है इसलिए इसे तब पढ़िए जब आप अपने बच्चो के भविष्य के लिए चिंतित हों
मैं यहाँ Monika Goyal जी का ध्यान खींचना चाहूंगा आपका पिछले लेख मुझ बहुत पसंद आया था और यह लेख लिखने की प्रेरणा भी मुझे उसी से मिली

एक बच्चा था, माँ, बाप का लाडला जैसा हर बच्चा होता है. लेकिन इस पर ध्यान कुछ ज्यादा ही दिया गया। शादी के 10 साल बाद बच्चे का होना उस समय आम बात नही थी इसलिए प्यार बहुत ज्यादा दिया जाता था। बच्चा भी स्वभाव से चंचल और शरारती था और जहां प्रेम अधिक हो वहां जिद का होना स्वाभाविक है। तो बड़े मज़े से कट रही थी उसकी की अचानक पता चला कल से स्कूल जाना पड़ेगा ? चूंकि स्कूल का नाम सुना था,नई पोशाख मिलेगी, नए दोस्त मिलेंगे। आखिर बच्चे को स्कूल भेजा गया पहला हफ्ता ज़रा मुश्किल था क्योंकि माँ नज़र नही आती थी। पर अब ज़रा ज़रा आदत होने लगी थी वक्त गुज़रा नर्सरी और के.जी. कक्षा की दीवारें लांघ कर बच्चे ने पहली कक्षा में प्रवेश लिया। लेकिन अचानक एक घटना हुई जिसने उस बच्चे को एक अलग ही मनोस्थिति में डाल दिया एक रोज़ कक्षा की अध्यपिका ने एक सवाल पूछ लिया की “सभी बच्चे बताएं, सीधा हाथ कौनसा है?” बच्चा असमंजस में पड़ गया हालांकि सीधा और उल्टा शब्द वो पहले भी सुन चुका था किन्तु इस सवाल ने उसे घुमा दिया। बच्चा सोचने लगा
सीधा ??
मतलब वो हाथ जो सीधा हो…
और वो हाथ जिस से में खाना खाता हूँ…
और वो हाथ जिस से मैंने अभी पेन्सिल पकड़ी थी…

ठीक मतलब यही हाथ है सीधा, बच्चा हाथ उठाता उस से पहले अध्यपिका ने बड़ी ज़ोर से उसका हाथ पकड़ कर ऊपर उठा दिया “यह होता है सीधा हाथ, कल ही तो बताया था, बेवकूफ”
.
यह क्या हुआ ? अचानक हुए इस हमले ने बच्चे को डरा दिया वह जिसे घर पर सभी होशियार और तेज़ दिमाग कहते थे उसे बेवकूफ क्यों कहा गया ?खैर बात आई गई हो गई अब तो बच्चा तीसरी कक्षा में था लेकिन उस दिन के बाद तो घटनाओं की झड़ी सी लग गई थी एक रोज़ एक झन्नाटेदार थप्पड़ उस बच्चे को पड़ा और एक गर्जीलि रोबदार आवाज़ बच्चे के कान से टकराई “इतने बड़े हो गए फिर भी “ई” और “इ” की मात्रा में फर्क नही पता मूर्ख….एकाएक सारी कक्षा में ठहाके लग गए। आँखे लाल हो गई गुस्सा, शर्म, डर तीनो का मिलाजुला भाव उस बच्चे के चेहरे पर था।
अब तो बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी. जो बच्चा घर में सबका लाडला था वो अब एक आँख नही भाता था, परीक्षा के ताने, अधूरे गृहकार्य पर गालियां आम बात हो गई थी लेकिन इन सब के बीच एक बात अलग थी वो था शौक…उसे शौक था बिजली तारों का, जलती बुझती बत्तियों का, ढेरों पुराने नए सेल और कई सारी छोटी छोटी एलइड़ी इकट्ठा करने का, उनकी रोशनी में, खिलौनों से निकली हुई मोटरों की आवाज़ में वो तमाम सारी बेइज़्ज़ती को भूल जाने लगा।

मगर क्या करता ज़माने से लड़ने के लिए ये सब नाकाफी था। आठवीं कक्षा में पहली बार फेल हुआ वह और हिम्मत हार गया। सोच लिया की अब नही पढूंगा चाहे जो हो जाये, में स्कूल नही जाऊंगा लेकिन एक सवाल अभी भी था जिसका जवाब उसे ढूंढना था की जब उसकी लिखाई की समस्या है तो वह भविष्य में क्या करेगा ? उसने निर्णय लिया की वह अपने लिए लिखी गई हर बात हर नोट अंग्रेज़ी में लिखेगा और बाकी लोगों के लिए वह हिन्दी में लिखेगा क्यों की लोगों के सामने boy को doy लिख के शर्मिन्दा होने से “लड़की” को “लड़कि” लिखना थोड़ा कम शर्मनाक था। लेकिन भविष्य में क्या करेगा ? क्योंकि सपने तो उनके भी होते हैं जो देख नही पाते
निर्णय फिर हुआ की जिस तरह एकलव्य ने मूर्ति को गुरु बनाया था में हर एक व्यक्ति को गुरु बनाऊंगा, सभी से सीखूंगा अब बच्चा जवानी की देहलीज़ पर आ गया था पहली बार उसने अपने ज्ञान को अपने ही भीतर से अर्जित किया, अपनी पहली जीत पक्की की पहला सर्किट बोर्ड बनाकर, घरवालों को भी यकीन नही हुआ किन्तु था सत्य, इसके बाद उसने जीत का बिगुल कइ जगह बजाया, Micro controllers programming से लेकर PHP में स्वयं का SSSTP SERVER जैसे काम उसने अपने बेनाम गुरुओं की मदद से किये लेकिन सवाल आज उन शिक्षा के ठेकेदारों से है की वो कहते हैं की हम आपके बच्चे का भविष्य बनाएंगे जबकि वो तो हमारे बच्चों को जानते तक नहीं…तो ऐसे में इस एक बच्चे जैसे कइ बच्चे हमारे आसपास हैं लेकिन उनका हाथ पकड़ कर मदद करने वाला कोई नही, आमिर खान की एक फिल्म में डिस्लेक्सिया का जिक्र है लेकिन हमने उसे सिर्फ मनोरंजन तक लेकर छोड़ दिया। तो क्या बस वही जिंदा रहेगा जो इन स्कूलों के नियमों के अनुरूप चलेगा ?? हर बच्चा एक सा नही होता।

– Rishi Khatri

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *