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प्रयाग गिरि महाराज ने तपस्या की, वो जगह कहलाती है धूणी: महाराणा प्रताप ने शुरू की थी धूणी दर्शन की परंपरा, उदयपुर सिटी पैलेस के हैं अंदर।

विश्वराज ने 40 साल बाद सिटी-पैलेस में किए धूणी दर्शन, सुबह किए एकलिंगजी के दर्शन

उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में राजतिलक की रस्मों को लेकर छिड़ा विवाद अब खत्म हो गया है। परंपरानुसार राजतिलक की रस्म के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ बुधवार शाम करीब 6:30 बजे सिटी पैलेस में धूणी दर्शन किए।

विश्वराज सिंह मेवाड़ के साथ सलूंबर के देवव्रत सिंह रावत, रणधीर सिंह भींडर, बड़ी सादड़ी राज राणा समेत 5 लोग धूणी दर्शन करने पहुंचे।

धूणी दर्शन के बाद एकलिंगजी मंदिर के दर्शन करने होते है। जिस धूणी को लेकर विवाद हुआ। उसका इतिहास क्या है और क्यों राजतिलक की रस्म के बाद धूणी के दर्शन करना जरूरी है। इस बारे में मेवाड़ जन संस्थान के संयोजक प्रताप सिंह झाला ‘तलावदा’ से जानकारी ली। वहीं एकलिंगजी के दर्शन करने की परंपरा के बारे में भी जाना।

पहाड़ी के बीच तपस्या करते मिले थे साधु —
चित्तौड़गढ़ के किले में दो बार जौहर होने के कारण तत्कालीन महाराणा उदय सिंह ने माना था कि ये राजधानी सुरक्षित नहीं है। उन्होंने सुरक्षा को लेकर पर्वतों से घिरी मेवाड़ की नई राजधानी बनाने तय किया। इसके लिए वे लंबे समय तक पहाड़ों में घूमे थे।

वर्तमान में जहां सिटी पैलेस हैं, वहां की पहाड़ियों उन्हें सही लगी। वे पहाड़ी के ऊपर पहुंचे। वहां एक साधु तपस्या करते हुए नजर आए। साधु ने उदय सिंह से पूछा कि आप किस वजह से यहां आए हैं। उदय सिंह ने बताया कि वे नई राजधानी के लिए जगह तलाशने आए हैं।

वह साधु प्रयाग गिरि महाराज थे। उन्होंने उदय सिंह को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए आशीर्वाद दिया और बोले कि इस धूणी को बीच में लेकर राज महलों का निर्माण शुरू करो। यहां से तुम्हारी सत्ता कायम रहेगी। इसके बाद महाराणा उदय सिंह ने 1553 ईस्वी में 15 अप्रैल अक्षय तृतीया के दिन इन राज महलों की नींव रखी, जो आज सिटी पैलेस के नाम से जाना जाता है।

प्रयागगिरि महाराज की तपस्या वाली जगह कहलाती धूणी
सिटी पैलेस के बीच में आज भी वह धूणी कायम है। बता दें कि यह धूणी वही है, जहां साधु प्रयाग गिरि महाराज तपस्या कर रहे थे। उन्होंने बताया कि हजारों सालों से यह परंपरा चली आ रही है कि कोई भी राजा राजतिलक होने के बाद सबसे पहले इसी धूणी के दर्शन करता है। उसके बाद वह भगवान एकलिंग नाथ के दर्शन के लिए पहुंचता है। धूणी दर्शन की परंपरा महाराणा प्रताप से शुरू होती है।
यह परंपरा महाराणा प्रताप के समय से शुरू हुई जो अब तक जारी है। उन्होंने बताया कि इससे पहले दिवंगत पूर्व सांसद और पूर्व महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ का भी राजतिलक सिटी पैलेस प्रांगण में हुआ था, फिर उसी धूणी के उन्होंने दर्शन किए थे।

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We are excited to share that Arth Group, a well-known name in the healthcare industry in udaipur, has achieved a remarkable accomplishment by receiving the prestigious Bhamashah Award. This recognition has been awarded for their exceptional contributions in the fields of  diagnosticsdermatology and fitness. Award has been recieved by Dr. Arvinder Singh & Dr. Rajendra Kachhawa of Arth Group Udaipur.

The Bhamashah Award is a highly esteemed honor named after the legendary minister of the kingdom of Mewar, Bhamashah. It is bestowed upon individuals and organizations that have made significant contributions to society, recognizing their excellence, innovation, and dedication in various sectors. Arth Group’s remarkable achievements in dermatology, diagnostics, and fitness have made them worthy recipients of this prestigious accolade.

Winning the Bhamashah Award is a testament to Arth Group’s leadership in these fields. Their commitment to excellence, innovation, and personalized care has earned them this well-deserved recognition. Through their ground-breaking advancements, Arth Group has positively impacted the lives of numerous individuals, helping them achieve healthier skin, accurate diagnoses, and improved fitness levels.

Dr. Arvinder Singh, a World Record Holder and known as the Father of Cosmetic Dermatology, as well as a renowned serial Medipreneur, Clinical Cosmetic Dermatologist, and Pathologist, expressed his delight regarding the award. He mentioned that such recognition always boosts the morale of the entire team and inspires them to make even greater contributions to society.

As we celebrate Arth Group’s exceptional achievements, we look forward to their continued dedication in pushing boundaries and improving healthcare practices. Their unwavering commitment to enhancing the quality of life is truly commendable. We eagerly anticipate their future endeavors, which will undoubtedly shape the healthcare landscape for the better.

Arth Group’s success story serves as an inspiration to all, highlighting the potential for innovation and positive change within the healthcare industry. Their journey reminds us of the significant impact that can be made when expertise, passion, and dedication converge.h

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स्टूडेन्ट एक्सचेंज प्रोग्राम में रॉकवुडस के विद्यार्थी जर्मनी रवाना

रॉकवुडस स्कूल के कक्षा ग्यारवीं एवं बारहवीं के विद्यार्थियों का दल स्टूडेन्ट एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत रविवार को जर्मनी के लिए रवाना हुआ। जर्मनी में ये दल डी.बी.बी.सी. स्कूल के विद्यार्थियों से मिलकर वहाँ की संस्कृति, शिक्षा व विभिन्न गतिविधियों का अध्ययन करेगा। जर्मनी से लौटते हुए ये दल कुछ दिन पेरिस में बिताएंगें, जहाँ विभिन्न विश्व प्रसिद्ध स्मारको जैसे एफिल टावर और म्युजियम ‘लुव्र’ भी देखेंगे।

संस्था के निदेशक श्रीमान् दीपक शर्मा ने बताया कि ये दल 15 दिन वहाँ के विभिन्न स्थानों पर विद्यार्थियों के साथ रहकर दूसरे देशों की संस्कृति, रहन-सहन व नवाचारों का अध्ययन करेगा। इससे पूर्व जर्मनी विद्यार्थियों का भी एक दल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत राॅकवुड्स स्कूल में आया था। रॉकवुडस स्कूल में यह कार्यक्रम विगत कई वर्षों से आयोजित किया जा रहा है।

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ये तो हम सभी जानते हैं कि हर बात को कहने के कई तरीके होते हैं | Expression या feeling चेंज होते ही बात का मतलब बदल जाता है | “ये क्या हो गया!!” इस बात को अगर गुस्से में कहा जाये तो अलग मतलब निकलेगा, आश्चर्य से कहा जाए तो अलग, प्यार से कहा जाए तो अलग, हंस के कहा जाए तो अलग, यानि जितने भाव उतने मतलब, उतना ही असर | तो ये तो हुई बात को कहने के अंदाज़ की बात | अब सोचिये अगर इस बात को आप मेसेज में लिखते हैं तो क्या होगा ? पढ़ने वाला उसको अपने मूड के हिसाब से ही पढ़ेगा ना? तो भई smiley और emoji के ज़रिये आप इस बात को कहेंगे तो पढ़ने वाला समझ जायेगा कि आप सीरियस हैं या मज़ाक के मूड में | 

कुल मिलाकर बात यह है कि अगर smiley और emoji ना होते आज की मेसेजिंग की दुनिया में तो न जाने कितने रिश्ते,जैसे दोस्ती,प्यार-मोहब्बत,अपनापन,इज्ज़त सब मिट्टी में मिल जाते | ये तो इन smileys और emojis का कमाल है कि आप बिना बोले ही अपनी बात सामने वाले के सामने रख देते हैं और आपका अंदाज़ सही तरीके से बयां हो जाता है | ना जाने कितने लोगों के बीच में टेक्स्ट मेसेज की वजह से झगड़े हुए हैं और ना जाने कितनों ने अपने रिश्ते बचा लिए हैं | 

हम यह नहीं कहते कि आप बातचीत बंद कर दें,हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि अपने रिश्तों को अहमियत दीजिये | उन्हें संभाल कर रखिये और बिगड़ने से बचाने के लिए कोशिश करते रहिये | अच्छे रिश्ते बने रहेंगे तो दुनिया भी शान्ति से चलती रहेगी | Smiley और emoji का उदाहरण तो हमने सिर्फ बातों के सही अंदाज़ को समझाने के लिए और आपसी रिश्तों को बनाये रखने के इरादे से दिया है | बाकी आप खुद समझदार हैं !!  

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अपनी मिट्टी से जुड़े रहने का फायदा हम सभी जानते हैं | अपनी यादें, अपनी ज़मीं, सब कुछ अपना सा, वही अपनी मिट्टी | मिट्टी से लिपी हुई जगह और उसपर केलू की छत पड़ी हो तो उसकी ठंडक का आनंद कुछ और ही है | एसी में वो मजा नहीं, जो खुली हवा खुले आसमान के नीचे ऐसी किसी जगह में है जिसे हम नेचुरल एसी कह सकते हैं |  

केलू की छत बहुत ठंडक देती है गर्मी में | गांवों में आज भी केलू वाले घर दिख जायेंगे, शहर में तो लोग स्टाइल के तौर पर लगाने लगे हैं | ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी पुरानी यादों को ताज़ा रखने के लिए घर की छत को केलू से ढकते हैं | पहली बारिश में भीगे केलू जो सोंधी सोंधी महक देते हैं, उसके लिए हम शहर वाले तरसते हैं | 

कभी किसी ऐसी जगह में जाकर बैठिएगा इन गर्मियों में जहाँ केलू लगे हों, हवा चल रही हो, पत्ते भी उड़ रहे हों, सूखे पत्तों की सरसराहट भी बहुत कुछ कहती है | एक तरफ सूखी घास से ढकी हुई जगह, एक तरफ से खुली हुई, ऊपर केलू और आप वहां बैठे हों और छाछ का मजा ले रहे हों, कुछ दोस्त साथ हों और स्कूल कॉलेज के दिनों की यादें ताजा करी जा रही हों, घास से ढकी जगह में से छनती हुई धूप आ रही हो और अगर उसी समय बूंदाबांदी शुरू हो जाए तो पिकनिक वाला समा बंध जाए …ऐसा चाहेंगे न आप ? इससे बढ़िया ब्रेक क्या मिलेगा तनाव भरी ज़िंदगी से !!

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उदयपुर में बोहरा गणेश जी का मंदिर लगभग 350 साल पुराना गणेश मंदिर है जो कि बोहरा गणेश रोड पर आयड़ म्यूजियम धूलकोट के निकटवर्ती इलाके में है | इसमें गणेश भगवान की खड़ी प्रतिमा लगी हुई है | सालों पहले यह मंदिर शहरी सीमा के बाहर हुआ करता था किन्तु शहर के विस्तार के बाद ये सीमा के अन्दर आ गया |


इस मंदिर के साथ कई रोचक कथाएँ जुड़ी हुई हैं | ऐसा माना जाता है कि यदि किसी भक्त को अपने किसी ख़ास उद्देश्य को पूरा करने के लिए यदि धन की आवश्यकता पड़ती है, तो उस भक्त को अपनी आवश्यकता को एक पर्ची पर लिखकर गणेश भगवान् से प्रार्थना करनी होती है कि जैसे ही उसका उद्देश्य पूर्ण होगा, वह उस रकम को ब्याज समेत चुका देगा |

ऐसा करने पर गणेश जी अपने सच्चे भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं | ऐसा भी बताया जाता है  कि गणेश मंदिर के नाम के साथ बोहरा शब्द जुड़ने का कारण है बोहरा समुदाय जो कि पैसों के लेन-देन का कार्य करते हैं | मंदिर में रोज़ भक्त लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं | परिवारों में शादी ब्याह के कार्यक्रम में गणेश जी का स्थान सर्वोपरि माना गया है | जब भी किसी के घर में शादी होती है, तो वे मंदिर में  आकर गणेश जी के सामने कार्ड रखकर उन्हें भी निमंत्रण देते हैं एवं सभी कार्य शुभ मुहूर्त में शांतिपूर्वक सफलता से निपटाने के लिए प्रार्थना करते हैं |

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• आपसे निवेदन है की अधूरी पोस्ट्स ना डालें, आप कुछ बेचना चाहते हैं खरीदना चाहते है, किसी को जॉब देना चाहते हैं या नहीं जॉब करना चाहते हैं कोई सलाह चाहते हैं तो कृपया 4 लाइनें लिखने का कष्ट करें, अधूरी पोस्ट रिजेक्ट करने में हमें कोई मजा नहीं आता !
• यदि कोई व्यक्ति कुछ बेच रहा है और अधिक जानकारी के लिए आपसे मैसेज / फ़ोन पर बात करने का आप्शन दे रहा हैं तो कमेन्ट में रेट्स पूंछ कर बेवजह पोस्ट की TRP ना बढाएँ
• सही दिन सही पोस्ट कभी रिजेक्ट नहीं होती है, बार बार स्पैम करने पर ग्रुप से मजबूरन हमें ब्लाक करना पड़ता है !
• किस प्रकार की पोस्ट्स कभी स्वीकार नहीं होगी
– MLM, Network Marketing, Porn, Political or Personal Allegation, Defamation, Abusive Language, Posts Looks Like Spam / Scam
• किस दिन क्या पोस्ट कर सकते हैं
– प्रतिदिन : जरुरत सम्बन्धित पोस्ट्स जैसे जॉब की आवश्यकता, किसी प्रकार की सलाह, कुछ खरीदने सम्बन्धित पोस्ट्स आदि
– सोमवार – प्रॉपर्टी के अलावा सभी के लिए निःशुल्क विज्ञापन
– मंगलवार – प्रॉपर्टी सम्बंधित पोस्ट्स (बेचना, किराये देना, प्रॉपर्टी डीलर्स की पोस्ट्स)
– बुधवार – ट्रेनिंग सेंटर, इंस्टिट्यूट, स्कूल, कॉलेज, युनिवर्सिटी आदि के विज्ञापन
– गुरुवार – ग्रुप से जुडी महिला बिज़नस ओनर्स अपने व्यवसाय की पोस्ट्स (प्रॉपर्टी के अतिरिक्त)
– शुक्रवार – कैफ़े, रेस्टोरेंट्स, होटल्स के लिए विज्ञापन
– शनिवार – प्लेसमेंट एजेंसी के लिए विज्ञापन सुविधा
– रविवार – कविता, कहानी, ब्लॉग, फोटो, पेंटिंग आदि (खुद के)
one2all के ग्रुप्स नेटवर्क की सभी ग्रुप की डिटेल्स इस लिंक पर उपलब्ध है – https://one2all.co.in/groups/

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From the textbooks to the archives, history is filled with pages of stories of leaders who have shown courage and honor. But when it comes to Maharana Pratap and his journey that involved intrepid fights, valor, struggle against the hardships and respect for his land, it is rare to find a fighter like him. With great honor and respect in the hearts of the followers, Maharana Pratap has been a premier of patriotism, freedom and independence.

Birth and early life of Rana Pratap

Rana Pratap was born to father Maharana Udai Singh II and mother Maharani Javantha Bai Songara on 9th May 1540, (Jyestha Sudi), third day of Vikram Era 1597 in Ardh Naksatra. Though born at Kumbhalgarh fort, some historians believe it to be “Juni Kacheri” near Pali District. His birth was considered auspicious and predictions were made about the Glory he will bring to the clan. His education was worthy of a prince and he mastered the warfare tactics and weaponry during his early age.

Jealousy among the queens of Udai Singh however, resulted in depriving Maharana Pratap from father’s love and royalty and forced him to live in a village below the ridge of Chittorgarh. He was raised there by his maternal grandfather Akheraj Sonagar(pali) who soon died in a battle.

Maharana Pratap got married to Ajabade (daughter of Rao Ram Rakh Panwar), at the age of 17 and were soon blessed by a son named Amar Singh.

Physique of Rana Pratap

There is no confirmed source written in the history of Mewar which would authenticate the physical structure of Rana Pratap.

Coronation of “Rana Pratap”

Maharana Udai Singh II died at the early age of 42 in “Gogunda”, leaving behind twenty-five sons. Setting aside the established laws of “Primogenitor”, he proclaimed his favorite son “Jagmall” as his successor. But surprisingly, in a coronation performed at Gogunda Maharana Pratap was crowned the 54th king in the lineage of Sisodia Rajputs girding Pratap with the sword, thrice touching the ground, hailed him the “King of Mewar” when Jagmall too was moved out of the seat by Rawat Kistna and ex-prince of Gwalior.

Akbar’s Motive

By the year 1573, Akbar the then Mughal king had control of Chittorgarh. But to realize his dream of being the Jahanpanah of Hindustan he needed to bring the ruling state of Mewar under him which wouldn’t be possible under the rule of Maharana Pratap.

Akbar sent six diplomats to get Maharana Pratap agree to the former’s servitude whereby the sovereignty and honor of Mewar would remain intact.

However, Maharan Pratap turned down each one of them. The last of these missions were headed by Raja Man Singh, the brother-in-law of Akbar and king of Amber (Jaipur).  Even the lack of recourses never lured him and he scorned comfort and luxury when they had to be bought at the cost of his independence.

For a quarter of a century he withstand the combined effects of the Mogul empire; at one time carrying destruction into the plains, at another flying from rock to rock, feeding his family from fruits of the jungle, and rearing the nursling Hero Amar Singh, amidst savage beasts, and scarce less savage men. Though wealth and fortune tempted the fidelity of his chiefs, not one was found enough to abandon him.

A Short Introduction of the battlegrounds

The Brave Tribe of Bhils

Rana Pratap had the very strong support of the indigenous tribe of Mewar- Bhils, who fought with him to till end and sacrificed their lives for the Honor of their ruler.

Rana Pratap made his descendants Vow that until he brings back the glory of Chittor, he would sleep on straw bed and eat off a Pattras (leaf Plate). Rana Pratap could not win back Chittor and even today, many Rajput follows that promise and places a leaf under their plates and a straw under their bed.

Warfare Tactics and the Heroes

“Guerrilla Warfare” had been in existence since times unknown, but Rana Pratap was probably the first to use “Organized Guerrilla Warfare” against a mighty enemy and very successfully administered a disastrous blow to the Mughal army.

Many, at times it seemed that Rana Pratap was on the verge of being victorious. To lead his battle against the Mughals Maharana Pratap has the bravest of all brave leaders- Jhala Bida, Hakim Khan Sur, Poonja Bhil ( in photo) including Raja Ram Shah of Gwalior, Rawat Netsi of Kanod,Kishandas Chundawat of Salumber, Bheem singh DodiyaRamdas Rathore of Badnore, Shankardas Rathore of Kelwa, Jhala Maan of Delwara, Ram Singh SandooJaisa Barhat and Keshav Barhat were few of the leaders who laid their lives for the brave Rana Pratap in his efforts to keep the lamp of Independence burning.

Battle of Haldighati 1576 A.D.

Akbar launched an offensive against Rana Pratap in A.D. 1576 after all the efforts, to bring Rana Pratap to his servitude failed. Akbar established his headquarters at Ajmer and this became one of the 22 subahs of Akbar’s empire.

As a “Guerilla Warfare” tactic Rana Pratap restricted his region in the mountains of Aravali i.e from north to south, Kumbhalgarh to Rishabdev and from west to south Mirpur to Satola. The faithful aborigines “ The Bhils” took to field, with Rana Pratap with their ordinary weapon the Bow and Arrow and huge stones ready to roll upon the combatant enemy, above and below the Rajputs were posted and on the cliffs and pinnacles the “Bhils”.

To save the honor of their land against the mighty Mughal army with the strength of Two Lac soldiers. There stood the Twenty Two thousand on that day 7th of Sawan Sanwat 1632(July 1576), for the defense of Haldighati and only eight thousand quitted the field alive.

The Turn Around

The turning point again came in 1582 when Rana Pratap Inflicted a crushing defeat to the Mughal army in Dewair( the northern entry point of Mewar connecting Marwar, Gujarat, Malwa and Ajmer). From this battle onwards Rana Pratap moved from being defensive to Offensive and in a very short time he regained all the lost land of Mewar except Ajmer and Chittor.

The legend of Maharana Pratap

The Legendary Maharana Pratap’s Gratitude can be summarised in two incidents.

To save the honor of their land against the mighty Mughal army with the strength of Two Lac soldiers. There stood the Twenty Two thousand on that day 7th of Sawan Sanwat 1632(July 1576), for the defense of Haldighati and only eight thousand quit the field alive.

One day Raja Man Singh the commander in chief of the Mughal army was out hunting with a few hundred of his troops. Pratap’s Bhil spy reported this to him at his camp a few kilometers away and as he seems to be on a hunting sprawl he can be easily targeted but Maharana Pratap straight forwardly refused to back stab him and defeat him other than that on a battlefield. Other time the women from the family of Abdur Rahim Khankhana (Mogul commander) were captured by  Pratap’s son Amar Singh, and presented in front of the Rana.

At this point of time, Khankhana was actually on the march against Pratap, and was camping at Sherpur. Infuriated and not withstanding this act, immediately Pratap commanded his son Amar Singh to arrange for the safe conveyance of the mogul ladies to their camp. Khankhana was so affected by this incident that he refused to fight against such a chivalrous monarch. He petitioned Akbar to be relieved of his post and was subsequently (in 1581) appointed guardian of Akbar’s own son, Salim.

The After Story

After the Haldighati Battle, Mughal Emperor Akbar made repeated attempts to capture or kill Maharana Pratap, but he did not succeed. Where in the year 1576 he captured Udaipur and named it Mohammadabad and likewise Chittorgarh was named Akbarabad (source), both the names were never accepted. Maharana Pratap served (struggled) for 25 years and died a peaceful death on January 19, 1597 at Chawand, the capital founded by him in deep hills south of Udaipur, the reason of his death being injury caused during a hunting game.

Maharana Pratap’s arch foe Mogul Emperor Akbar is believed to have shed tears at end of this brave warrior, because he was the only ruler who refused to compromise his honor for comfort & safety and, in the end, he died a proud and free king. Maharana Pratap was affectionately called “KIKA” especially by the tribal’s and the poets.

Maharana Pratap left behind him 17 sons and 5 daughters. It is said that on his death bed Rana made his eldest son, Amar Singh swear to keep the torch of independence burning and the “aan” of his motherland intact from the “Turks”.

It is an upsetting fact that we do not have an original portrait of the leader who is immensely worshiped by his followers. It is believed that there was only one portrait of Maharana Pratap that was made during his struggle against the Mughals but was taken by the British.

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– Sharad Lodha