October 22, 2024
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पगड़ी से जुड़े रोचक तथ्य 

 

एक लम्बा कपड़ा जिसमें सिलाई नहीं होती जो प्रांत और समुदाय को पृथक करता है..पगड़ी | इसे बाँधने के कई तरीके हैं | इसकी पहचान करने में पारंगत लोग दूर से ही देखकर बता देते हैं कि कौन किस समुदाय अथवा प्रांत से सम्बन्ध रखता है | किसी समय में यह माना जाता था कि पगड़ी पहनकर बुरी आत्माओं के प्रकोप से बचा जा सकता है |

राजस्थान में कई प्रकार की रंग बिरंगी और अलग अलग स्टाइल वाली पगड़ियां देखी जा सकती हैं | हर एक स्टाइल के साथ कोई न कोई तथ्य जुड़ा हुआ है | हर 15-20 किलोमीटर पर पगड़ी की स्टाइल बदली हुई मिलती है | पगड़ी का इतिहास ख़ास तौर पर राजपूत समुदाय से जुड़ा हुआ है | “पाग”, “साफा” और “पगड़ी” अलग अलग नामों से इसे जाना जाता है | राजा महाराजा अधिकतर साफा बांधते थे | साफा 9 मीटर लम्बा और 1 मीटर चौड़ा होता है जो आप शादी ब्याह के मौकों पर भी देख सकते हैं | पगड़ी की लम्बाई 82 मीटर और चौड़ाई 8 इंच की होती है | पहले दरबार द्वारा पगड़ी बाँधने में पारंगत महिलाओं को रखा जाता था |

सफ़ेद रंग की पगड़ी शोक का प्रतीक मानी जाती है | खाकी, नीली और मेरून रंग की पगड़ी सहानुभूति सभा के लिए पहनी जाती रही है | राजस्थान के बिश्नोई समुदाय की प्रतीक भी सफ़ेद पगड़ी ही है | चरवाहे की पगड़ी लाल रंग की होती है | अन्य जातियां प्रिंट वाली पगड़ियां पहनती हैं | अलग अलग त्योहारों के लिए अलग अलग पगड़ी पहनी जाती है | लाल किनारी वाली काली पगड़ी दिवाली के समय, लाल-सफ़ेद पगड़ी फागुन में, चटक केसरिया पगड़ी दशहरे में, पीली पगड़ी बसंत पंचमी के समय, हलकी गुलाबी शरद पूर्णिमा की रात को पहनी जाती है | 

 


 

 

 

 

 

मज़े की बात यह है कि पगड़ी सिर्फ पहनी ही नहीं जाती, बल्कि इसके कई उपयोग भी हैं | थके हुए मुसाफिर पगड़ी का तकिया बना लेते हैं और आराम से पेड़ की छाँव में सो जाते हैं | क्योंकि इसकी लम्बाई बहुत होती है, इसे ठण्ड लगने पर शॉल की तरह लपेटा भी जा सकता है | और रस्सी का काम!! क्या कहने, कूएं से पानी खींचना हो तो पगड़ी को रस्सी की तरह बाल्टी से बांधकर पानी भी खींचा जा सकता है | ऐसी कथाएं भी हैं जिनमें पगड़ी के सहारे लटककर कई लोगों ने दीवारों के पार जाकर अपनी जान बचाई है, पानी में डूबतों को पगड़ी के सहारे बांधकर बाहर निकाला है |

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