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अजमेर के पास स्थित फॉय सागर झील अप्राकृतिक झीलों में से एक है जिसे फॉय नामक एक अंग्रेज़ ने 1892 के अकाल के समय राहत कार्यों के तहत बनवाया था | ये झील एकदम समतल सी दिखती है और यहाँ से अरावली की पहाड़ियां नज़र आती हैं | यह एक पर्यटन स्थल भी है | इस झील की क्षमता 15मिलियन क्यूबिक फीट की है और पानी करीब 14,000,000 स्क्वायर फीट में फैला हुआ है | 

अना सागर झील को पृथ्वीराज चौहान के दादा ने 1135-1150 ईसवी में बनवाया था और उन्हीं के नाम से इस झील को जाना जाता है | 13 किलोमीटर फैली इस झील को आम जनता की मदद से बनाया गया था | झील के पास की पहाड़ी पर एक सर्किट हाउस बना हुआ है जो British Residency हुआ करता था | झील के बीचों बीच एक द्वीप है जहाँ नाव से जा सकते हैं | झील की अधिकतम गहराई 4.4 मीटर है और इसकी क्षमता 4.75 मिलियन क्यूबिक मीटर की है | 

जब मुस्लिम संत मोईनुद्दीन चिश्ती अपने अनुयायियों के साथ अजमेर आये थे तो उन्हें इस झील से पानी लेने की अनुमति नहीं दी गई थी | फिर उन्होंने एक प्याला पानी लेने की अनुमति मांगी और उन्हें अनुमति मिल गई| जैसे ही उन्होंने प्याला भरा, झील का पानी स्वतः सूख गया | तब आमजन ने उनसे पानी लौटाने की गुज़ारिश करी जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया | तब से उनके भक्तों की तादाद बढ़ती चली गई | 

इन्हीं मोईनुद्दीन चिश्ती को ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से जाना जाता है | ये इस्लामिक scholar और philosopher थे | चिश्ती दरगाह अजमेर शरीफ के नाम से भी प्रसिद्द है | जितनी भी चिश्ती दरगाहें मौजूद हैं, उन सबमें से अजमेर की दरगाह सबसे ज्यादा पाक और प्रमुख कही जाती है | भारत सरकार द्वारा दरगाह के लिए बनाई गई समिति यहाँ का हिसाब किताब रखती है और आस पास के क्षेत्रों का रख रखाव भी करती है | कई धर्म संस्थाएं जैसे चिकित्सालय और धर्मशाला भी चलाई जाती हैं | 

 

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Firozabad glass work

उत्तरप्रदेश के फ़िरोज़ाबाद को “चूड़ियों का शहर” कहा जाता है | अकबर ने फ़िरोज़ शाह नामक व्यक्ति के नेतृत्व में एक सेना यहाँ भेजी थी ताकि लुटेरों का सफाया किया जा सके | फ़िरोज़ शाह का मकबरा आज भी यहाँ मौजूद है | इन्हीं फ़िरोज़ शाह के नाम से शहर का नाम फ़िरोज़ाबाद रखा गया था | 

 

शुरू से ही यह शहर कांच की चूड़ियों और कांच की ही अन्य कलात्मक वस्तुओं के लिए प्रसिद्द है | पुराने जमाने में कुछ आक्रमणकारी यहाँ कांच की वस्तुएं लेकर आये थे जिन्हें नकार दिया गया था | इन वस्तुओं को फिर एक भट्टी में गलाया गया | ये पारंपरिक भट्टियाँ आज भी अलीगढ़ में छोटी छोटी बोतलें और कांच की चूड़ियाँ बनाने के काम में आती हैं |

 

 

आधुनिक कांच उद्योग हाजी रुस्तम उस्ताद द्वारा शुरू किया गया था | सोफीपुरा में यमुना किनारे उनका मकबरा स्थित है जहाँ हर साल एक भव्य मेला लगता है | इस मेले में हर तबके के लोग शामिल होते हैं और हाजी रुस्तम उस्ताद को याद करते हैं | भट्टी में बनने वाली चूड़ी में एक भी जोड़ नहीं होता था | धीरे धीरे ये चूड़ियाँ आम जनता को पसंद आने लगी | इस तरह कांच उद्योग की शुरुआत हुई थी | तभी से फ़िरोज़ाबाद को कांच की चूड़ियों का गढ़ माना जाने लगा | शहर में घुसते से ही हर तरफ रंग बिरंगी चूड़ियों से सजी दुकानें देख कर आप समझ जाएंगे कि आप कौन से शहर में हैं | 

समय के साथ रंग बिरंगे कांच के टुकड़े तैयार किए जाने लगे जिनसे झाड़फ़ानूस(chandelier)बनाया जाता था | इन झाड़फानूस की राज दरबारों में और अमीरों के घरों में बहुत मांग रहती थी | फिर इसी तरह इत्र रखने के लिए शीशियाँ और अन्य कॉस्मेटिक चीज़ों के लिए डब्बे और बर्तन बनने लगे | फिर बढ़ती मांग के हिसाब से शादी ब्याह के मौकों के लिए बड़ी तादाद में चूड़ियों का उत्पादन आम जनता के लिए मांग के हिसाब से किया जाने लगा | 

फ़िरोज़ाबाद में लगभग 400 कांच उद्योग स्थापित हो चुके हैं जो कि विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुएं और चूड़ियाँ बनाते हैं | बहुत सारा सामान विदेशों में भी भेजा जाता है | कांच के गिलास(सभी प्रकार के) भी फिरोजाबाद में बनते हैं और सभी चीज़ों पर खूबसूरत कटवर्क देखकर वास्तव में हैरत होती है | 

कांच के मर्तबान, मोमबत्ती स्टैंड, फूलदान, रंगबिरंगी लाइट,शंख जैसे अन्य कई उत्पाद कांच उद्योग द्वारा तैयार किए जाते हैं | डिज़ाइनर बोतल, डिज़ाइनर टेबल, डिज़ाइनर गिफ्ट आइटम्स…ना जाने कितने ऐसे उत्पाद हैं जो फ़िरोज़ाबाद की फैक्ट्री से निकलते हैं जिन्हें देखकर सभी को खरीद लेने का मानस बन जाता है | 

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Mandana paintings are wall and floor paintings of Rajasthan and Madhya Pradesh. Mandana are drawn to protect home and hearth, welcome gods into the house and as a mark of celebrations on festive occasions.

 Village women in the Sawai Madhopur area of Rajasthan possess skill for developing designs of perfect symmetry and accuracy. The art is typically passed on from mother to daughter and uses white khariya or chalk solution and geru or red ochre. They use twigs to draw on the floors and walls of their houses, which are first plastered with clay mixed with cow dung. More tools employed are a piece of cotton, a tuft of hair, or a rudimentary brush made out of a date stick. The design may show Ganesha, peacocks, women at work, tigers, floral motifs, etc.

In the Meena villages of Rajasthan women paint not just the walls and floors of their own homes to mark festivals and the passing seasons, but public and communal areas as well, working together and never leaving individual signatures. 

Famed for warding off evil and acting as a good luck charm, the tribal paintings are derived from the word ‘Mandan’ referring to decoration and beautification and comprises simple geometric forms like triangles, squares and circles to decorate houses.

Though Mandana art has seen a drastic drop in visibility, and has less of takers among villagers due to rise in number of concrete houses, the art still holds the rustic charm, and its paintings adorn walls of patrons. According to experts in the Mandana art form, the traditionally drawn designs bear architectural and scientific significance.

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किशोर सागर और जगमंदिर पैलेस  (Kishore Sagar and Jagmandir Palace)

 

किशोर सागर झील 1346 में बूंदी के राजकुमार द्वारा बनवाई गई थी | इस झील की खूबसूरती सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है | इस झील के बीचों बीच एक द्वीप पर जगमंदिर पैलेस बना हुआ है | 1740 में बने जगमंदिर की शिल्प कला देखने लायक है | यह लाल रंग के सैंड स्टोन से बना हुआ है | रात के समय जब सब तरफ रौशनी ही रौशनी होती है तो इस जगह की खूबसूरती की पानी में दिखती झलक का जवाब नहीं होता| यहाँ पर नाव में सैर करने का आनंद भी उठाया जा सकता है | 

सेवेन वंडर्स पार्क (Seven Wonders Park)

यह पार्क 2011 में बनाया गया था | यहाँ ताज महल (Taj Mahal), ग्रेट पिरामिड ऑफ़ गिज़ा (Great Pyramid of Giza), ब्राज़ील का क्राइस्ट द रिडीमर (Brazil’s Christ the Redeemer), स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी (Statue of Liberty), आइफ़िल टावर (Eiffel Tower), लीनिंग टावर ऑफ पीसा  (Leaning Tower of Pisa) और Rome’s Colosseum के प्रतिकृति (replica) हैं | राजस्थान और आगरा के 150 शिल्पकारों ने 8 महीने की कड़ी मेहनत करके इन प्रतिकृतियों को बनाया था | 

कोटा बैराज   (Kota barrage)

कोटा बैराज कोटा की सिंचाई नहर का हिस्सा है जो कि चम्बल नदी पर है | यह 1960 में बना था | तेज़ बारिश के समय जब इसके 19 दरवाज़े खोले जाते है तो पुल पर कंपन का एहसास होता है और इसे देखने आम जन उमड़ पड़ते हैं | 

चम्बल गार्डन्स   (Chambal Gardens)

चम्बल की पृष्ठभूमि में बने सुन्दर बाग जो कि जनता के लिए सबसे पसंदीदा पिकनिक स्थल हैं | यह अमर निवास में है और यहाँ बने तालाब में घड़ियालों का निवास है | बच्चों के लिए इस पार्क में खलेने के लिए बहुत जगह है, इस कारण से सप्ताहांत में अक्सर परिवार यहाँ देखे जा सकते हैं | 

खड़े गणेश जी का मंदिर ( Khade Ganesh Ji temple)

कोटा का अत्यंत धार्मिक माने जाने वाला स्थान है खड़े गणेश जी का मंदिर जिसमें भगवन श्री गणेश की मूर्ती लगभग 600 साल पुरानी है | चम्बल नदी के पास बने इस मंदिर से लगी हुई एक झील है जिसमें बहुत बड़ी संख्या में मोर में देखे जा सकते हैं | यहाँ की खासियत यह है कि गणेश जी की मूर्ती खड़ी अवस्था में है जो अपने किस्म की भारत में एक ही मूर्ती है |

गरड़िया महादेव मंदिर ( Garadiya Mahadev temple)

शहर से कुछ दूर स्थित है गरड़िया महादेव जी का मंदिर | यह जगह इतनी खूबसूरत है कि बस देखते रह जाओ | 25 किलोमीटर की दूरी तय करके यहाँ कदम रखने के बाद हर कोई इस जगह में खो जाता है | प्रकृति प्रेमी तो यहाँ घंटों बिता सकते हैं | 

सिटी पैलेस   (City Palace)

राजस्थानी और मुग़ल कालीन शिल्प कला का संगम कोटा के सिटी पैलेस में स्पष्ट नज़र आता है | हर साल यहाँ हज़ारों पर्यटक आते हैं | महल की दीवारों पर पेंटिंग्स, शीशे का काम, शीशे की छतें, लटकती हुई लाइट्स,कुल मिलाकर सभी का समावेश इस जगह को आकर्षण प्रदान करता है | मार्बल की फ्लोरिंग, पैलेस के चारों तरफ सुन्दर बाग सुन्दरता को और भी बढ़ाते हैं | महल के अन्दर म्यूजियम में पुराने ज़माने के हथियार, पोशाकें, और हेंडीक्राफ्ट आइटम्स राजा महाराजाओं की सम्पन्नता और संस्कृति का उदाहरण हैं| 

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जयपुर की मीनाकारी बहुत प्रसिद्द है | मीनाकारी हमेशा से सभी को अपनी ओर आकर्षित करती रही है |
मीनाकारी की खूबसूरती ने हर किसी के मन में सवाल भी उठाएं है कि आखिर ये है क्या ? हमने जब इसके
बारे में पढ़ना शुरू किया तो बहुत ही मजेदार तथ्य पता चले जो हम यहाँ आपको बता रहे हैं |
फ़ारसी भाषा में मीना यानि आकाश का नीला रंग |

इरानी कारीगरों ने इस कला की खोज करी और मंगोलों ने इसे भारत और दूसरे देशों तक पहुँचाया | एक फ्रेंचपर्यटक, जो कि ईरान घूमने गए थे, ने नीले,हरे,लाल औरपीले रंगों में बने पक्षियों और जानवरों का ज़िक्र किया है जो कि तामचीनी के बने हुए थे | मीनाकारी के काममें स्वर्ण का भी इस्तेमाल पारंपरिक तौर पर किया जाता है क्योंकि इसकी तामचीनी यानि enamel work परअच्छी पकड़ होती है और इससे enamel की चमक उभर कर आती है |

कुछ समय के बाद चांदी का भी प्रयोगकिया जाने लगा जो डब्बे, चम्मच और दूसरी कलात्मक वस्तुएं बनाने के काम में आने लगा | इन सबके बादजब स्वर्ण पर रोक लगने लगी तो ताम्बे का प्रयोग किया जाने लगा | शुरू में मीनाकारी के काम को ज्यादातवज्जो नहीं मिली क्योंकि इसका प्रयोग सिर्फ कुंदन या बेशकीमती रत्नों के गहने बनाने के लिए होता था |इतिहास के हिसाब से मीनाकार सुनार जाति से सम्बंधित हैं और इन्होंने मीनाकार या वर्मा नाम से पहचानबनाई |

मीनाकारी का कार्य वंश के हिसाब से चलता रहता है और ऐसा बहुत कम होता है कि मीनाकार लोगअपने हुनर की जानकारी किसी और को दें | मीनाकारी की वस्तुएं बनाने का क्रम बहुत लम्बा और गहन होताहै और इसे कई कुशल हाथों से गुजरना होता है | मीनाकारी सिर्फ गहने तक सीमित नहीं है, इससे कई सजावटकी वस्तुएं भी बनाई जाती हैं |

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 चांदपोल ब्रिज

हर शहर में कुछ जगहों के नाम ऐसे होते हैं जिनका ज़िक्र हम रोज़ करते हैं | इसी तरह की कुछ बात मेरे घरमें चल रही थी | शाम को एक बुज़ुर्ग मेहमान के सामने अगले दिन बाज़ार जाने का प्रोग्राम बना था, तो ऐसे तथ्य पता चले जिनके बारे में हम अचानक सोच भी नहीं पाते | बात शुरू हुई थी चांदपोल जाने की तो मन में सवाल आया कि आखिर चांदपोल नाम क्यों पड़ा तो कुछ और भी बातें मुझे बताई गईं | सबसे पहले उन्होंने मुझे पोल का असल मतलब बताया |आगे और पीछे की तरफ दरवाजा होता है और बीच में जो खाली जगह होती है उसे “पोल” कहते हैं | दुश्मन अचानक अन्दर घुस कर हमला ना कर सके इसके लिए पोल का निर्माण किया गया था | ऊपर की तरफ कमसे कम 10 फीट की चौड़ाई वाली जगह बनाई जाती थी जहाँ से दुश्मन पर नज़र रखी जाती थी, इसे शहरकोट कहते हैं | 10 फीट की चौड़ाई रखने का उद्देश्य था कि उसपर हाथी को भी ले जाया सके, आदमी भी चल सके और भारी तोप जैसे हथियार भी ले जाए जा सकें | शहरकोट पर चढ़ने के लिए रैंप नुमा जगह बनाई जातीथी और सीढ़ियां भी होती थी | कोट में छोटी छोटी खिड़कियाँ बनी होती थी जिसमें बन्दूक या तोप का मुंह फंसाकर दुश्मन पर वार किया जाता था | ‘चांदपोल” नाम इसलिए पड़ा क्योंकि बीज का चन्द्रमा तिथि के अनुसार पश्चिम में उगता है और इस पोल से चाँद को देखा जा सकता था | हिन्दू तिथि के अनुसार बीज को शुभ तिथि माना जाता है |

सूरजपोल

 

 

 

 

 

 

 

 

सूरजपोल” पूर्व में है यानि सूरज के उगने की दिशा में,जहाँ से हाथी निकल सके वो “हाथीपोल”, “उदियापोल” का नाम महाराणा उदय सिंह के नाम पर रखा गया | अम्बामाता के मंदिर की तरफ आने वाला रास्ता “अम्बापोल” | “ब्रह्मपोल” में कर्मकांडी ब्राह्मणों का निवास स्थान हुआ करता था | एक और बात पता चली कि दिल्ली गेट नाम क्यों रखा गया ? दरवाजे का मुंह दिल्ली की तरफ है इसलिए इसे दिल्ली गेट कहा गया, अर्थात ये रास्ता दिल्ली की तरफ जाता है | ये भी बताया गया कि महाराणा दिल्ली दरवाजे की तरफ जाते ही नहीं थे क्योंकि ऐसा कहा जाता था कि मरेंगे तभी दिल्ली की तरफ मुंह करेंगे और सूरजपोल और चांदपोल तो और कई शहरों में भी हैं |

 

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राठासन माता का प्राचीन मंदिर . उदयपुर से निकल कर जैसे ही आप चिरवा टनल पार करते है , बाई हाथ की और ऊंची पहाड़ी पे एक मंदिर नज़र आता है , यही है राठासन माता का मंदिर . पहाड़ी की सर्वोच्च चोटी पर स्तिथ ये मंदिर बड़ा ही अद्धभुत है , ये मंदिर मेवाड़ राजघराने की सम्पति है और उन की ट्रस्ट के अंतर्गत इसका सञ्चालन होता है. यहाँ की प्राचीन मूर्तियों की सुंदरता देखते ही बनती है . यहाँ की बहुत ही दिव्य और चमत्कारी मंदिर की महिमा है . लगभग नीमज माता मंदिर से कुछ ज़्यादा चढाई है पर अगर आप नीमज माता मंदिर चढ़ सकते है तो यहाँ भी आप आसानी से पहुंच जायेंगे . यहाँ के देखरेख करने वाले और महंत बहुत ही अच्छे स्वाभाव के लोग है , बहुत अच्छे से आगंतुकों की अगवानी करना और मीठी बातो से आप का दिल जीतना यथा संभव आप की प्रसाद/ भोजन की मनवार करना यहाँ की ख़ास बात है और अगर आप उदयपुर HRH कार्यालय से अनुमति प्राप्त कर ले तो आप मदिर प्रांगण में रात भी गुज़ार सकते है . शाम की आरती का आनंद आप को परमेश्वर के इतना करीब ले आता है जिस का वर्णन संभव नहीं है ! और प्रातःकाल की मंदिर की सफाई और सेवा भी देखते ही बनती है . कुल मिला के अगर आप यहाँ नहीं आये तो ये कहना उचित होगा की आप ने उदयपुर के जीवन का एक अलौकिक क्ष्रण खो दिया है .

By Sharad Lodha Sharad Lodha

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बांसवाड़ा बसाने का कार्य किया था महारावल जगमल सिंह जी ने | इसे वागड़ के नाम से भी पुकारा जाता है | इस इलाके में बांस की बहुलता के कारण इसका नाम बांसवाड़ा पड़ा | माही नदी में 100 द्वीपों के कारण इसे “सौ द्वीपों के शहर”( city of hundred islands) के नाम से भी जाना जाता है |

अंग्रेजों के राज्य के समय बांसवाड़ा में महारावल राजपूतों का सामंतवाद था | ऐसा भी कहते हैं कि पहले यहाँ बंसिया नामक भील राज करता था इसलिए इसका नाम बांसवाड़ा रखा गया | बंसिया को महारावल जगमल सिंह ने हरा कर मार डाला था और अपना राज स्थापित किया था |

यहाँ कई मंदिर हैं जैसे अनेकांत बाहुबली मंदिर, अन्धेश्वर पार्शवनाथ जी, अरथूना के मंदिर, मदारेश्वर मंदिर, त्रिपुरा सुंदरी मंदिर | अन्य दर्शनीय स्थलों में अब्दुल्लाह पीर, आनंद सागर झील, मानगढ़ हिल, भीम कुंड, तालवाड़ा आदि |

बांसवाड़ा में आदिवासियों का वास है | यहाँ पर 11 “स्वयंभू शिवलिंग” भी हैं | इसी वजह से इसे छोटा काशी भी कहते हैं | यहाँ पर गुजराती, मालवी और मेवाड़ी संस्कृतियों का समावेश देखा जा सकता है | जंगल और पहाड़ियों की बहुलता लिए अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए बांसवाड़ा बेहद मशहूर है |

 

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भारतीय लोक कला मंडल की स्थापना 1952 में विश्वविख्यात लोककलाविद पदमश्री(स्व.) श्री देवीलाल सामर द्वारा की गई | लोक कला के संरक्षण, उत्थान, विकास और प्रचार प्रसार हेतु इस कला मंडल को स्थापित कर विश्व में विशिष्ट संस्कृति की पहचान लिए हमारा शहर उदयपुर चहुँ ओर ख्याति प्राप्त कर चुका है |
लोक कला मंडल में जीवन संस्कृति को परिभाषित करने वाली अनेकों चीज़ों को देखा जा सकता है | इस कला मंडल का मुख्य उद्देश्य कुछ इस प्रकार से है :
• लोक गीतों, लोक नृत्यों और लोक कलाओं को पहचान दिलाना और उन्हें विकसित करना
• उपरोक्त दिशाओं में शोध को बढ़ावा देना
• पारंपरिक लोक कलाओं को आधुनिक परिवेश के अनुसार विकसित करना
• भारत और विदेशों में कठपुतली, लोक नृत्य और गीतों के कार्यक्रम आयोजित करना
• लोक कथाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रशिक्षण देना
• लोक कलाकारों को प्रोत्साहन देना
• सम्बंधित विषयों के कार्यक्रम आयोजित करना
भारतीय लोक कला मंडल लोक कलाओं को ना सिर्फ पहचान दिलाना चाहता है बल्कि छुपी हुई कलाओं को भी बाहर लाने का प्रयास करता है जिसके लिए अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है | Audiovisual तरीकों के माध्यम से एवं संग्रह के माध्यम से जनता को लोक परम्पराओं की जानकारी उपलब्ध कराई जाती रही है | विभिन्न कलाओं पर कई किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं |
यहाँ अनेकों लोक नृत्यों का मंचन भी होता है जैसी घूमर, भवाई , डाकिया, तेरह ताल, कालबेलिया आदि | कठपुतली बनाना और संचालन करना भी एक बहुत महत्वपूर्ण लोक कला है, अतः इस बारे में भी प्रशिक्षण दिया जाता है | नाटकों का मंचन लोक कलाओं, रिवाजों, कथाओं एवं भ्रांतियों को उजागर करने के लिए किया जाता है | कठपुतली बनाने की कला लगभग लुप्त हो चली थी, इस कला के माध्यम से कई कथाएँ आम जनता तक पहुंचाई गई हैं इसलिए इस कला को भी दुबारा विकसित करने के इरादे से लोक कला मंडल ने अनेकों कदम उठाए हैं |
हर साल 22 और 23 फरवरी को दो दिवसीय मेले का आयोजन स्थापना दिवस मनाने के लिए किया जाता है | इस मेले में राजस्थान के कलाकारों के अलावा समीप के राज्यों के कलाकार भी प्रस्तुतियां देते हैं | इस मेले का मुख्य उद्देश्य उभरते कलाकारों को एक मंच देकर उनकी प्रतिभा को उभारना भी है |

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उदयपुर का खूबसूरत गणगौर घाट वह घाट है जहाँ उदयपुर वासी पूरी श्रद्धा के साथ गणगौर पर्व के समापन के समय प्रतिमाओं का विसर्जन करते आये हैं | अब समस्त झीलों के पानी की शुद्धता को ध्यान में रखते हुए विसर्जन करने की मनाही है | हिन्दू त्योहारों के समय गणगौर घाट बहुत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है |

Image resultकिसी जलाशय के किनारे आम जनता के लिए स्नान करने एवं कपड़े धोने के लिए बनी जगह को घाट कहा जाता है | गणगौर के पावन पर्व को इस घाट पर मनाये जाने के कारण ही इसका नाम गणगौर घाट पड़ा |

संध्या के समय पवन के हलके झोकों के साथ घाट पर बैठे हुए यदि कानों में कोई मधुर संगीत पड़ जाए तो यहाँ बैठने का आनंद दुगुना हो जाता है | अनेकों प्रवासी भी यहाँ शान्ति से अपनी शाम बिताने आते हैं और पर्यटक तो झील से उठते संगीत की यादें संजो कर साथ ले जाते हैं |